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- राज्य और जिला उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष और सदस्य नियुक्ति सीजी डिप्टी चंद्रचूड़ सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता
नई दिल्ली5 मिनट पहले
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सीजेआई देवी चंद्रचूड़ की लोधी वाली बेंच ने राज्य एवं जिला उपभोक्ता समस्या निवारण आयोगों (एससीडीआरसीएस) के अध्यक्ष और सदस्यों की चयन प्रक्रिया की शुक्रवार (2 जनवरी) को सुनवाई की। बेंच ने आयोग के अध्यक्ष और सदस्य के लिए एचसी और जिला न्यायालय के न्यायाधीशों को एतराज बज़हा पर लिखा और साक्षात्कार दिया।
सीजेआई ने केंद्र सरकार की ओर से पेश किए गए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि वे कंज्यूमर अफेयर्स मंत्रालय के फैसले के प्रभाव का आकलन करें, जजों के लिए सलाह की जरूरत है और छूट के लिए आवेदन प्रारूप तैयार करना है।
एसजी ने कहा कि वे आवेदन एक हफ्ते के लिए सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल करेंगे। अब बेंच इस मामले में 15 फरवरी को आगे की सुनवाई करेगी।
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रिटन टेस्ट और साक्षात्कार की आवश्यकता को अस्वीकार करें
वहीं, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सीजेआई की कंसोएट स्टेज पर बात की, लेकिन उन्होंने कहा कि सरकार ने चयन में संशोधन करके एससीडीआरसी अध्यक्ष बनने के लिए जजों के लिए रिटन टेस्ट और साक्षात्कार की आवश्यकताओं को समाप्त कर दिया है।
उन्होंने आगे कहा कि जस्टिस मैथ्यू शाह और जस्टिस सुंदरेश की याचिका को 3 मार्च 2023 को खारिज कर दिया गया था।
SC ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए कहा था कि राज्य आयोग और जिला फोरम में अध्यक्ष और मंडल की नियुक्ति के लिए दो पेपर वाली लिखित परीक्षा में प्रदर्शन के आधार पर की जाएगी।
लिखित पेपर में 50 फीसदी नंबर लाना जरूरी, इंटरव्यू 50 नंबर का
- अध्यक्ष और मंडल के पद की पेशकश के लिए तय किया गया कि दो रिटन टेस्ट होंगे जो 100-100 नंबर के होंगे। इनमें से सामान्य ज्ञान, संवैधानिक कानून और उपभोक्ता कानून के प्रश्न होंगे।
- कंजूमर से जुड़े सामान और सार्वजनिक मामलों पर निबंध लिखना भी शामिल होगा।
- साथ ही केश अध्ययन भी लिखना होगा, जिसमें जजों को अपनी क्षमता और निर्माण के बारे में जानकारी होगी।
- SC ने यह भी कहा था कि दोनों रिटन टेस्ट में पास होने के लिए कम से कम 50 प्रतिशत नंबर लाना जरूरी है। 50 नंबर का इंटरव्यू। कुल मार्किंग 250 नंबर से की जाएगी।
क्या होता है उपभोक्ता मंच? उपयोगकर्ता मंच भी एक अदालत है। यह कानून एक सिविल न्यायालय द्वारा दी गई शक्तियों की तरह ही शक्तियाँ प्राप्त करता है। मुवक्किल न्यायालय की जननी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 है। इस अधिनियम के साथ उपभोक्ता फोरम की शुरुआत हुई। उपभोक्ता का मतलब ग्राहक होता है.
पहले भारत में उपभोक्ताओं के लिए कोई प्रत्यक्ष ध्यान नहीं था जो सिर्फ उद्देश्य से जुड़े मामले ही दिए गए थे। किसी भी ग्राहक के ठगे जाने पर उस पर सिविल कोर्ट में मुकदमा चला।
भारत में सिविल कोर्ट में काफी वैशिष्ट्य का सामना करना पड़ा था, फिर सिविल कोर्ट में मुकदमा दायर करने के लिए कोर्ट में फीस भी अदा की गई थी, इस तरह वैश्वीकरण में दोगनी मार बैंड थी, एक तरफ वह ठगे गए थे और दूसरी तरफ उन्हें रुपये खर्च करके कोर्ट में जस्टिस फ्रेंड के लिए मुकदमा दर्ज करना पड़ा।
इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए भारत में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 बनाया गया है, जिसे अंग्रेजी में कंज्यूमर संरक्षण अधिनियम 1986 कहा जाता है। अभी हाल ही में इस एक्ट में 2019 में काफी सारे संशोधन किए गए हैं जिन्होंने इस कानून को हिट में और काफी हद तक आसान बना दिया है।