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- पीएम मोदी ने फिलिस्तीन के राष्ट्रपति से बात की| इज़राइल हमास गाजा युद्ध स्थिति लाइव अपडेट
नई दिल्ली5 मिनट पहले
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फिलिस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास से फोन पर बातचीत की। (फ़ॉलो फोटो)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 अक्टूबर गुरुवार को फिलिस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास से बातचीत की है। इस दौरान पीएम ने गाजा के अल अहली अस्पताल में नागरिकों की मौत पर भी संवेदना व्यक्त की। मोदी ने अब्बास को भारत के फिलिस्तीनी लोगों के लिए मानवीय सहायता जारी करने की सलाह दी।
इजराइल और हमास की जंग का आज 13वां दिन है। ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने गाजा के स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों से कहा है कि गाजा में अब तक कुल 3785 लोग मारे गए हैं। इनमें 1524 बच्चे और 120 बुजुर्ग हैं। 12 हजार 493 लोग घायल हुए हैं। ये चार हजार बच्चे हैं।
अस्पताल पर हमला
मंगलवार-बुधवार की दरमियानी रात गाजा सिटी के हॉस्पिटल पर हुए रॉकेट हमलों में 500 लोग मारे गए थे। हमास और इजराइल पर हमले का आरोप एक-दूसरे पर लग रहे हैं।
‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने अमेरिकन सीक्रेट्स मेमोरियल की जारी एक रिपोर्ट में कहा- मंगलवार और रविवार की दरमियानी रात गाजा के हॉस्पिटल पर हमास ने हमला किया। हम प्रमुख वैज्ञानिक साधुओं के आधार पर इस नतीजे तक पहुंचते हैं।
गैजेट्स के लिए सैटेलाइट इमेज और इन्फ्रारेड डेटा टेक्नोलॉजी बनाई गई। साफ हुआ कि गाजा के अंदर से ही कोई डिजाइन या मिसाइल दागी गई थी। ये इजराइल की तरफ से नहीं है. इस पर सबसे पहले इजराइल ने भी यही दावा किया था। इसके बाद सारांश साक्ष्य हमास के दो सदस्यों की बातचीत का ऑडिट भी जारी किया गया।

गाजा शहर में अहली अरब अस्पताल पर हुए हमले में मारे गए लोग।
गाजा को 100 मिलियन डॉलर की मानवीय सहायता
अमेरिकी राष्ट्रपति रविवार 18 अक्टूबर को इजराइल क्षेत्र में थे। उन्होंने अवीव में इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू, राष्ट्रपति इसाक हर्जोग और वॉर से सचिवालय में मुलाकात की। वे यहां करीब 4 घंटे रहे। अमेरिका की ओर से होने वाले हमले से पहले प्रशांत महासागर ने गाजा की मानव सहायता के लिए 100 करोड़ की मदद दी। उन्होंने कहा कि इस बात का ध्यान रखें कि यह सामान हमास के हाथों तक न पहुंच सके।
अमेरिकी राष्ट्रपति इजराइल से वहां भी हमास के हमले होने लगे। भास्कर रिपोर्टर के मुताबिक भारतीय समय समाचार रात 11 बजे तेल अवीव में धमाकों की आवाजें आएं। एक डिजाइन समंदर में गिरा, जिसके बाद वहां बड़ी लहरें तूफान आया। दूसरी ओर, सऊदी अरब ने लेबनान में मौजूद अपने नागरिकों से वहां से आगमन को कहा है।
अब भारत-फिलिस्तीन के बीच के अंतर को समझें…
1948 में 48% फिलीस्तीन के पास था, आज केवल 12% बचा
1948 में फ़िलिस्तीन को फ़्लोरिडा इज़रायल बनाया गया। कुल ज़मीन का 44% हिस्सा इज़रायल और 48% फिलीस्तीन का हिस्सा आया। यरूशलम यूएन की ओर से 8% जमीन का टुकड़ा हासिल किया गया। इजराइल ने फिलीस्तीन की 36% जमीन हथिया ली पर ताकत लगा दी। आज फिलीस्तीन के पास 12% जमीन है और इसके दो टुकड़े भी हैं- वेस्ट बैंक और गाजा स्ट्रिप्स। बैंक वेस्ट शांत है और यहां फिलीस्तीनी सरकार का शासन है।
गाजा पट्टी में हमास का कब्ज़ा है। यह इजराइल और पश्चिमी देशों के सहयोगी कर्मचारी हैं। भारत ने कभी भी हमास का समर्थन नहीं किया, लेकिन वो फिलिस्तीन सरकार के साथ है।

फिलीस्तीन और भारत के विकल्प
1974 में भारत ने फिलीस्तीनी लिबरेशन आर्मी (पीएलओ) को फिलीस्तीनी लोगों का भर्ती समूह माना और इसे सिद्धांत दिया। यहां ये भी जानें पीएलओ को मान्य जानकारी वाला भारत पहला गैर अरब देश था।
1969 से 2004 तक यासिर अराफात यह गरीब रहे। भारत से उनके बहुत सारे मशीनरी संस्थान थे और इंदिरा गांधी उन्हें अपने भाई की साज़िशें बताती थीं। बाद में यह संगठन पीओएल बैकारेटा सामने आया। इसकी ताकत कम चली गई। तुलना से हमास की मस्जिद और 1987 से यह चित्रकारी खुद को फिलीस्तीनियों की आवाज लगायी गयी।
भारत का असमंजस
सही मायनों में भारत का असमंजस अध्येता से शुरू हुआ। पीएलओ हुआ भी नहीं और फिलीस्तीन सरकार हमास के सामने गिरी थी। फिलीस्तीन सरकार बातचीत से मसला सुलझाना चाहती थी, और हमास खून का बदला खून से लेना चाहता था।
हमास के सामने तो आज भी फिलीस्तीनी सरकार पिन टेके का घर है। लेकिन, है तो वो भी फ़िलिस्तीन का हिस्सा। आभास, भारत को ऐसा रास्ता मिल गया, जिससे फ़िलिस्तीनियों को उनका हक़ भी मिल जाए और हमास का समर्थन भी न करना पड़े। आज भारत की फिलिस्तीन को लेकर जो नीति है, उसका सार भी यही है। कहते हैं- डिप्लोमेसी में अधूरी बात कही जाती है, उसे सिर्फ समझा जाता है।

2018 में नरेंद्र मोदी फिलीस्तीन की खोज करने वाले भारत के पहले प्रधानमंत्री बने।
भारत की इजराइल-फ़िलिस्तीन नागरिकता सही है या नहीं?
फॉरेन और डिफेंस कंसलटेंट, हर्ष पंत कहते हैं- फॉरेन और डिफेंस चांसलरी में समय और शर्तों के हिसाब-किताब जरूरी हो जाते हैं। पहले हम फिलीस्तीन को लेकर अधिकतर वोकल रहते थे और इजराइल को अंतिम कर देते थे। हालाँकि, तब भी बैकचैनल एंगेजमेंट रहता था। नरसिम्हा राव सरकार के दौर से भारत की इजराइल नीति में बदलाव देखें। हमें हर दौर में इजराइल से रक्षा और सुरक्षा मामलों में समर्थन मिलता है।
फ़िलिस्तीन: भारतीय कूटनीति का गणितीय अधिनियम
1988 में भारत ने फिलीस्तीन को एक राष्ट्र के रूप में मान्यता दी। 1996 में गाजा में अपना ऑफिस भी खुला, लेकिन हमास की हरकतें देखकर 2003 में इसे फिलीस्तीन सरकार के प्रशासनिक दायरे में आने वाले रामल्ला में शिफ्ट कर दिया गया। आज भी यहीं है। 2011 में जब फिलीस्तीन को एक बार फिर से बनाने की मांग की गई तो भारत ने इसका समर्थन किया। 2015 में फिलीस्तीन का राष्ट्रीय ध्वज संयुक्त राष्ट्र में लगा, तब भी भारत संग्रहालय से उसका साथ खड़ा था। 2018 में नरेंद्र मोदी फिलीस्तीन की खोज करने वाले भारत के पहले प्रधानमंत्री बने।
इस मुद्दे पर भारत सरकार की विशेष रुचि है, 2017 में जब मोदी इजराइल की यात्रा करने वाले थे तो वे चांद से दूर फिलीस्तीन नहीं गए थे। इसके अगले वर्ष उन्होंने फ़िलिस्तीन का अलग दौरा किया। इसे ‘बैलेंसिंग एक्ट ऑफ इंडियन डिप्लोमेसी’ कहा गया।
2018 में जब इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू भारत आए तो वे यहूदी बच्चे मोशे से भी मिले थे। 26/11 के मुंबई हमले में मोशे के माता-पिता के हाथ मारे गए थे।

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