नई दिल्ली24 मिनट पहले
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मिजोरम में अब 3 दिसंबर की जगह 4 दिसंबर को तीसरी होगी। शुक्रवार यानी 1 दिसंबर को चुनाव आयोग ने यह जानकारी दी। राज्य की 40 वीं सदी में 7 नवंबर को वोटिंग हुई थी, 3 दिसंबर यानी रविवार को हुई थी। इसके विरोध में प्लास्टर कॉर्डिनेशन कमेटी (एनजीओसीसी), सेंट्रल यंग मिजो एसोसिएशन (सीवाईएमए) और मिजो जिरलाई पॉल (एमजेडपी) संगठन प्रदर्शन कर रहे थे।
पूर्वी, मिजोरम में बड़ी संख्या में ईसाई समुदाय के लोग रहते हैं। रविवार को ईसाइयों के लिए पवित्र दिन होता है, और ईसाई समुदाय कई धार्मिक कार्यक्रम आयोजित करता है। गिनती के कारण अलग-अलग बदलाव करना चाहते हैं, इसलिए मांग की जा रही थी कि इस दिन राज्य में वोट गिनती न कराई जाए। राज्य की कुल जनसंख्या करीब 11 लाख से 9.56 लाख ईसाई हैं।
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लगातार कई दिनों से विरोध प्रदर्शन जारी था। शुक्रवार (1 दिसंबर) को इन लोगों ने स्कॉटलैंड के पास एक रैली की। एनजीओसीसी के पूर्व छात्र लालहम दागना ने चुनाव आयोग पर आरोप लगाया कि पॉलिटिकल पार्टी, चर्चों और एनजीओ ने चुनाव आयोग से कई बार मतगणना की तारीख तय की, लेकिन उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
मिजोरम के 40 जिलों में 7 नवंबर को वोटिंग हुई थी। राज्य में 77.04% मतदान हुआ। सेरचिप में सबसे ज्यादा 77.78% तो सियाहा में सबसे कम 52.02% मतदान हुआ। आइजोल में 65.06% वोटिंग हुई। मिजोरम में 2018 विधानसभा चुनाव में 81.61% वोट पड़े।
मिजोरम का इलेक्ट्रॉनिक पोल…
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विशेष मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ), जोरम पीपुल्स (जेडपीएम) और कांग्रेस ने सभी 40 वार्डों में चुनाव लड़ा। वहीं, बीजेपी ने 23 और आम आदमी पार्टी ने 4 सीटों पर बढ़त बनाई थी। 27 लोगों ने एकजुट किया चुनावी मुकाबला। नतीजे 3 दिसंबर को आएंगे।
65 साल के केवर्कर ने की भूख हड़ताल की
आइजोल में 65 साल के एक्टिविस्ट लालबियाकथंगा वोट वाले दिन 7 नवंबर को सुबह 7 बजे से शाम 4 बजे तक भूख हड़ताल पर बैठे। उन्होंने मांग की थी कि चुनाव आयोग को 3 दिसंबर को होने वाली काउंसिलिंग का दिन दोबारा मिलना चाहिए। 3 दिसंबर को रविवार है। कई डेवलपर्स ने भी मांग की थी कि रविवार को होने वाली डेटिंग के दिन को बदला जाना चाहिए। क्योंकि इसके लिए चर्च के कार्यक्रम छोड़ेंगे। मिजोरम में ईसाइयों की बड़ी आबादी है।
मिजोरम चुनाव के 4 बिंदु…
1. मिजो नेशनल फ्रंट, कांग्रेस और जोरम जनता के बीच त्रिकोणीय प्रतियोगिता
मिजोरम विधानसभा चुनाव में भाजपा का वर्चस्व कायम नहीं है। यहां अस्थायी मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ), जोरम पीपल्स डिवोर्स और कांग्रेस के बीच त्रिकोणीय मुकाबला रहता है। 2018 में कांग्रेस को हराया एमएनएफ ने 10 साल बाद सत्ता हासिल की थी। सबसे बड़ा उलटफेर था कि कांग्रेस तीसरे नंबर पर रही और नामांकन की भूमिका में जोरम पीपल्स की आवाज चली गई। वहीं बीजेपी को पिछले चुनाव में सिर्फ एक सीट मिली थी।
2. मिजोरम के सीएम केंद्र में एनडीए के साथ हैं, लेकिन राज्य में अलग
सीएम जोरमथांगा की पार्टी मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) भाजपा के नेतृत्व वाली नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (एनईडीए) और केंद्र में पदस्थ एनडीए में शामिल हैं। हालाँकि, एमएनएफ मिजोरम में भाजपा से अलग है। लोकसभा में एमएनएफ से पूर्ण बहुमत लालरोसांगा हैं। जहाँ-जहाँ भी एमएनएफ का एक ही अल्पसंख्यक हैं और उनका नाम वनलालवेना है। वैसे तो यह पार्टी एनडीए के साथ बनी हुई है, मगर माक्र्स हिंसा को लेकर एमएनएफ की केंद्र सरकार से नामांकन कर रहे हैं।
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3. मिजोरम में ईसाई वोटर्स सबसे अहम, सीएम का मोदी के साथ स्टेज शेयर करने से इनकारमिजोरम में इस बार बीजेपी और एमएनएफ अलग-अलग चुनावी मैदान में हैं। अमेरिकी हिंसा की प्रतिक्रिया मिजोरम तक की तस्वीरें हुई हैं। सीएम जोरमथंगा ने 24 अक्टूबर को एक कार्यक्रम में कहा था, ‘मैं पीएम के साथ स्टेज शेयर नहीं करूंगा, क्योंकि मठवासी लोगों ने चर्च जलाए।’ इसी वजह से हम बीजेपी का साथ नहीं दे सकते।’
त्रिपुरा, मिजोरम में 87 प्रतिशत जनसंख्या ईसाई है। ऐसे में जोरमथांगा अपने ईसाई मतदाताओं को नाराज करने का जोखिम नहीं उठाना चाहता। इसके अलावा राज्य में इस बार संकट से उबरने के लिए प्रमुख पदों की तलाश है।
4. इस बार नोबेल हिंसा का मिजोरम की पॉलिटिक्स पर असर
मिजोरम में इस बार के विधानसभा चुनाव में विद्वानों का काफी अहम रहना है। 25 जुलाई को आइजोल में हजारों लोगों ने कुकी समुदाय के समर्थन में रैली निकाली थी। इस रैली में सीएम जोरमथांगा भी शामिल हुए थे. उनका संकेत था कि इस बार की नेपोलियन हिंसा में निजीकरण बनने वाला है।
न्यूयार्क राहुल कांग्रेस ने 16 अक्टूबर को मिजोरम के आइजोल में एक रैली को संबोधित करते हुए माओवादी पर बात की थी। राहुल ने कहा- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना इजराइल में होने वाली घटनाओं से सबसे ज्यादा चिंता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को है. 3 मई के बाद हुई हिंसा के बाद अब एक राज्य में नहीं रहेंगे बल्कि जाति के आधार पर दो विचारधारा में बंटवारा होगा।
मिजोरम 2018 चुनाव का परिणाम और स्थिर स्थिति…
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मिजोरम में 2018 विधानसभा चुनाव के 10 साल बाद मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) की वापसी हुई। कुल 40 नामांकन पर हुए चुनाव में एमएनएफ को 26 सदस्य मिले, वही कांग्रेस के पांच सदस्य शामिल हुए। इसके अलावा जोरम जनता को 8 तीर्थ मिले और एक सीट भाजपा के खाते में आई। अस्थायी मिजो नेशनल फ्रंट पार्टी ने जोरामथांगा को सीएम बनाया। विधानसभा की अंतिम स्थिति की बात करें तो मिजो नेशनल फ्रंट के पास इस समय 28 विधायक हैं। कांग्रेस के पास 5, जोरम जनता के पास 1, बीजेपी के पास 1 और पांच शोक हैं।