पांच राज्यों में शुरू हो चुका है चुनावी संग्राम: सुनो-सुनो, चुनो-चुनो… | पांच राज्यों में बैलिस्टिक रणभेरी : सुनो- सुनो, चुनो- चुनो…

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21 मिनट पहलेलेखक: नवनीत गुर्जर, नेशनल भास्कर, दैनिक भास्कर

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बहुत ही अजीब घटनाएँ होती हैं! अपने ही सिरहाने रहें, अपने ही गहरी नींद में सोखें! हमारे ज़ख़्मी दोस्तों का एक पैमाना रास्ता खाली हो रहा है। हमारी इसी नाव की तरह! अंधकार के एक महासागर को पार कर रही हैं! रास्ते में जो भाटे हैं, पत्थर पड़े हैं, वे हमारी ही चकनाचूर शकलों के टुकड़े हैं! हमारा मुँह, एक बंद तहख़ाना! शब्दों का एक गम ख़ज़ाना! क्या हम अपना मुंह खोल पा रहे हैं? हम क्या बोल पा रहे हैं? कदाचित नहीं! ठीक है, अब तक मुंह नहीं खोला, कुछ नहीं बोला! अब तो बोलो! आयरनर्स की भट्टी भड़क उठी है। कुम्हारों का ‘आवा’ दहकने लगता है। मुनादी दनादन बज उठा है। नागाडो पर विज्ञापन हो गया है। गिनती नहीं! अब रिकार्डगी नहीं ये आव- भगत की अजीबो-गरीब लड़ाई!

जो तेजी से कर रहे थे अपने खंजर, वे अब सजे में बिछड़ने को तैयार हैं। जो कसते थे कमर और मयान, वे अब देखने लगे हैं खुद को जनता का गुलाम! देखिये जो भेड़िये किस तरह गुर्राया करते थे, उनके अंदर से अब चींटियों के दल आरोहित होते हैं! आप भी जानिए! अब तो उठिए। उनके गले मिलिए और कहिए- पिछले पांच साल तक जिस तरह हमें छकाया, रुलाया, अब भी चेहरा ही किया तो यही गला हम दबा भी सकते हैं। हम बेख़ौफ़ हैं।

जनता हैं। जनार्दन भी. हमें डरो न सही, सहमो तो सही!

बात चुनाव की है. वैश्वीकरण मौसम की। चुनाव की घोषणा की गई है ही शुरू हो गया है गरीबों का रोना-धोना। कई पा गए। कई खो गए। यह पाया गया, खोए के बीच जो कभी गिनती में भी नहीं आए थे, वे भी वैतरणी में उतर गए हैं। पार पाने की अज़ाबाक़ में।

प्रमुख तीन राज्यों – मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान की बात करें तो यहां मुख्य रूप से दो ही पार्टियां मैदान में हैं। कांग्रेस और भाजपा। को हमेशा की तरह या तो अविश्वासी भाजपा पर भरोसा है या अपने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर। यही कारण है कि उन्होंने तीन राज्यों में से एक भी मुख्यमंत्री का चेहरा गुप्त रूप से घोषित नहीं किया है। बीजेपी को लगता है कि क्षेत्रीय मुद्दे में उग्रवाद और मोदी का तूफान फूटेगा। इसके पहले भी ऐसा हो रहा है। अब भी ऐसा ही होगा।

दूसरी ओर कांग्रेस इन दिनों एक नई संस्था बनी हुई है। इब्राहिम का. उन्हें लगता है कि अन्य पिछड़ा वर्ग का यह भूखा भाजपा के हिंदुत्व पर भारी है। चुनाव की तारीखें समझें तो फिर कांग्रेस में सोलोमन की वापसी के बारे में कुछ और ही बताया गया है। हो सकता है कांग्रेस इस मुद्दे पर सबसे ज्यादा भरोसेमंद हो! होना भी चाहिए, लेकिन इतना ही विश्वास है तो साहित्य के बटवारे में इतनी देरी क्यों?

क्या टिकटें भी इसी सूत्र के अंतर्गत बाँटने की तैयारी है कि जनसंख्या में किसका, किस भाग का, उसका- बिस्कुट हक। ऐसा ही हो सकता है. लेकिन मैदान में फिलहाल ऐसा कुछ नजर नहीं आ रहा है।

उधर, बीजेपी ने इस एकमुश्त मुद्दे को सरदार पटेल की राह पर छोड़े दबे स्वर में ही सही, देश को जात-पात में बांटने वाला बताया है। स्पष्ट संकेत है कि भाजपा अब अपने पुराने विद्वानों पर ही टिके रहना चाहती है। वो जाट- पात के दल- दल में चाहत नहीं चाहिए!

जहां तक ​​आम आदमी के इरादों का सवाल है, उनके बारे में तो अब कोई भी अलगाव नहीं चाहता। राजनीतिक वेबसाइटों के लिए घोषित पत्रों में निश्चित रूप से कुछ मुद्दे दिखाई देते हैं, लेकिन वे केवल फिल्म निर्माता ही दिखाई देते हैं, उनका आखिरी में कुछ होता-जाता नहीं है। भीड़ रहती है बस बंदरबाँट की। मुफ़्त की रेवड़ियों से जुड़े हुए हैं ये घोषित पत्र। कहीं कर्ज माफी, कहीं ब्याज पर छूट, कहीं किसानों की नौकरी के बी, कहीं हर महीने मुफ्त का पैसा। बाढ़ सी आई हुई है।

हर किसी को किसी न किसी तरह की सत्यता मिलनी चाहिए। गद्दी चाहिए। वो दे फिर से वादा करें पूरा होन, या नहीं, कौन स्टॉक वाला है? पाँच साल की बात है। टैब की टैब देखें। इस नामांकित मौसम में इसी तरह के मूड में रहते हैं। और लोग यानी आम आदमी, उसे किसी की परवाह नहीं! आपका वोट और उसकी कीमत भी नहीं। कुछ लोगों के लिए तो वोटिंग की तारीख एक तरह से छुट्टी का दिन होता है। निकल जाते हैं सायर पर।

उन्हें पता है कि आज वोट नहीं डाला गया तो उनकी किस्मत पांच साल के लिए एक तरह से सैर पर ही निकलेगी, लेकिन कोई भी आरक्षण सलाहकार तैयार नहीं हुआ है। इशारा को राजी नहीं है.

चुनाव आयोग की तो जानें क्या प्रश्न! छत्तीसगढ़ की वोट की तारीखों में दस दिन का अंतर! क्यों, कुछ समझ में नहीं आता! हो सकता है, आपके दिन में खंडित मंदिर की मूर्तियां स्थापित हो जाएं या फिर मंदिर की सुरक्षा सुनिश्चित हो जाए। आयोग की बात आयोग ही जाने!

बिजनेस, इस बार वोट में सच का ही चुनाव करना चाहिए। लोग जायेंगे भी. यही विश्वास है. यही ज़रूरी भी।

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