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- कॉलेजियम की अनुशंसा पर केंद्र के दृष्टिकोण पर न्यायिक नियुक्ति।
नई दिल्ली26 मिनट पहले
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सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच ने चेहरे के रूप में कॉलेजियम की प्रगति को ‘अलग’ करने की केंद्र की निंदा की।
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार 7 नवंबर को कश्मीर नियुक्तियों में कॉलेजियम की सीलिंग (रिकमंडेशन) पर केंद्र की मंजूरी पर सवाल उठाए। टॉप कोर्ट ने कहा कि हाल ही में हुई नियुक्तियां अलग-अलग तरीकों से हुई हैं।
जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस सुधांशु डस्टरिया के बेंच ने कहा कि अपार्टमेंट के लिए पहले सिलेक्ट करना और फिर नीयन में चयन लेने की समस्या पैदा होती है।
कोर्ट ने कहा- उम्मीद है कि कॉलेजियम और कोर्ट के लिए ऐसी स्थिति पैदा नहीं होगी कि वह कोई ऐसा फैसला ले जो स्थापित न हो। यदि फेस्टिवल ‘चयनेटिक’ तरीके से किया जाता है तो यह सीनियरटी पर प्रभावी है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा- 5 नाम बार-बार आओ
मंगलवार 7 नवंबर को हुई सुनवाई में बेंच ने कॉलेजियम के प्रतियोगी रूप में ‘अलग’ करने के लिए सेंटर की प्रतिपति की निंदा की। कोर्ट ने कहा कि इसके प्रमुख लोगों की संगत बुजुर्गों में गड़बड़ी हुई है। कोर्ट ने कहा कि पांच नाम ऐसे हैं, जो बार-बार डबल्स के साथ हैं और इन पर ध्यान देने की जरूरत है।
इस पर अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा कि इस पर सरकार के साथ चर्चा होगी। मामले की सुनवाई 20 नवंबर तक होनी चाहिए। कोर्ट ने लिस्ट के मुद्दे पर भी चिंता जताई। वरिष्ठ वकील अरविंद दातार ने अदालत से निर्देश-निर्देश तय करने का आग्रह किया।
वहीं, दिग्गज वकील पैसिफिक ब्रोथर्न ने कहा कि समय आ गया है कि सुप्रीम कोर्ट सैक्टर बरते, नहीं तो सरकार को यह आभास हो रहा है कि वह इससे बच सकती है। शत्रुघ्न ने उच्च न्यायालय से कानून मंत्री से तलब करने का भी आग्रह किया।
केंद्र के खिलाफ़ भर्तियां की गईं
सुप्रीम कोर्ट, उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में जजों की याचिका के लिए कॉलेजियम-अनुशासित छात्रावास में रहने के लिए केंद्र के खिलाफ याचिका पर सुनवाई की जा रही थी। एक वकील कॉलेज की वकील एसोसिएशन ने एक संस्था बनाई है।
मांग की गई है कि कॉलेजियम द्वारा निर्वाचित नियुक्तियों को सेंट्रल लॉ मिनिस्ट्री के लिए स्वीकृत लीज की समय सीमा का पालन नहीं करना चाहिए।
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सुप्रीम कोर्ट ने कानूनी ढांचे में सरल भाषा के इस्तेमाल की बात कही है, ताकि आम आदमी को इसे समझने में आसानी हो। 24 सितंबर को शीर्ष अदालत ने यह भी कहा था कि कानून की आसान भाषा में होने से लोग भी सोच-समझकर फैसला लेंगे और किसी भी तरह के उल्लंघन से बच जायेंगे। कानूनी हमारी नियुक्ति का जीवन का हिस्सा होते हैं, ये हमें नियंत्रित करते हैं। इसलिए आसान भाषा होनी चाहिए।। पूरी खबर पढ़ें…