सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के गवर्नर और सीएम स्टालिन को साथ बैठकर बिल संबंधी मुद्दे सुलझाने का सुझाव दिया, अगली सुनवाई 11 दिसंबर को | सीएम के साथ सुलह समझौता; 11 दिसंबर को अगली सुनवाई

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नई दिल्लीएक घंटा पहले

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तमिलनाडु विधानसभा से पास हुए बिलों को फांगने के मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल आरएन रवि को अहम फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि राज्यपाल को सीएम के साथ एक बैठक में चर्चा करनी चाहिए। इस मामले की अगली सुनवाई अब 11 दिसंबर को होगी।

तमिल क्षेत्र से 10 बिल दो बार पास हो चुके हैं। जिन पर गवर्नर ने सहमति नहीं दी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विधानसभा से दो बार बिल पास होने के बाद राज्यपाल राष्ट्रपति पद के लिए रेफर नहीं हो सकते।

सुप्रीम कोर्ट में तीन जजों की बेंच ने इस मामले की सुनवाई की। इस बेंच की अध्यक्षता सीजेआई दिवाई चंद्रचूड़ ने की। बेंच ने कहा कि बेहतर होगा कि सीएम गवर्नर इस मुद्दे पर चर्चा करें और मामले को हल कर लें।

बिल पास होने के बाद गवर्नर के पास होते हैं ये तीन विकल्प…
सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 200 में उल्लेख करते हुए कहा कि विधानसभा से बिल पास होने के बाद राज्यपाल के पास तीन पद होते हैं, या तो मंजूरी दे दी जाती है या फिर गठबंधन वापस लेने के लिए मंजूरी दे दी जाती है या फिर राष्ट्रपति के पास भेज दिया जाता है। यदि तीर्थस्थल के लिए भेजा गया है तो राष्ट्रपति के पास नहीं भेजा जा सकता है।

विशेष सत्र में दिए गए थे बिल
गवर्नर ने 13 नवंबर को 12 से 10 बिलों को बिना कारण बताए विधानसभा में वापस कर दिया था और 2 बिलों को राष्ट्रपति के पास भेज दिया था। इसके बाद 18 नवंबर को तमिलनाडु विधानसभा के विशेष सत्र में इन 10 बिलों को फिर से पारित कर दिया गया और गवर्नर की मंजूरी के लिए गवर्नर सचिवालय को बुलाया गया।

सुप्रीम कोर्ट में लगी याचिका में राज्य सरकार ने मांग की है कि राज्यपाल जल्द से जल्द सभी बिलों पर सहमति जताएं। फाइल में कहा गया है कि गवर्नर का ये असाध्य अवशेष है और इन बिलों को फांसी देना, अटकाने से डेमोक्रेसी की हार होती है।

सुप्रीम कोर्ट में तमिल सरकार ने अपने पक्ष में रखी ये 3 डीलें…
वकील अभिभाषण मनु सिंघवी ने कहा कि 28 नवंबर को इस केस में नया चुनाव हुआ था। गवर्नर ने इन बिलों को गवर्नर को रेफर कर दिया है। इसके बाद गवर्नर की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमनी ने कहा कि गवर्नर अगर बिल को मंजूरी नहीं दे रहे हैं तो जरूरी नहीं कि इसे विधानसभा को वापस भेजा जाए।

अटॉर्नी जनरल की इस डील के बाद सीजेआई ने कहा कि यह केरल के गवर्नर वाले केस में सुना जा रहा है। सीजेआई ने कहा कि गवर्नर केंद्र सरकार के प्रतिनिधि हैं और उनके पास इस मामले के लिए तीन ही पद हैं, जो 200 में लिखे गए हैं। सीजेआई ने कहा कि अगर बिल को संसदीय क्षेत्र उन्हें सौंपा गया है तो राज्यपाल राष्ट्रपति के पास नहीं भेज सकते।

अटॉर्नी जनरल ने कहा कि विधानसभा को इस बिल को फिर से पारित करने का अधिकार तब दिया जाता है जब राज्यपाल इसे किसी भी कारण से खारिज कर देते हैं। बिना कारण के इस बिल को फिर से पारित नहीं किया जा सकता है। इसके बाद सीजेआई ने सीएम और राज्यपाल के साथ मिलकर मामले पर चर्चा करने को कहा.

पंजाब के गवर्नर को सुप्रीम कोर्ट ने दी थी रोक
पंजाब में भी तमिल की तरह ही और गवर्नर सरकार के बिल पर दस्तखत करने का मामला सुप्रीम कोर्ट में था। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में पंजाब के गवर्नर से कहा था कि आप आग से खेल रहे हैं। लोकतंत्र का अधिकार मान में मुख्यमंत्री और राज्यपाल के हाथ सेव होता है। विधानसभा में पास बिल अपने पास ना रोकें। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि अगर राज्य सरकार और गवर्नर में गतिरोध बना हुआ है तो यह चिंता का विषय है। राज्य में जो भी घटना चल रही है, उससे हम खुश नहीं हैं।

केरल के गवर्नर और सीएम को SC ने दी थी चर्चा करने की सलाह
केरल विधानसभा द्वारा पारित बिलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 29 नवंबर को सुनवाई करते हुए कहा था कि राज्यपाल राज्य सरकार कानून बनाने से रोक नहीं सकती है। इस मामले में भी कोर्ट ने राज्यपाल और संबंधित मंत्री और सीएम के साथ बातचीत करने को कहा था.

बिल पास होने के बाद गवर्नर के पास होते हैं ये तीन विकल्प…
भारत के संविधान के अनुच्छेद 200 में राज्यपालों की शक्तियों और सदनों को दिए गए बिलों का उल्लेख किया गया है। इसके अनुसार, यदि राज्य के किसी भी विधानसभा क्षेत्र से कोई विधेयक राज्यपाल के पास स्वीकृत है तो राज्यपाल के पास तीन पद हैं, या फिर राज्यपाल किसी विधेयक को मंजूरी दे सकते हैं या किसी विधानसभा क्षेत्र के लिए विचार कर सकते हैं, या फिर कह सकते हैं। वह बिल को राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं।

भारतीय संविधान के अनुसार, यदि कोई निर्वाचित सरकार बहुमत में है तो राज्यपाल अमेरिकी सरकार की सलाह पर ही काम कर सकते हैं। इस मामले में राज्यपाल अपने विवेक से निर्णय नहीं ले सकते।

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