नेपाल भूकंप स्थिति अद्यतन; दिल्ली बिहार में झटके | दिल्ली भूकंप समाचार | नेपाल में भी 6.1 मैग्निट्यूड की स्टडीज़ से धरती कांपी; 17 दिन में लगातार दूसरी बार ऐसा

  • हिंदी समाचार
  • राष्ट्रीय
  • नेपाल भूकंप स्थिति अद्यतन; दिल्ली बिहार में झटके | दिल्ली भूकंप समाचार

काठमांडू8 मिनट पहले

  • कॉपी लिंक
नेपाल में 5 अक्टूबर को भी चार भूकंप आये थे।  जिसके चलते काठमांडू से 882 किमी दूर बजंग में भूकंप से कच्चा मकान गिर गया था।  - दैनिक भास्कर

नेपाल में 5 अक्टूबर को भी चार भूकंप आये थे। जिसके चलते काठमांडू से 882 किमी दूर बजंग में भूकंप से कच्चा मकान गिर गया था।

दिल्ली-एनसीआर और बिहार में रविवार सुबह 7:39 बजे भूकंप का झटका लगा। भूकंप का केंद्र नेपाल की राजधानी काठमांडू के धाडिंग जिले में था। नेशनल भूकंप मॉनिटरिंग एंड रिसर्च सेंटर के अनुसार, भूकंप की तीव्रता रिक्टर स्कैन 6.1 थी।

भूकंप के कारण किसी की मृत्यु या क्षति की कोई रिपोर्ट नहीं है। बिहार के पटना, बगहा, छपरा, सीवान और गोपालगंज में भूकंप सबसे ज्यादा महसूस किया गया। लोग अपने घर से बाहर निकल आये।

नेपाल में भूकंप आना आम बात है, पिछले 17 दिनों से ऐसी ही एक घटना सामने आई है। इससे पहले 5 अक्टूबर को एक साथ चार भूकंप के संकेत थे। नेपाल में वह पर्वत शृंखला स्थित है जहां तिब्बती और भारतीय टेक्टोनिक प्लेटें मौजूद हैं, जो हर 100 साल में एक-दूसरे के करीब दो मीटर से भी आगे हैं, जो गठित होती हैं, जिससे भूकंप आता है।

5 अक्टूबर को नेपाल में एक घंटे में चार भूकंप आये

5 अक्टूबर को नेपाल में एक घंटे में चार भूकंप आये। राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र (एनसीएस) के एक अधिकारी ने कहा कि 4.6 भूकंप का पहला झटका दोपहर 2:25 बजे पश्चिम नेपाल में 10 किलोमीटर की गहराई पर आया, इसके बाद 2:51 बजे 6.2 भूकंप का झटका आया। दो और भूकंप 3.6 और 3.1 तीव्रता के 3:06 अपराह्न और 3:19 अपराह्न आते हैं। भूकंप से नेपाल के बजंग में कई कच्चे मकान गिर गए।

अब जानिए भूकंप क्यों आता है?
हमारी धरती की सतह पर मुख्य रूप से 7 बड़े और कई छोटे-छोटे टेक्टोनिक प्लेट्स से मिलकर बनी है। ये प्लेट्स लगातार तैरती रहती हैं और कई बार इनमें कमाल दिखाई देती हैं। कई बार प्लेटों के कोने मुड़े हुए होते हैं और इन प्लेटों पर दबाव डाला जाता है। ऐसे में नीचे दिए गए सेलेक्ट एनर्जी के बाहर की ओर से डायनासोर के रास की खोज की गई है और भूकंप आने के बाद इस डायरबेंस का प्रदर्शन किया गया है।

467 साल पहले चीन में आए भूकंप से 8.30 लाख लोगों की मौत हो गई थी
अब तक का सबसे खतरनाक भूकंप चिली में 22 मई 1960 को आया था। रिक्टर स्केल पर इसके क्लिप्स 9.5 थे। इसकी वजह आई सुनामी से दक्षिणी चिली, हवाई द्वीप, जापान, फिलीपींस, पूर्वी न्यूजीलैंड, दक्षिण-पूर्व ऑस्ट्रेलिया समेत कई देशों में भयंकर तबाही मची थी। 1655 इसमें लोगों की मौत हो गई, जबकि 3000 लोग घायल हो गए। सबसे घातक भूकंप चीन में 1556 में आया था, जिसमें 8.30 लाख लोगों की मौत हुई थी।

अब जानते हैं भूकंप से कहां-कहां जमीन खिसकती है

10 फ़ीट कैसे खिसका तुर्किये
इस साल की शुरुआत में तुर्किये में विनाशकारी भूकंप आया था। इसमें हजारों लोगों की जान गई थी। 7.8 इस भूकंप में तुर्किये की ज़मीन 10 फ़ुट यानि करीब 3 मीटर खिसक गयी थी। ये दावा इटली के भूकंप विज्ञानी डॉ. कार्लो डोगलियानी ने किया था। दुनिया बड़ी-बड़ी टेक्टोनिक प्लेट्स पर स्थित है। इन प्लेटों के नीचे तरल पदार्थ लावा है। ये प्लेट्स लगातार तैरती रहती हैं और कई बार इनमें कमाल दिखाई देती हैं।

तुर्किये का अधिकांश हिस्सा एनाटोलियन टेक्टोनिक प्लेट पर है। ये प्लेट यूरोशियन, अफ़्रीकन और अरबियन प्लेट के बीच में फंसी हुई हैं। जब अफ़्रीकन और अरबियन प्लेट शेयर होते हैं तो तुर्कीये डायनेमिक की तरह फंस जाते हैं। इस धरती के भीतर से ऊर्जा असंतुलन और भूकंप आते हैं। सोमवार को तुर्किये में भूकंप नॉर्थ एनाटोलियन फॉल्ट लाइन पर आया।

2011 में जापान में आये भूकंप से धरती खिसक गयी थी
11 मार्च 2011 को जापान में 9.1 तीव्रता का अब तक का सबसे शक्तिशाली भूकंप आया था। इस शक्तिशाली भूकंप ने न सिर्फ लोगों की जान ली, बल्कि धरती की धुरी को 4 से 10 इंच तक खिसका दिया गया। साथ ही पृथ्वी की रोजमर्रा की चकराने वाली कहानियों में भी बढ़ोतरी हुई।

उस वक्त यूएसजीएस के सीस्मोथेसन पाल अर्ले ने कहा था कि इस भूकंप से जापान का सबसे बड़ा द्वीप होंशू अपनी जगह से करीब 8 फीट पूर्व की तरफ खिसक गया है। इस दौरान पहले 24 घंटे में 160 से अधिक तीव्रता के भूकंप के झटके आए। इनमें से 141 की रिपोर्ट 5 या उससे अधिक थी। जापान में आए इस भूकंप और सुनामी ने 15 हजार से ज्यादा लोगों की जान ली थी।

जापान भूकंप का सबसे बड़ा संकेत क्षेत्र है। यह पेसिफिक रिंग ऑफ फायर एरिया में मौजूद है। रिंग ऑफ फायर ऐसी अनोखी जगह है जहां कई कॉन्टिनेंटल के साथ ही ओसियनिक टेक्टोनिक प्लेट्स भी हैं। ये प्लेट्स में मूर्तियां हैं तो भूकंप आता है, सुनामी उठती हैं और स्कॉलर फटते हैं।

इस रिंग ऑफ फायर का असर न्यूजीलैंड से लेकर जापान, अलास्का और उत्तर व दक्षिण अमेरिका तक देखा जा सकता है। दुनिया के 90% भूकंप इसी रिंग ऑफ फायर एरिया में आते हैं। यह क्षेत्र 40 हजार किलोमीटर में फैला हुआ है। दुनिया में 75% से भी ज्यादा सक्रिय वैज्ञानिक हैं। 15 देश इस रिंग ऑफ फायर की जद में हैं।

11 मार्च 2011 को जापान में आए भूकंप के 20 मिनट बाद सुनामी लहरें उत्तर के होकाइदो और दक्षिण के ओकिनावा द्वीपों से टकराईं और वहां भारी ताबाई मचाई थी।

11 मार्च 2011 को जापान में आए भूकंप के 20 मिनट बाद सुनामी लहरें उत्तर के होकाइदो और दक्षिण के ओकिनावा द्वीपों से टकराईं और वहां भारी ताबाई मचाई थी।

भारत भी यूरोप की तरफ खिसक रहा है
साल 2022 में ऑस्ट्रेलिया के भूवैज्ञानिकों ने धरती पर मौजूद सभी टेक्टोनिक लॉजिक का एक नया नक्शा तैयार किया था। बताया गया कि इसमें इंडियन प्लेट और ऑस्ट्रेलियन प्लेट के बीच माइक्रोप्लेट को शामिल किया गया है। साथ ही कहा था कि भारत यूरोप की ओर खिसक रहा है।

इसी अंदेशा की झलक देखने को मिल रही है कि आने वाले दिनों में इन दो जादूगरों के राक्षस से लेकर हिमालय समेत उत्तरी तट पर भीषण भूकंप आ सकता है। ऑस्ट्रेलिया के एडिलेड विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग के व्याख्याता डॉ. डेरिक हैस्टरॉक और उनके साथियों ने मिलकर ये नक्शा तैयार किया है।

डॉ. डेरिक ने कहा है कि हमारा नक्शा पिछले 20 लाख सागर में धरती पर आए 90 प्रतिशत भूकंपों और 80% शास्त्रीय विस्फोटों की पूरी कहानी बताता है। वहीं वर्तमान मॉडल सिर्फ 65% भूकंपों की जानकारी देता है। इस ऑफर की मदद से लोग प्राकृतिक आपदाओं की गणना कर सकते हैं।

2004 में आये भूकंप और सुनामी से अंडमान का इंदिरा पॉइंट जलमग्न हो गया था
26 दिसंबर 2004 को इंडोनेशिया में भूकंप आया और फिर सुनामी के अंडमान-निकोबार द्वीप समूह का इंदिरा पॉइंट जलमग्न हो गया। यह द्वीप सुमात्रा से 138 किमी की दूरी पर स्थित है।

यहां एक अप्रैल ही लाइट हाउस का उद्घाटन 30 1972 को हुआ था। यह भारत के बिल्कुल दक्षिण में स्थित है और इसे भारत का अंतिम बिंदु भी कहा जाता है।

इसका नाम भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नाम पर रखा गया है। इंदिरा पॉइंट का लाइट हाउस भारत में स्थित मलेशिया और मलक्का में स्थित खिलौनों को रोशनी देने का काम करता है।

204 साल पहले भूकंप की वजह से भुज में बना था टापू
भारत में 204 साल पहले यानी साल 1819 में गुजरात के भुज में भूकंप से तापू बन गया था। इसे अल्लाह बंद नाम से जाना जाता है। रिक्टर स्केल पर 7.8 से अधिक बार भूकंप का झटका आना संभव है।

इसकी वजह जमीन के अंदर की गहराई के बीच दरार को माना जा सकता है। अर्थशास्त्री का कहना है कि यह प्लेटें लगातार निकलती रहती हैं। कई बार इनके बीच ब्रेकअप होता है।

ऐसे में समुद्र के अंदर यदि 7.5 से अधिक तीव्रता और अधिक गहराई का भूकंप आता है तो यह प्लेटें कई मर्तबा एक-दूसरे के ऊपर चढ़ जाती हैं। यदि प्लेटें 6-7 मीटर की भी पाइपलाइन लगाई जाती हैं तो वह टापू जैसी स्थिति हो जाती है।

2015 नेपाल में आए भूकंप से काठमांडू भी 10 फीट तक खिसक गया था

नेपाल में साल 2015 में 7.8 भूकंप ने भारी तबाही मचाई थी।  इस दौरान करीब 9 हजार लोग मारे गए।

नेपाल में साल 2015 में 7.8 भूकंप ने भारी तबाही मचाई थी। इस दौरान करीब 9 हजार लोग मारे गए।

अप्रैल 2015 में आए नेपाल के विनाशकारी भूकंप ने सैकड़ों की संख्या में ही नहीं लीं, बल्कि हिमालयी देश के भूगोल को भी बताया था।

कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के टैक्टोनिक विशेषज्ञ जेम्स जैक्सन ने बताया कि भूकंप के बाद काठमांडू की जमीन लगभग 10 फीट दक्षिण की ओर खिसक गई।

हालाँकि दुनिया की सबसे बड़ी पर्वत चोटी एवरेस्ट के भूगोल में किसी भी बदलाव के संकेत नहीं हैं। नेपाल में आया यह भूकंप 20 बड़े परमाणु बम शक्तिशाली थे।

भारत का एक हिस्सा 10 फीट तक नेपाल में खिसका
एडिलेड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक सैंडी स्टेसी ने दावा किया है कि हिमालय की घाटी से दबाव के क्षेत्र में उत्तर की ओर बढ़ते हुए भारतीय घुमावदार टेक्टोनिक प्लेटों में यूरेशियन प्लेट शामिल हैं, जो उत्तर पूर्व की ओर से 10 डिग्री नीचे खिसक गए हैं। इस वजह से भूकंप के वक्त कुछ ही समय में भारत का एक हिस्सा करीब एक से दस फीट तक नेपाल के नीचे खिसक गया है। इस संपूर्ण जीवविज्ञान प्रक्रिया में हिमालय का करीब एक से दो हजार वर्ग मील का खाका है।

अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी के लेमोंट-डोहर्टी अर्थ ऑब्जर्वेटरी के एसोसिएट प्रोफेसर कॉलिन स्टार्क का कहना है कि नेपाल की सीमा से लगे बिहार में धरती की सतह की ऊपरी चट्टानें हैं (जोकी चट्टानी पत्थर की चट्टानें हैं) वसीयत चांद में उत्तर दिशा की ओर खिसक कर नेपाल के नीचे समागम।

भारतीय प्लेट में दिखाई गई यह हवेली नेपाल के जूनागढ़ से लेकर हितौदा होते हुए जनकेपुर जोन पर दिखाई देती है। इसी इलाके से लगी भारतीय जमीन (पूर्वी-पश्चिमी ज्वालामुखी) नेपाल की सतह के नीचे खिसक गई है।

यह बात स्पष्ट हो गई है कि पूरे भारतीय उपमहाद्वीप से नेपाल और तिब्बत की फाल्ट (दरार) के नीचे बहुत ही मंद गति चल रही है। भारतीय उपमहाद्वीप के नेपाल और तिब्बत की सतह के नीचे जाने की समीक्षा हर साल 1.8 इंच होती है।

2013 में आए भूकंप में ग्वादर के समुद्र में 300 फीट ऊंचा टापू बन गया था
25 सितंबर 2013 को पाकिस्तान के बलूचिस्तान में 7.8 के भूकंप वाले भूकंप से तटीय शहर ग्वादर में समुद्र में एक टापू बन गया था।

अंडे का आकार यह टेपू 250 से 300 फीट ऊंचा और पानी की सतह से करीब 60-70 फीट ऊपर था।

इसकी सतह खुरदुरी और अधिकांश क्षेत्र में अनंत थी। कुछ इलाकों में रेत भी थी। इसके एक क्षेत्र में सॉलिड रॉक भी था।

खबरें और भी हैं…

Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *