विधि आयोग ने मौजूदा कानूनों में संशोधन का प्रस्ताव रखा; अपराधियों को जमानत पाने के लिए सार्वजनिक संपत्ति को हुए नुकसान की भरपाई करनी होगी | सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान पर लॉ सलाहकार की सलाह: जब तक नुकसान की भरपाई ना हो, तब तक दंगों को जायज़ ना दिया जाए

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नई दिल्ली5 मिनट पहले

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अभी दंगा करने वालों पर सार्वजनिक संपत्ति क्षति क्षति अधिनियम 1984 का मामला दर्ज है।  - दैनिक भास्कर

अभी दंगा करने वालों पर सार्वजनिक संपत्ति क्षति क्षति अधिनियम 1984 का मामला दर्ज है।

22वें विधि आयोग ने शुक्रवार 2 फरवरी को मोदी सरकार को एक रिपोर्ट जारी की। रविवार को सामने आई इस रिपोर्ट में दंगाइयों के लिए जमानतदारों की हत्या कर दी गई है।

विशेषज्ञ ने सुझाव दिया है कि सड़क जाम करने और तोड़फोड़ करने वालों को सार्वजनिक-निजी संपत्ति को नुकसान के बाजार मूल्य के बराबर कम किया जाए। दंगाइयों से ग़रीबों के बाद ही ज़मानत दी जाए।

सरकार राष्ट्रीय राजमार्ग या सार्वजनिक स्थान पर बार-बार नाकाबंदी या प्रदर्शन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करें।

आयोग ने कहा- केरल की तरह अलग कानून बनाया जा सकता है
लॉ पैनल की रिपोर्ट में बताया गया कि अविश्वासी का मतलब उस राशि से है, जो डैमेज हुई संपत्ति के बाजार के बराबर होगी। अगर इस वसीयतनामा का दस्तावेजीकरण संभव नहीं है, तो इसका कुल अमाउंट तय किया जा सकता है। इतना ही नहीं पैनल ने कहा कि इस बदलाव को लागू करने के लिए सरकार एक अलग कानून ला सकती है।

पैनल ने बताया कि केरल में निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने से रोकने और दमन भुगतान अधिनियम बनाया गया है। सरकार इसे भारतीय न्याय संहिता के लागू करने के लिए विविधता में बदलाव या नामांकन भी स्वीकार कर सकती है।

22वें विधि आयोग ने 248वीं रिपोर्ट में लेखकों का भी ज़िक्र किया
आयोग विधि की 284वीं रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकारी संपत्ति की कीमत जमा करने के लिए निवेशकों को निश्चित रूप से संपत्ति को नुकसान से बचाने के लिए मजबूर किया जाएगा। वास्तव में, आयोग ने बड़े पैमाने पर बड़े पैमाने पर निवेशकों का ध्यान आकर्षित करने के लिए यह संशोधन किया।

इनमें से 2013 के प्रमुख अवशेष, जाट (2015) और पाटीदार (2016) पूर्वोत्तर आंदोलन, भीमा कोरेगांव विरोध (2018), सीएए विरोधी प्रदर्शन (2019), कृषि कानून आंदोलन (2020) से लेकर पैगंबर मोहम्मद (2022) पर की गई टिप्पणी बाद में हुई हिंसा और पिछले साल के स्कूलों में चल रही जातीय हिंसा शामिल है।

अपराधी मानहानी को परास्त किया जाए
आयोग ने शुक्रवार को ही एक अलग रिपोर्ट में अपराधी मन्हानी के अपराध को बरकरार रखने की बात कही है। आयोग की 285वीं रिपोर्ट में कहा गया है कि लोगों को दुर्भावनापूर्ण झूठ से बचाव की जरूरत के साथ-साथ डॉक्टर बोलने वाली बातों को नियंत्रित करना जरूरी है ताकि किसी व्यक्ति की छवि धूमिल न हो।

यह मामला अगस्त 2017 में विधि मंत्रालय द्वारा लॉ पैनल को भेजा गया था। पैनल ने सुब्रमण्यम स्वामी बनाम भारत संघ में सुप्रीम कोर्ट के 2016 के फैसले को विश्वसनीय बताया, जिसमें कोर्ट ने आपराधिक मनहानी के अपराध की संवैधानिकता को बरकरार रखा था।

कोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 19(2) के तहत भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार, प्रतिष्ठा के अधिकार की रक्षा करना कुछ आवश्यक प्रावधानों के अंतर्गत आता है।

क्रिमिनल मैनहानी लॉ के मिथ्याचार के दोषियों पर आयोग ने लिखा है कि अपराध की सजा के रूप में एसाइकिल सेवा शुरू करके पीड़ितों के हितों की रक्षा की जा रही है और वैकल्पिक सज़ा ने इसके मुजरिमों को भी दोषी ठहराया है।

अमित शाह ने तीन विधानमंडलों में बदलाव के बिल पेश किये थे
गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में 163 साल पुराने 3 आवासीय भवनों में बदलाव के बिल शीतकालीन सत्र 2023 में पेश किए थे। राजद्रोह कानून में सबसे बड़ा बदलाव लाया गया है, जो नए स्वरूप में लाया जाएगा। ये बिल इंडियन पीनल कोड (आईपीसी), क्रिमिनल प्रोसीजर कोड (सीआरपीसी) और एविडेंस एक्ट हैं।

त्रिमूर्ति भवन को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 25 दिसंबर को अपनी सहमति दे दी। नए कानून में विशेष रूप से भारतीय दंड संहिता, आपराधिक प्रक्रिया संहिता और भारतीय विशिष्टता अधिनियम की जगह शामिल है। फुल ड्रू ऑफ़लाइन सिस्टम सुनिश्चित करने के लिए चंडीगढ़ में एक ट्रायल चलाया जाएगा क्योंकि अधिकांश रिकॉर्ड इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल होंगे।

नए मॉडल को लेकर ऐतिहासिक अधिकारियों की ट्रेनिंग के लिए गृह मंत्रालय पहले ही परामर्श कर चुका है। ट्रेनिंग भोपाल की अकादमी में दी जाएगी।

नए कॉलेज से क्या बदलेगा

  • कई धाराएँ और प्रार्थनाएँ अब बदलेंगे। आईपीसी में 511 धाराएं हैं, जो 356 धाराएं हैं। 175 धाराएँ स्केलगी। 8 नई जोड़ी रचना, 22 धाराएँ समाप्त हो गईं।
  • इसी तरह सीआरपीसी में 533 धाराएं। 160 धाराएं स्केलंगी, 9 नई जुड़ेंगी, 9 समाप्त हो जाएंगी। पूछताछ से वीडियो कॉन्फ्रेंस तक करने का प्रोविजन होगा, जो पहले नहीं था।
  • सबसे बड़ा बदलाव ये है कि अब कोर्ट को हर फैसले में ज्यादातर 3 साल की सजा होगी।
  • देश में 5 करोड़ केस पेंडिंग हैं। इनमें से 4.44 करोड़ केस ट्रायल कोर्ट में हैं। इसी प्रकार जिला जजों के 25,042 न्यायालयों में से 5,850 पद रिक्त हैं।
  • त्रिविध विधेयक जांच के लिए संसदीय समिति के पास भेजे गए हैं। इसके बाद येसोम और सागर में बंद हो जायेंगे।

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