भास्कर राय- भारत बनाम ऑस्ट्रेलिया वर्ल्ड कप फाइनल | हार से पहले जीत है | हार के आगे जीत है, आसमाँ और भी हैं, अभी वो टूट कर नहीं गिरा

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11 मिनट पहले

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पता है लगातार दस जीत के बाद हम एक-दूसरे की आंखों में जो दम दिखाते हैं, फाइनल की हार के साथ टूटे। रविवार की दोपहर आसमान में सूर्यकिरण की गड़गड़ाहट थी और नीचे स्टेडियम में ब्लू जन समुद्र तट पर उम्मीदों से गूंजायमान था। मैच शुरू होने के बाद जब रोहित कंगारुओं को कोट कर रहे थे, समुद्र की लहरें पैर पार कर रही थीं।

लेकिन पहले गिल और बाद में जब रोहित रेफ़रेंट, समुद्र भी शांत हो गया। उम्मीदों की लहरें थम सी गईं। हॉफ सेंचुरी के बाद जब विराट आउट हुए तो थमी हुई लहरें बैठ गईं। सब कुछ सुन्न हो गया।

जिस तरह ऊपर सूर्यकिरण प्लांट रह रहे थे, लगभग उसी गड़गड़ाहट के साथ सूर्यकुमार यादव आये थे लेकिन दबाव इतना अधिक था कि अधिक कुछ कर नहीं पाया। भारत की पारी 240 पर स्थापित।

उम्मीदों का सफर देखिए कि गिल आउट हुए तो हमने रोहित से कहा। रोहित गये तो विराट पर। विराट के बाद राहुल, बिटकॉइन और सूर्यकुमार पर पूछताछ टिक टिक। ये जब बहुत बड़ा स्कोर नहीं बना तो लोग शमी को याद करने लगे।

अवलोकन – लगे अब शमी ही बचा सकते हैं। और शमी भी पहुंचे मुंबई में। वॉर्नर को बाहर भेज दिया गया। इसके बाद सुपरस्टार ने दो और विकेट लिए। हमारी आवाज़ में ठसक आ गई लेकिन वो भी कुछ ही देर में फुर्र हो गई।

ठीक है, फ़ाइनल में वो तालियाँ लेकिन पियानो बजाती जो पिछले दस मैचों से जोश जगाती आई थी इतनी है कि ये तालियाँ हमारे तय तालियाँ में पियानो बजाती हैं। आशाओं का आस्माँ जो सिर पर सिन्दूर मले, जब से कहा गया था पुरोहितों की तरह, अचानक टूट गया।

जब उम्मीद की जा रही थी कि ऑस्ट्रेलिया के खिलाड़ियों ने आउट से मंदी कर दी और शाम को ही पुराना आकाश उगने लगा। दूसरा पासर गया। देश में भी और स्टेडियम में बैठे सवा लाख लोगों के बीच भी।

ऑस्ट्रेलिया क्रिकेट टीम छठी बार वर्ल्डकप का खिताब जीता है।

ऑस्ट्रेलिया क्रिकेट टीम छठी बार वर्ल्डकप का खिताब जीता है।

मैच जब शुरू हुआ तो लगा हम सड़क पर डोलती परछाइयों को जिंदगी देने वाले हैं। जहाज़ों को गति दे दिये, लेकिन ये हो ना सका। रात का विमोचन काला कोट पहनावा हमारे सामने खड़ा हो गया। जिस हवा को हम स्पीड देने वाले थे, वह भी अपनी खुशबू के वजन से लड़खड़ाने लगी।

खैर जहां और भी हैं। रास्ता खाली नहीं हुआ। हमारी उम्मीदों ने सीलोन के समंदर से मलाया के जजीरों तक, कई घनी रातें झुलसी हैं। इसे भी पचा जाएँगे। ठीक है, अपने-अपने हिस्से के भूख के साथ सब अपने-अपने हिस्से का खाना नहीं खाते।

ठीक है, गलियाँ जो मुन्तज़िर थीं, आदिवासियों की आहट की, अचानक वे भी सो गईं लेकिन आसमां और भी हैं। वो टूटकर अभी गिरा नहीं है। हम उसे दे भी नहीं देंगे। पिछले 10 मैचों में हमने जो तालियां बजाईं, वो हमारे पियानो में गूंजती चंचल।

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