IAF अंतरिक्ष अन्वेषण रणनीति | भारतीय वायु एवं अंतरिक्ष बल | IAF ने डिफेंस मिनिस्ट्री के लिए नए नाम और काम का प्रस्ताव रखा, अंतरिक्ष डॉक्ट्रिन पहले से तैयार

नई दिल्ली6 मिनट पहलेलेखक: मुकेश कौशिक

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डीआरडीओ और इसरो की मदद से IAF 31 सैटेलाइट्स की लॉन्चिंग योजना।  - दैनिक भास्कर

डीआरडीओ और इसरो की मदद से IAF 31 सैटेलाइट्स की लॉन्चिंग योजना।

भारतीय वायु सेना (IAF) ने हवा के साथ-साथ अंतरिक्ष में भी प्रशिक्षण शुरू किया है। IAF अब स्पेस के सिविल और सीनियर दोनों पार्टनरशिप के उपयोग के लिए विचार कर रही है, जिसके लिए उसने आर्किटेक्चर और थियोरेटिकल फ्रेमवर्क तैयार किया है।

इस अपने नए रोल के लिए IAF ने नाम भी तय कर लिया है- इंडियन एयर एंड स्पेस फोर्स। वायु सेना ने नए नाम का प्रस्ताव रक्षा मंत्रालय में भेजा है। मिनिस्ट्री की ओर से मंजूरी मिल गई ही एयर फोर्स का नया नाम और काम प्रकाशित हो गया।

साथ ही, डिपार्टमेंट ऑफ स्पेस एजेंसी की मदद से IAF ने अपना स्पेस डॉक्ट्रिन पहले ही तैयार कर लिया है। इस डॉक्ट्रिन में अंतरिक्ष से संबंधित पावर से संबंधित इलेक्ट्रानिक्स और प्लांट को शामिल किया गया है।

अंतरिक्ष का प्रारंभिक उपयोग करने पर अभी भी अध्ययन किया गया है।  इसलिए सोलो को स्पेस लॉ की ट्रेनिंग दी जाएगी।

अंतरिक्ष का प्रारंभिक उपयोग करने पर अभी भी अध्ययन किया गया है। इसलिए सोलो को स्पेस लॉ की ट्रेनिंग दी जाएगी।

अंतरिक्ष के लिए रॉकेट्स की स्पेशल ट्रेनिंग होगी
अंतरिक्ष की हिस्सेदारी के खाते से वायु सेना ने अपने पोल की ट्रेनिंग का खाका भी खींच लिया है। इसके लिए इंटीरियर में स्पेस वॉर्न ट्रेनिंग कमांड सेंटर बन रहा है। इस केंद्र में स्पेस लॉ की ट्रेनिंग के लिए अलग-अलग कॉलेज ग्रुप होंगे, जिनमें इंटरनेशनल स्पेस लॉ को अच्छे से देखने-समझने वाली प्रोफेशनल फोर्स तैयार की जाएगी।

असल में, असली अंतरराष्ट्रीय पेशेवरों के अंडर स्पेस के उपयोग की मनाही है। स्पेस लॉ कॉलेज में एयर फ़ोर्स पैनल्स को सिखाया गया कि किस तरह के उपकरणों से अंतरिक्ष का बेहतर उपयोग किया जा रहा है।

IAF का सैटेलाइट फ़्लीट 31 सैटेलाइट सैटेलाइट
स्पेस फोर्स बनाने के लिए IAF ने स्पेस सैटेलाइट का एक बड़ा बेड़ा तैयार करने का भी फैसला किया है। इस प्रोजेक्ट के तहत 31 सैटेलाइट आईएएफ के लिए अंतरिक्ष में छोड़े जाएंगे। इसका उपयोग कम्युनिकेशन, वेडर प्रिडिक्शन, नेवीगेशन, रियल टाइम डेमोकेसी जैसे ऑपरेशन के लिए किया जाएगा।

एयरफोर्स ने तय किया है कि इन सैटेलाइट्स की लॉन्चिंग के लिए 60 फिसदी का हिस्सा वो खुदगेगी। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) डिफेंस रिसर्च एंड डेवलेमेंट इंकलाब (डीआरडीओ) पर ऐसे लॉन्च की अहम जिम्मेदारी होगी।

डीआरडीओ की मदद से एयर फोर्स एयर एयरक्राफ्ट बनाने वाली है जो हवा और अंतरिक्ष दोनों में काम करती है।

डीआरडीओ की मदद से एयर फोर्स एयर एयरक्राफ्ट बनाने वाली है जो हवा और अंतरिक्ष दोनों में काम करती है।

तीन सेना की ज्वाइंट स्पेस कमांड
एयर फोर्स लेवल लेवल पर एक ऐसी ज्वाइंट स्पेस कमांड का गठन भी वांछित है, जिसमें सेना के जनरल लेवल की हिस्सेदारी हो। इस कमांड में इसरो और डीआरडीओ जैसे छात्रों को भी शामिल किया गया है। साथ ही एयरोस्पेस से जुड़ी निजी कंपनियों को भी इसमें शामिल करने का प्रस्ताव है।

भविष्य में अंतरिक्ष ही जंग का मैदान है, इसलिए खुद की सुरक्षा जरूरी
वायु सेना के एक उच्च रैंक के अधिकारी ने बताया कि अंतरिक्ष में हथियार बंदी की शुरुआत हो चुकी है। भविष्य की तुलना जमीन, समुद्र, आकाश के साथ ही साइबर और अंतरिक्ष में भी लड़की मांगती है। हमें भी अपने अहम की सुरक्षा के लिए अंतरिक्ष में अपने डिफेंसिव और ऑफेंस सिवनी दोनों सेनाओं को प्राप्त करना होगा। अंतरिक्ष में हमें शुरू करना चाहिए और खुद को भविष्य के लिए तैयार करना चाहिए।

डिफेन्स मिनिस्ट्री को भेजा गया प्रस्ताव
एयरफोर्स ने डीआरडीओ से एयरक्राफ्ट पर भी काम करने को कहा है, जो दूसरे अंतरिक्ष में भी उड़ान भर सके। इसके लिए एयरफोर्स ने अपनी जरूरतें और साइंटिटेक्चुअल इंजीनियरिंग डीआरडीओ के साथ साझा की हैं।

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