भास्कर राय- चुनाव और छापेमारी | चुनाव के दौरान नीतिगत निर्णय लेना मनही है, छापों की नहीं!

15 मिनट पहलेलेखक: नवनीत गुर्जर, नेशनल भास्कर, दैनिक भास्कर

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सभी जानते हैं, विशिष्ट राजनीतिक दल और उनके नेता तो अच्छी तरह से जानते हैं कि सत्ता जब जाती है तो घुंघरू बांध नहीं जाती। अवशेष खिसका दिया जाता है। राजस्थान में सत्ता का यह सिद्धांत दोनों संप्रदायों में कायम है। एक को सत्य जाने का। अन्य को सत्य वस्तु या नहीं, आई.एस.

दोनों ही एक-दूसरे पर तगड़े आरोप लगा रहे हैं। कांग्रेस कह रही है कि एक केंद्रीय मंत्री बड़े घोटाले में शामिल हैं। हम सुधा को कहते हैं- थक गए थे, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। दूसरी तरफ हार के डर से कांग्रेस के नेता एक के बाद एक वंचित हमले में मारे जा रहे हैं। इस बार कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष की है।

दूसरी तरफ बीजेपी का कहना है कि अगर आप पाक-साफ हो तो छापों से क्यों डर रहे हो? अब सवाल यह है कि चुनावी आचार संहिता में जब नीतिगत निर्णय लेने की छूट को मनाही होती है तो छापों की कार्रवाई किस श्रेणी में होगी? अगर यह आचार संहिता का उल्लंघन नहीं है तो चुनाव से पहले पांच साल तक पीएचडी क्या कर रही थी?

यदि कोई दोषी है या उस पर कोई आरोप है तो चुनाव लड़ने से पहले भी मारा जा सकता है। बीच चुनाव में ही क्यों? यह सवाल सिर्फ इसलिए नहीं है कि केंद्र में फिलहाल भाजपा की सरकार है बल्कि सवाल यह है कि केंद्र में किसी और दल की सरकार आ जाए और वह भी चुनाव के वक्त अपने विरोधी नेताओं पर हमला कर दे तो यह कार्रवाई तर्क संगत कैसे कही हो सकता है?

राजस्थान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के जयपुर स्थित सरकारी आवास पर ईडी की कार्रवाई गुरुवार सुबह करीब साढ़े नौ बजे शुरू हुई जो दोपहर 2:15 बजे तक चली।

राजस्थान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के जयपुर स्थित सरकारी आवास पर ईडी की कार्रवाई गुरुवार सुबह करीब साढ़े नौ बजे शुरू हुई जो दोपहर 2:15 बजे तक चली।

खैर, केंद्र में जब भी, जिस दल की भी सरकार रही, वह अपनी कंपनी की। शिक्षा केंद्र का अपने खाते से उपयोग किया गया। यह किसी से छिपा नहीं है कि कांग्रेस की सरकार केंद्र में रह रही हो, भाजपा की रही हो या किसी अन्य दल की, केंद्रीय शिक्षा को इन सभी ने अपने खाते से ही स्थान दिया हो। अब ऐसा हो रहा है तो इसमें अचरज कैसा?

बिजनेस, इक्का-दुक्का जैसी घटनाएं छोड़ दी गईं तो मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ पर ‘मेहरबान’ की विचारधारा आजकल राजस्थान में नहीं है। राजस्थान में दोनों धर्मों के लिए लड़ाई अधिक बड़ी है, ऐसा समझा जा रहा है। जहां तक ​​चुनाव आयोग का सवाल है, उसमें कोई हस्तक्षेप करना चाहिए या नहीं, इस बारे में स्थिर नियम हैं।

होना तो यह चाहिए कि इस तरह की संबंधित कार्रवाई चुनाव की घोषणा से पहले होनी चाहिए। बीच चुनाव में नहीं।

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