समलैंगिक विवाह- सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले पर करेगा पुनर्विचार | अक्टूबर में सैद्धांतिक सहमति से अस्वीकार कर दिया गया है; तलाक बोले- खुली अदालत में सुनवाई हो

नई दिल्ली43 मिनट पहले

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तस्वीर दिल्ली की है, जहां 26 नवंबर को प्राइड परेड निकाली गई थी।  इसमें सेम सेक्स को संकेत देने की मांग वाले पोस्टर लेकर LGBTQ+ समुदाय के सदस्यों ने मार्च आउट किया।  - दैनिक भास्कर

तस्वीर दिल्ली की है, जहां 26 नवंबर को प्राइड परेड निकाली गई थी। इसमें सेम सेक्स को संकेत देने की मांग वाले पोस्टर लेकर LGBTQ+ समुदाय के सदस्यों ने मार्च आउट किया।

सुप्रीम कोर्ट में आज (28 नवंबर) सेम सेक्स को कानूनी पुष्टि के मामले में सेम सेक्स को पेश किया जाएगा। CJI दिवाई चंद्रचूड़ 17 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर विचार करने के लिए 23 नवंबर को तैयार हो गए थे।

अमेरिका में एक लॉ फर्म में काम करने वाले वकील उदित सूद ने जजमेंट पर फिर से विचार करने के लिए रिव्यू पिटीशन दिया है। उनके वकील मुकुल रोहतगी ने मांग की है कि केस की सुनवाई कोर्ट में की जाए।

सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर में सेम सेक्स स्टेप्स को वैधानिक अनुमति से खारिज कर दिया था। यह फैसला 2018 का ऐतिहासिक फैसला 5 साल बाद आया था। 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक यौन उत्पीड़न पर लगी रोक हटा दी थी।

भेदभाव है तो इसका उपाय होना चाहिए
कंपनी के वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि सभी जज इस बात से सहमत हैं कि भेदभाव हो रहा है। अगर भेदभाव है तो इसका उपाय होना चाहिए। इस मामले में बड़ी संख्या में लोगों का जीवन प्रतिबंधित है। उन्होंने आगे कहा कि हम खुली अदालत में सुनवाई की मांग कर रहे हैं।

रिआर्ट, स्टेरिल दाखिलों पर आमतौर पर सुप्रीम कोर्ट चेंबर में सुनवाई होती है और वकीलों की तरफ से कोई भी लापरवाही नहीं की जाती है। हालाँकि, रेयर केस और मौत की सज़ा से जुड़े मामले खुले तौर पर अदालत में सुनाए जाते हैं।

अक्टूबर में साक्षात्कार के दौरान क्या हुआ…

  • सीजेआई ने कहा-संसदीय कानून बनाया जा सकता है: सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कोर्ट स्पेशल स्पेशल एक्ट में बदलाव नहीं कर सकता। न्यायालय केवल कानून की व्याख्या कर उसे लागू कर सकता है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि विशेष विशिष्ट कलाकारों के स्टूडियो में बदलाव की जरूरत है या नहीं, यह तय करना संसद का काम है।
  • 5 जजों की बेंच में से 4 ने चुना था फैसला: 5 जजों की कॉन्स्टिट्यूशनल बेंच में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस हिमा कोहली, जस्टिस संजय किशनलाल, जस्टिस डॉ. भट्ट और जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल थे। जस्टिस हिमा कोहली ने मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़, जस्टिस कौल, जस्टिस भट्ट और जस्टिस नरसिम्हा ने बारी-बारी से फैसला सुनाया।
  • सहमति और असहमति की हद पर की बात: सीजेआई ने सबसे पहले कहा कि इस मामले में 4 जजमेंट हैं। एक जजमेंट मेरी तरफ से है, एक जस्टिस कौल, एक जस्टिस भट्ट और जस्टिस नरसिम्हा की तरफ से है। इसमें एक डिग्री की सहमति है और एक डिग्री की सहमति है कि हमें किस तक जाना होगा।

निर्णय आने से पहले 6 दिन की समीक्षा में क्या कहा गया और क्या बनाया गया…आवेदन पढ़ें

27 अप्रैल, छठे दिन की सुनवाई: सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- सरकार इस मामले में क्या इरादा है

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा, ‘अगर ज्यूडीशियरी इसमें प्रवेश करती है तो यह एक कानूनी संपत्ति बन जाएगी। सरकार ने कहा कि वह इस रिश्ते में क्या करने का इरादा रखती है और कैसे वह इन लोगों की सुरक्षा और कल्याण के लिए काम कर रही है। ‘समलैंगिकों को समाज से बहिष्कृत नहीं किया जा सकता।’

केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, ‘स्पेशल स्टैप्स एक्ट केवल जेंडर के लोगों के लिए उपयुक्त है। अलग-अलग आस्था रखने वालों के लिए इसे लाया गया। सरकार ने हर निजी व्यवसाय को मंजूरी नहीं दी है। कलाकार चाहते हैं कि नए मकसद के साथ नई क्लास बनाई जाए। इसकी कल्पना कभी नहीं की गई थी।’

26 अप्रैल, सुनवाई का पांचवां दिन: केंद्र ने कहा था- नई परिभाषा के लिए जबरदस्ती नहीं की जा सकती
केंद्र सरकार की ओर से तुषार मेहता ने कहा- कोर्ट एक ही कानून के तहत अलग-अलग श्रेणी के लोगों के लिए अलग नजरिया नहीं रख सकता. हमें नई परिभाषा के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि LGBTQIA+ में ‘प्लस’ के क्या मतलब हैं, ये नहीं बताया गया है। उन्होंने पूछा, इस सामान में लोगों के कम से कम 72 शेड और श्रेणियां हैं। यदि यह न्यायालय गैर-परीभाषित वर्गीकरण को निर्दिष्ट करता है तो जजमेंट का प्रभाव 160 भवनों पर होगा, हम इसे कैसे सुचारु मिर्च कहते हैं?

फेथ ने आगे कहा कि कुछ लोग ऐसे हैं जो किसी भी लिंग के तहत पहचाने जाने से इनकार करते हैं। उन्होंने कहा, कानून की पहचान कैसे होगी? पुरुष या महिला विशेष रूप से पर? एक श्रेणी ऐसी है, जो कहती है कि लिंग मूड मार्जिन (मन परिवर्तन) पर अनुमति नहीं है। ऐसी स्थिति में उनका लिंग क्या होगा, कोई नहीं जानता। फेथ ने कहा कि असल सवाल ये है कि इस मामले में ये कौन तय करेगा कि एक वैध शादी क्या और वंश के बीच है। फेथ ने कहा कि इस मामले में पहले संसद या राज्यों के विधानसभा क्षेत्रों में क्या नहीं जाना चाहिए।

25 अप्रैल, सुनवाई का चौथा दिन: सीजेआई बोले- किसानों के हस्तक्षेप पर हस्तक्षेप का अधिकार संसद को
सुनवाई के चौथे दिन सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, ‘इसमें कोई संदेह नहीं है कि इन याचिकाओं में जो मुद्दे उठाए गए हैं, उनमें हस्तक्षेप का अधिकार संसद के पास है। इसलिए सवाल ये है कि इस मामले में कोर्ट में कितनी देर तक जा सकती है।’

सुप्रीम कोर्ट ने स्पेशल मैरेज एक्ट के तहत अधिकार देते हुए कहा, ‘अगर हम स्पेशल मैरेज एक्ट के तहत इसे देखते हैं, तो हमें कई पर्सनल लॉ बोर्ड में भी सुधार करना होगा।’ जस्टिस कौल और जस्टिस भट्ट ने कहा कि इससे बेहतर होगा कि इस बात पर गौर करें कि समलैंगिक विवाह का अधिकार दिया जा सकता है या नहीं। इसमें बहुत अंदर जाने पर मामला उलझेगा।

उत्पादों की ओर से वकील मेनका गुरुस्वामी ने कहा कि संविधान में दिए गए अधिकार से वोट लेने के लिए संसद का मुद्दा नहीं उठाया जा सकता। उन्होंने कहा कि जब किसी समुदाय के अधिकार का उल्लंघन हो तो उन्हें संविधान के अनुच्छेद 32 के आधार पर संवैधानिक पीठ में शामिल होने का अधिकार है। उन्होंने अदालत से यह भी कहा कि आप किसी विशेष व्यक्ति की योग्यता नहीं कर रहे हैं, बल्कि वो विशेष पद के कार्य के तहत अपनी भर्ती की सामान्य व्याख्या चाहते हैं।

20 अप्रैल, तीसरे दिन की सुनवाई; सीजेआई ने पूछा- क्या जरूरी है 2 अलग-अलग लिंग वालों की शादी?
सुनवाई के तीसरे दिन कोर्ट में बच्चे को गोद लेने पर बहस हुई। उत्पादों की ओर से पेशकार वकील विश्वनाथन ने कहा कि एलजीबीटीक्यू माता-पिता बच्चों को पालने के लिए ही उपयुक्त हैं, वे माता-पिता के सेक्स के विपरीत हैं।

बेंच ने इस बात पर सहमति जताई कि अपोजिट सेक्स के विपरीत समलैंगिक जोड़े अपने बच्चों की देखभाल नहीं कर सकते। बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा कि लोग अब इस धारणा से दूर हो रहे हैं कि एक लड़का ही होना चाहिए। सीजेआई ने कहा- समलैंगिक संबंध सिर्फ शारीरिक संबंध नहीं है, बल्कि एक स्थिर, स्थिर संबंध से कुछ अधिक जुड़ा हुआ है।

19 अप्रैल, सुनवाई का दूसरा दिन: केंद्र सरकार ने कहा- राज्य को भी इस विवाद में शामिल किया जाए
दूसरे दिन केंद्र सरकार ने अपील की कि इस मामले में सभी राज्यों और केंद्र में बेरोजगारी को पार्टी बनाया जाए। कंपनियों का पक्ष रखते हुए अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि एडॉप्शन, सरोगेसी, अंतरराज्यीय उत्तराधिकार, कर छूट, कर कटौती, अनुकंपा सरकारी नियुक्तियां आदि का लाभ उठाना विवाह की आवश्यकता है।

वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा कि वे इसे शहरी एलीट क्लास का विचार नहीं कह सकते। टैब पर, जब सरकार ने इस दावे के पक्ष में कोई डेटा नहीं दिया। सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, ‘ये शहरी सोच लग सकती है क्योंकि शहरी क्षेत्र में अब लोग फ्रैंक सामने आते हैं।’

18 अप्रैल, समीक्षा का पहला दिन: सेम सेक्स डियर की डिलिएं एलीट क्लास के लोगों का विचार
कोर्ट सुप्रीम ने पहले दिन कहा था कि वो पर्सनल लॉ के इलाके में जाए बिना देखेगी कि साल 1954 के स्पेशल डॉयलाग एक्ट के जरिए सेम सेक्स कपल को अधिकार दिया जा सकता है। केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल ने कहा था कि ये भर्तियां एलीट क्लास के लोगों के सुझाव हैं।

केंद्र सरकार का पक्ष रख रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि कथित तौर पर कानूनी तौर पर देखा जाए तो शादी एक बायोलॉजिकल पुरुष और बायोलॉजिकल महिला के बीच का रिश्ता होता है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिला और पुरुष भेद करने की कोई सैद्धांतिक अवधारणा नहीं है।

समलैंगिक विवाह को लेकर सटीक न मिलने के बाद आपके मन में भी सवाल उठ रहे होंगे, भास्कर एक्स्प्लोरर में पढ़ें ऐसे ही सवाल और उनके जवाब…

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