सिल्क्यारा सुरंग ढहना| सड़क एवं परिवहन मंत्रालय सभी 29 निर्माणाधीन सुरंगों का ऑडिट करेगा | फ़िल्मायारा टनल दुर्घटना के बाद रोड रोलर मिनिस्ट्री का निर्णय; 7 दिन में प्रवेश रिपोर्ट

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3 मिनट पहले

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जम्मू-कश्मीर के गांदरबाल जिले में गगनरी और सोनामार्ग के बीच 6.5 किमी लंबी सुरंग का विमोचन है।  इसके आकार की वजह से इसे Z मुड़ने वाला रंग नाम दिया गया है।  - दैनिक भास्कर

जम्मू-कश्मीर के गांदरबाल जिले में गगनरी और सोनामार्ग के बीच 6.5 किमी लंबी सुरंग का विमोचन है। इसके आकार की वजह से इसे Z मुड़ने वाला रंग नाम दिया गया है।

उत्तरकाशी में प्लाइक्यारा सुरंग हादसे के बाद सड़क परिवहन एवं परिवहन मंत्रालय ने देश भर में सभी 29 सुरंगों की सुरक्षा का निर्णय लिया है।

इसके लिए कोंकण रेलवे रेलवे लिमिटेड के साथ मंत्रालय की ओर से समझौता किया गया है। रविवार को जारी बयान में कहा गया है कि भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) और दिल्ली मेट्रो के विशेषज्ञ संयुक्त रूप से सभी सुरों की जांच करेंगे और 7 दिनों में एक रिपोर्ट तैयार करेंगे।

मौजूदा समय में हिमाचल प्रदेश में 12, जम्मू-कश्मीर में 6, महाराष्ट्र, ओडिशा और राजस्थान में 2-2 और मध्य प्रदेश, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और दिल्ली में एक-एक सुरज बने हुए हैं। इन सुरंगों की कुल लंबाई 79 किमी के बराबर है।

बोले- हिमालय की भूविज्ञान को नजरअंदाज किया, दूसरा हादसा हुआ
प्रमुख भूविज्ञानी त्रिभुवन सिंह पांगती ने उत्तरकाशी के आकाशवाणी में जादू को लेकर कई खतरे पैदा किए हैं। भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण से एडीजी पद से ग्रहण पांगती ने 35 वर्ष तक हिमालयी क्षेत्र में विशेषज्ञ के रूप में कार्य किया है। उनकी नजर में ऐसी घटनाएं का सबसे बड़ा कारण भू-तकनीकी और भूभौतिकीय अध्ययन की कमी या उनकी लगातार अनदेखी है।

इस हादसे के पीछे कई सबसे प्रमुख बातों में से उनका मानना ​​है कि सुरंग निर्माण में ब्लास्टिंग बड़ा कारण है। उन्होंने साफ कहा कि सुरंग निर्माण में विशेषज्ञ की राय को भी मंजूरी दी गई है।

हिमालयी इलाक़े में इलिनोइस में नामांकित व्यक्ति से देखना चाहिए
भास्कर से बातचीत के दौरान पांगती ने कहा- ‘टेक्सॉनिक एशिया में किसी भी सतत विकास में भूविज्ञान की प्रमुख और महत्वपूर्ण भूमिका है। किसी भी प्रोजेक्ट से पहले लगातार हो रहे मुस्लिम इलाक़े की विस्तृत जानकारी को चयन से देखना चाहिए।

  • बिजली और संचार निगम के निर्माण में निजी कंपनियों की भागीदारी को लेकर कहा गया है कि उन्हें भूविज्ञान और क्षेत्र का ज्ञान नहीं है। इसके कारण उत्तराखंड में दुर्घटनाएं हो रही हैं और राक्षस विफल हो रही हैं। उनका मानना ​​है कि हिमालयी इलाके में ट्रांसपोर्ट सुरंगें सबसे अच्छे विकल्प हैं, लेकिन हिमालय की स्थलाकृति हर जगह अलग है।
  • सुरंग बनाने के लिए एक विस्तृत भूवैज्ञानिक और भू-तकनीकी अध्ययन किया गया है और फिर चट्टान के आधार पर एक सुरक्षित डिजाइन बनाया गया है। मुख्य सुरंग के काम से पहले एक पायलट सुरंग का निर्माण होना चाहिए और इस सुरंग की चट्टान की स्थिति के आधार पर समर्थन प्रणाली तैयार होनी चाहिए। ब्लास्टिंग भी नियंत्रित पैमाने पर होती है, लेकिन ब्लास्टिंग में इन सिद्धांतों को प्रतिबंधित कर दिया गया है।
  • राष्ट्रीय राजमार्गों पर पांगती का कहना है कि जो राष्ट्रीय राजमार्ग बन रहे हैं या हो रहे हैं, उनमें हर मौसम में गंभीर खतरे का खतरा बना हुआ है, क्योंकि भूगर्भीय यूरोप के अनुसार चरम उत्तराखंड के तटों की सुरक्षा नहीं की जा रही है।
  • भूवैज्ञानिक वैज्ञानिकों की जानकारी न होने के कारण भी कई पुल टूट रहे हैं। सरकार को भू-वैज्ञानिकों और भू-तकनीशियनों की राय लेनी चाहिए ताकि ऐसा कोई हादसा न हो।
  • पांगती का कहना है कि चरमराया जैसी दुर्घटना की स्थिति में यदि बायीं या ददम दीवार से सजावट की जाए तो मुक्ति में शीघ्र सफलता संभव है।

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