पंजाब सरकार बनाम सुप्रीम कोर्ट; एससी एससीटी आरक्षण सुनवाई अपडेट | आईएएस-आईपीएस व्यापारियों के बच्चों को भी कोटा से बाहर क्यों नहीं जाना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट का सवाल

नई दिल्ली17 मिनट पहले

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सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि वह एससी-एसटी कोटा को लेकर 2004 में अपनी ही जजमेंट की समीक्षा पेश करेगी। 2004 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्य में जनजाति जनजाति (एसटी) को कोटा में रहने का अधिकार नहीं है।

अब सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की संवैधानिक बेंच इस जजमेंट को एग्ज़ामीन करने जा रही है। इस बेंच की अगुआई सीजेआई जस्टिस चंद्रचूड़ जाएंगे। इसमें जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रमनाथ, जस्टिस बेला एम वकील, जस्टिस पंकज मॅलक्स, जस्टिस मनोज मिश्रा, और जस्टिस आशुतोष चंद्र शर्मा शामिल हैं।

6 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने 2006 के पंजाब के एससी-एसटी कानून मामले की सुनवाई शुरू की। 2006 में पंजाब सरकार कानून लेकर आई थी, माज के साथ मिलकर कम्युनिस्ट पार्टी कोटा में वाल्मिकी और हबबी सिखों को नौकरी में 50% आरक्षण और सुविधा दी गई थी।

2010 में पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय ने इस कानून को असवैधानिक बताया और अधिनियम को समाप्त कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले के खिलाफ पंजाब सरकार समेत 23 अपीलें शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट में रविवार (7 फरवरी) को सुनवाई का दूसरा दिन है।

6 फरवरी: श्रवण का पहला दिन…

आईएएस-आईपीएस के प्रमुख उप-जातियों की कोटा सूची से बाहर क्यों नहीं जाना चाहिए, इस बारे में मंगलवार को पूछा गया। बेंच ने यह भी सवाल उठाया कि आईएएस-आईपीएस के बच्चों को कोटा में क्या मिलना चाहिए?

बेंच में शामिल जस्टिस विक्रमाथ नाथ ने पूछा कि, यूक्रेनी सूची से बाहर क्यों नहीं जाना चाहिए? उन्होंने कहा- इनमें से कुछ उप-जातियां खरीदी गई हैं। उन्हें प्राकृतिक से बाहर निकलना चाहिए। ये नटखट के प्रतीक से बाहर गाइन बेहद बैक और हाशिए पर चल रहे वर्ग के लिए जगह बनाई जा सकती हैं।

युवाओं को युवाओं से बाहर करने का फैसला संसद करे
बेंच में उनके शामिल जस्टिस बीआर गवई ने कहा- जब एक व्यक्ति आईएएस या आईपीएस बन जाता है तो बच्चे गांव में रहने वाले अपने ग्रुप में किसी तरह की असमानता का सामना नहीं करते हैं। फिर भी उनके परिवार को केदारनाथ तक का लाभ मिलता रहेगा। अब इस संसद को तय करना है कि बच्चों को नग्न से बाहर करना चाहिए या नहीं।

जस्टिस बीर गवई 14 मई 2025 से 23 नवंबर 2025 तक देश के मुख्य न्यायाधीश भी रहेंगे।  वे दलित समुदाय से आते हैं।

जस्टिस बीर गवई 14 मई 2025 से 23 नवंबर 2025 तक देश के मुख्य न्यायाधीश भी रहेंगे। वे दलित समुदाय से आते हैं।

पंजाब सरकार की ओर से मंगलवार (6 फरवरी) को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पिछली कक्षा का सबसे पिछड़ा वर्ग में पहचान की जानी चाहिए और उन्हें रोजगार के अवसरों का लाभ उठाने के लिए साधन उपलब्ध कराना चाहिए।

सरकार की ओर से यह भी कहा गया है कि जो लोग सरकारी सेवा में उच्च प्रतिनिधियों के माध्यम से आगे बढ़ रहे हैं, उन्हें श्रेणी वर्ग (एससी) के सदस्य वर्ग में शामिल करने के लिए रास्ता बनाना चाहिए।

इस पर जस्टिस बीआर गवई जो खुद एससी वर्ग में आए थे, उन्होंने कहा था कि एससी/एसटी समुदाय का एक व्यक्ति आईएएस और आईपीएस जैसी केंद्रीय सेवाओं में जाने के बाद व्यापक पैमाने तक पहुंच पाता है। फिर भी उनके बच्चे और उनके बच्चों को रात का फायदा मिल रहा है। क्या यह जारी रहना चाहिए?”

मंगलवार को सुनवाई का आभूषण दिवस था। सीजेआई देव चंद्रचूड़, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस बेला एम वकील, जस्टिस पंकज मिथल, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस आशुतोष चंद्र मिश्रा 7 जजों की बेंच पंजाब सरकार के एससी/एसटी समुदाय से जुड़े मुद्दों पर सुनवाई कर रहे हैं।

पंजाब के वकील जनरल गुरमिंदर सिंह ने कहा कि भर्ती परीक्षा में 56% अंक हासिल करने वाले पिछड़े वर्ग के सदस्यों को 99% हासिल करने वाले उच्च वर्ग के व्यक्ति की तुलना में आधार दिया जाए। क्योंकि उच्च वर्ग के पास हवाई जहाज और जीवन में सभी सुविधाएं हैं, जबकि उच्च वर्ग में सुविधाओं से बिना ही संघर्ष होता है।

वहीं, वरिष्ठ वकील निधेश गुप्ता ने कहा कि पंजाब की जनसंख्या 33% है। इनमें से बाल्मीकि (चूरा और भंगी) और मजहबी (सिख) 29% हैं। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार में 43% सैकेण्ड समुदाय का 81% पर कब्ज़ा है।

सिंह ने आगे कहा कि एससी के रूप में एक समुदाय को एकजुट करने के लिए पात्र लोगों की सूची को हटाया जा सकता है, जब उन्होंने सरकारी दस्तावेजों में पुष्टि प्राप्त करके सामाजिक क्षेत्र में स्थिरता हासिल कर ली हो। संविधान में किसी भी तरह का उल्लेख नहीं था कि नैतिकता हमेशा के लिए है।

ये है पूरा मामला
पंजाब सरकार पंजाब प्रशांत जाति और फ़्लैम वर्ग (सेवाओं में नवीनता) कानून 2006 के वैध होने के कारण सुप्रीम कोर्ट का बचाव हो रहा है। पंजाब में कैप्टन रैंडी सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने कहा था कि बाल्मीकि और मजहबी (सिख) महादलित हैं।

सरकार ने उन्हें सरकारी दस्तावेज़ में से 50% कोटे में से 15% देना तय किया था। इसके बाद पंजाब मिसाइल जाति और पिछड़ा वर्ग (सेवा में रात्रिकालीन) अधिनियम 2006 के आधार पर भारतीयों की बात कही गई। बाद में साल 2020 में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट की पांच जजों की बेंच ने आस्था सरकार के इस फैसले को रद्द करने के लिए बड़ी बेंच के पास भेजा था।

यह कहा गया था कि ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य (2005) में दिए गए निर्णय में उप-वर्गीकरण की अनुमति नहीं थी, लेकिन एट्रिब्यूशन की आवश्यकता हो सकती है। SC ने 2020 वाले फैसले में कहा कि चारित्रिक जातियां समरूप वर्ग संरचनाएं हैं, उनमें कोई उपविभाजन नहीं हो सकता।

सुप्रीम कोर्ट का 2005 वाला फैसला ही पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के लिए पंजाब सरकार की 1975 की अधिसूचना को रद्द करने का आधार बना। SC में शामिल करने के लिए अंतिम रूप से 25% नॉटी को दो श्रेणियों में रखा गया था। इनमें से अर्द्धशतक बाल्मीकियों और मजहबी सिखों को दी जानी थी, जबकि शेष अनुसूचित जाति के शेष पुस्तकालय के लिए थी।

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