मणिपुर हिंसा…शिविरों में भोजन का संकट | ठंड से बचने के लिए भी नहीं, गंदगी और पानी से बीमारी का डर

इन्फाल5 मिनट पहले

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पूरे छह महीने तक चली हिंसा के बाद भी कई लोग राहत शिविरों में रहने को मजबूर हैं। मौसम में सर्दियाँ आ रही हैं, लेकिन शिविरों में रहने वाले लोगों के पास गर्म कपड़े तक नहीं हैं। दो वक्त की रोटी भी मुश्किल से मिल रही है। सबसे बड़ी समस्या पानी की है। प्लांट में पानी और कूड़े से होने वाली बीमारी का डर है। गर्भवती, बच्चे, नई और बुजुर्ग महिलाएं हर दिन सुबह के इंतजार में कट रही हैं।

मोरेह के आइटम कैंप में रहने वाली नानथोइबी (24 वर्ष) के सलाहकार हैं, कैंपों में स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं हैं। साफ़-सफ़ाई, उपकरण के लिए भी पानी नहीं। गेटी से इफ़ेक्शन है।

सामाजिक संगठन और स्थानीय लोग शिविरों में रहने वालों की मदद कर रहे हैं। वे आदिम के लिए चावल, तेल, कपड़े और बाकी जरूरी सामान के उद्योग में लगे हैं, लेकिन वक्ते के साथ उनके लिए भी मुश्किलें खड़ी हो रही हैं।

आइडियल गर्ल्स कॉलेज में रिलीफ कैंप में वालंटियर तिलानंद सिंह ने बताया, अब हमें एक-एक फर्म के शेयरों में छूट मिल रही है। प्लेस के सदस्यों का कहना है कि सरकार विश्विद्यालय बसाने पर निर्णय करे, दूसरे की कठिनाइयाँ समाप्त हो जाएँगी।

शिविरों में बच्चों को दूध पिलाना भी मुश्किल
मोरेह में हिंसा भड़कने के बाद वहां रहने वाली बसंती देवी (24 वर्ष) को अपना घर छोड़कर भागना पड़ा था। वे 3 मई से यहां अपने पांच महीने के बच्चे के साथ हैं। बसंती कहते हैं कि हर दिन रो-रोकर काट रही हूं। किसी तरह से अपने परिवार के साथ वापस सामान्य जीवन की तलाश में हूं। हमें जान जोखिम के लिए यहां आना पड़ा था। मैं और मेरा बच्चा दोनों बीमार हैं। इस कैंप को चलाने वाले स्थानीय क्लब के लोग हमें बहुत मदद कर रहे हैं। मां बनने के बाद कई तरह की स्वास्थ्य से जुड़ी बातें हो रही हैं। यहां इतनी जगह भी नहीं कि मैं अपने बच्चे को दूध पिलाने की सुविधा से आराम कर सकूं।

डेमोक्रेट में हिंसा के बाद वेस्ट इंफाल के लैम्सांग में बने रिलीफ कैंप में रह रहे बच्चे।  यह तस्वीर 25 जुलाई की है।

डेमोक्रेट में हिंसा के बाद वेस्ट इंफाल के लैम्सांग में बने रिलीफ कैंप में रह रहे बच्चे। यह तस्वीर 25 जुलाई की है।

लोग बोले- शिविरों में आदिवासियों हैं
नानथोइबी परिवार के साथ चूड़ाचांदपुर वापस अपने घर जाना चाहते हैं। वे कहते हैं, यहां के स्थान भिन्न हैं। मेरे साथ सात माह का बच्चा, सास-ससुर, पति और उनकी बहन हैं। 3 मई को घर जला दिया गया। भागते समय कुछ भी साथ नहीं ला पाया। ये भी नहीं पता कि इस तरह कब तक रहना चाहते हैं। आत्मविश्वास से थके हुए हैं, कोई उम्मीद नहीं दिखती।

हिंसा में सिद्धांत, किताबें, घर सब जल गया
युनाम नरेंद्र राजनीति शास्त्र की पढ़ाई कर रहे हैं। मोरेह के वार्ड नंबर 7 में रहने वाले 19 साल से युनाम बी में बेरोजगार लोग हैं। उनका पूरा परिवार कैंप में है। हमारा घर तो जल गया। कुछ नहीं बचा. हम कहाँ हैं? घर के साथ ही किताबें, सिद्धांत सब कुछ जल गए। हम जैसे मासूमों का क्या कसूर था? राठौड़ ने हमें क्यों बनाया?

ये तस्वीरें जून के बाद की हिंसा की हैं।  सेना के जवान परिवार को राहत शिविर ले जाया गया।

ये तस्वीरें जून के बाद की हिंसा की हैं। सेना के जवान परिवार को राहत शिविर ले जाया गया।

न ज़मीन, न पैसा और न हाथ में
सालगोलसेम थोईजाओ देवी दो बच्चों की मां हैं। तेंगनुपाल जिले में 4 मई को हुए हमलों के बाद जान घर से भागी थी। वह कहती हैं, हमारे पास गुजराते के लिए कोई काम नहीं है। बच्चे भी हैं. भविष्य की चिंता है। यहां है हर चीज की कमी। मैं चिंतित हूं, सरकार और नेताओं को हमारी और मदद करनी चाहिए। न हमारे पास जमीन है, न काम और न हाथ में पैसा।

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कंपनियों की आबादी करीब 38 लाख है। यहां तीन प्रमुख समुदाय हैं- मैतेई, नागा और कुकी। मैताई ज्यादातर हिंदू हैं। नागा-कुकी ईसाई धर्म को मानते हैं। एसटी वर्ग में आते हैं। जापानी आबादी करीब 50% है। राज्य के करीब 10% क्षेत्र में इन्फाल घाटी मैतेई समुदाय बहुल है। नागा-कुकी की जनसंख्या करीब 34 प्रतिशत है। ये लोग राज्य के करीब 90% इलाके में रहते हैं।

कैसे शुरू हुआ विवाद: मैतेई समुदाय की मांग है कि उन्हें भी जनजाति का दर्जा दिया जाए। समुदाय ने इसके लिए डेमोक्रेट उच्च न्यायालय में याचिका दायर की। कम्यूनिटी का विलय था कि 1949 में कम्युनिस्टों का भारत में विलय हो गया था। उन्हें सबसे पहले ट्राइब का ही लेबल मिला था। इसके बाद उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार से सैक्सो की मैतेई को जनजाति जनजाति (एसटी) में शामिल कर लिया।

मैतेई का तर्क क्या है: मैतेई जनजाति का मानना ​​है कि सबसे पहले उनके राजा को म्यांमार से कुकी विजय युद्ध के लिए बुलाया गया था। उसके बाद ये स्थायी निवासी चले गये। इन लोगों ने रोजगार के लिए जंगल केट और पहाड़ की खेती करना शुरू कर दिया। इन प्रयोगशालाओं का ट्रॉयंगल बन गया है। यह सब मेडिकल हो रहा है। अन्य नागा लोगों ने लड़ाई के लिए हथियार समूह बनाया।

नागा-कुकी विरोध में क्यों हैं: बाकी तीनों जनजाति मैतेई समुदाय को तटस्थता के विरोध में हैं। इसमें कहा गया है कि राज्य की 60 से 40 सीट पहले से मैतेई बहुल इंफाल घाटी में हैं। ऐसे में एसटी वर्ग में मैतेई को अनोखा मिलन से उनके अधिकार का बंटवारा होगा।

तृतीयक गुणांक क्या हैं: टीमों के 60 प्रतिनिधियों में से 40 नेता मैतेई और 20 सदस्य नागा-कुकी जनजाति से हैं। अब तक 12 CM में से दो ही जनजाति से रह रहे हैं।

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