सफर के सबसे कठिन दौर में पहुंचे आदित्य एल1 | यात्रा के सबसे कठिन चरण में लॉन्च हुआ आदित्य एल1: हेलो ऑर्बिट में एंट्री का काउंटडाउन शुरू; 6 जनवरी को लैगरेंज प्वाइंट पर रीच होगा

नई दिल्ली20 मिनट पहले

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आदित्य एल1 को 2 सितंबर को श्रीहरिकोटा के शारबाह अंतरिक्ष केंद्र की शुरुआत की गई थी।  - दैनिक भास्कर

आदित्य एल1 को 2 सितंबर को श्रीहरिकोटा के शारबाह अंतरिक्ष केंद्र की शुरुआत की गई थी।

भारत का इकलौता सत्य आदित्य मिशन L1 6 अपनी यात्रा के सबसे कठिन निरीक्षण में है। इसके हेलो ऑर्बिट में एंट्री का काउंटडाउन शुरू हो गया है। उम्मीद की जा रही है कि यह 6 जनवरी को अपनी तय जगह यानी लैगरेंज प्वाइंट पर रीच पर पहुंचेगा। ये जगह धरती से 15 लाख किमी दूर है।

आदित्य एल1 को 2 सितंबर को श्रीहरिकोटा स्थित शेरशीव अंतरिक्ष केंद्र (एसएचएआर) द्वारा लॉन्च किया गया था। यह मिशन सूर्य के अध्ययन के लिए शुरू किया गया है।

L1 में प्रवेश मिशन का सबसे कठिन चरण है। इसके लिए बुनियादी नेविगेशन और नियंत्रण की आवश्यकता होगी। L1 की ओर से प्लेसेट ऑर्बिट में स्थापित होने से पहले आदित्य L1 से पृथ्वी से जुड़े चार कक्षीय क्रिएटिविटी की एक श्रृंखला से जुड़ गए हैं। अंतरिक्ष यान को हेलो ऑर्बिट में प्रवेश के लिए अपना ट्रेजेक्ट्री और वेलोसिटी बनाए रखना जरूरी है।

23 दिसंबर को ही इसरो चीफ के सोमनाथ ने जानकारी दी थी कि आदित्य एल1 किस अपनी जगह पर नियुक्त होंगे, इसकी घोषणा सही समय पर की जाएगी।

L1 पॉइंट पर 5 साल स्थापित रहेगा
सोम के अनुसार, जब आदित्य एल1 लैगरेंज प्वाइंट पर पहुंचे, हम एक बार फिर इंजन शुरू करेंगे, ताकि ये आगे न बढ़ें। जब ये अपने नियत स्थान तक पहुँचेंगे तो यह उस बिंदु के चारों ओर चक्करगा और कहीं बना रहेगा।

इसरो प्रमुख ने यह भी बताया था कि एक बार जब आदित्य एल1 अपने निर्धारित स्थान लैगरेंज प्वाइंट पर स्थापित हो जाएगा तो वह वहां 5 साल तक रहेगा। आदित्य एल1 सूर्य में वाली चट्टान की जानकारी केवल भारत को नहीं, बल्कि पूरी दुनिया को होगी। ये डेटा सूर्य के संकेतों को समझने में आसान होगा। इस डेटा से ये भी मदद मिलेगी कि सूर्य कैसा हमारा जीवन पर दिखता है।

लैगरेंज पॉइंट-1 (L1) क्या है?
लैग्रेंज प्वाइंट का नाम इतालवी-फ्रांसीसी गणितज्ञ जोसेफी-लुई लैग्रेंज का नाम रखा गया है। इसे बोलचाल में L1 नाम से जाना जाता है। ऐसे पांच बिंदु पृथ्वी और सूर्य के बीच हैं, जहां सूर्य और पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल बनता है और सेंट्रीफ्यूगल बल बनता है। ऐसे में इस जगह पर अगर कोई सामान रखा जाए तो वह आसानी से उस बिंदु के चारों ओर चक्कर लगाने लगता है। पहला लैगरेंज बिंदु पृथ्वी और सूर्य के बीच 15 लाख किलोमीटर की दूरी पर है। इस बिंदु पर ग्रहण का प्रभाव नहीं है।

सूर्य की अध्ययन आवश्यक क्यों?
जिस सौर्य प्रणाली में हमारी पृथ्वी है, उसका केंद्र सूर्य ही है। सभी आठ ग्रह सूर्य का ही चक्कर हैं। सूर्य की वजह से ही पृथ्वी पर जीवन है। सूर्य से लगातार ऊर्जा का निर्यात होता है। हम चार्ज्ड पार्टिकल्स कहते हैं। सूर्य का अध्ययन करके यह समझा जा सकता है कि सूर्य में होने वाले परिवर्तनों से अंतरिक्ष और पृथ्वी पर जीवन कितना प्रभावित हो सकता है।

आदित्य एल1 ने खींची सूर्य की पहली फुल तस्वीरें: टेलिस्कोप ने 11 फिल्मी सितारे; 7 जनवरी तक लैगरेंज प्वाइंट पर पहुंचने की उम्मीद है

भारत के पहले सूर्य मिशन आदित्य एल1 में सूर्य की फुल डिस्क तस्वीरें खींची गई हैं। टेलीस्कोप के लिए 11 फिल्टर का इस्तेमाल किया गया है। इसरो ने शुक्रवार (8 दिसंबर) को एक्स पर इन आंकड़ों को साझा किया। साथ ही लिखा- SUIT ने जो तस्वीरें खींची हैं, उनमें सनस्पॉट, ब्लैक स्पॉट, सूरज का शांत क्षेत्र नजर आ रहा है। पूरी खबर पढ़ें…

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