दिल्ली-नोएडा बॉर्डर किसान विरोध अपडेट; किसान आंदोलन | संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) | किसानों का अल्टीमेटम- 2 दिन में मांगे माने सरकार: नहीं तो फिर करेंगे मार्च; 8 फरवरी को दिल्ली-नोएडा सीमा पर जाम लग गया

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नई दिल्ली1 मिनट पहले

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अधिकारियों के खिलाफ किसानों ने गुरुवार (8 फरवरी) को दिल्ली-नोएडा सीमा पर प्रदर्शन किया था। इस दौरान हिल बॉर्डर समेत कई सड़कों पर वाहन जाम हो गया।

इन किसानों ने एक बार फिर एक्सप्रेस-वे पर पहुंचने की चेतावनी दी है। भारतीय किसान परिषद के नेता सुखवीर खलीफा ने शनिवार (10 फरवरी) को कहा था कि अगर 12 फरवरी तक उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो वे फिर से प्रदर्शन करेंगे।

उन्होंने कहा कि पुलिस कमिश्नर लक्ष्मी सिंह ने गुरुवार को कहा था कि 12 फरवरी तक हमारी कंपनी को लेकर कमेटी कर देगी। इसमें जरा भी लेट हुआ तो हम दिल्ली तक मार्च फिर से शुरू करेंगे।

किसानों के प्रदर्शन की वजह?
असल में, 1997 से 2014 के बीच 81 गावों से बसाने के लिए जमीन पर कब्जा कर लिया गया। इस दौरान सिर्फ 16 गांवों के किसानों को शहीद किया गया और 5 प्रतिशत विकसित प्लॉट दिए गए। शेष गांवों के किसानों ने रास्ते का चयन करने के लिए सोवियत संघ से मुलाकात की।

2019 से इस मामले को लेकर किसान कॉन्स्टैंट अथॉरिटी के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। गुरुवार को किसानों ने दिल्ली पहुंचने का फैसला लिया। लेकिन उन्हें-दिल्ली सीमा पर रोक लगा दी गई। यहां 5 घंटे के प्रदर्शन के बाद उन्हें कमेटी बनाने का आश्वासन दिया गया।

देखिए किसानों का प्रदर्शन…

गुरुवार को दिल्ली की तरफ बढ़ते किसानों को सेक्टर 18 एंटरप्राइज़ओवर के पीछे छोड़ दिया गया।

गुरुवार को दिल्ली की तरफ बढ़ते किसानों को सेक्टर 18 एंटरप्राइज़ओवर के पीछे छोड़ दिया गया।

गुरुवार को पुलिस बैरिकेडिंग की वजह से गाजियाबाद में 1 किमी से ज्यादा भारी जाम लग गया।

गुरुवार को पुलिस बैरिकेडिंग की वजह से गाजियाबाद में 1 किमी से ज्यादा भारी जाम लग गया।

गुरुवार को किसानों से पुलिस की नोकझोंक हुई।  पुलिस ने किसानों को दिल्ली की तरफ से उगाही से रोका था।

गुरुवार को किसानों से पुलिस की नोकझोंक हुई। पुलिस ने किसानों को दिल्ली की तरफ से उगाही से रोका था।

कृषि कानून को लेकर 378 दिन तक किसानों का आंदोलन चला
17 सितंबर 2020 को लागू किए गए तीन नए कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली की सीमा पर देश के इतिहास में सबसे उग्र किसान आंदोलन चला था। पंजाब से शुरू हुआ आंदोलन पूरे देश में फैल गया। 25 नवंबर 2020 को दिल्ली के किसानों के लिए निकलेगा। इसके 378 दिन बाद 11 दिसंबर 2021 को किसानों ने किसान संयुक्त मोर्चा विजय दिवस मनाया, जिसके बाद आंदोलन समाप्त हो गया।

हजारों किसानों ने ‘दिल्ली चलो’ अभियान के तहत केंद्र के तीन भवनों को पूरी तरह से नष्ट करने की मांग की थी। पंजाब, हरियाणा, यूपी, राजस्थान सहित देश के अन्य राज्यों के किसान दिल्ली में थे। इस आंदोलन में 700 किसानों की मौत हो गई थी।

19 नवंबर 2021 को केंद्र सरकार ने किसानों की मांगें मन ली थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरु नानक देव के प्रकाश पर्व पर तीर्थयात्रा का उद्घाटन किया था। इसके बाद किसानों ने 11 दिसंबर को आंदोलन खत्म कर दिया था।

तीन कृषि कानून, अकेले खिलाफ आंदोलन कर रहे थे किसान
तीन नए कृषि विधानों को 17 सितंबर, 2020 को विपक्ष ने विचार किया था। राष्ट्रपति ने 27 सितंबर को टाइल बिल्डिंग का प्रस्ताव रखा था। इसके बाद से ही किसान विधायकों ने कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया था। ये त्रिविध कानून अब वापस हो गए हैं।

1. किसान उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) 2020
इस कानून में एक ऐसा इकोसिस्टम बनाने का प्रस्ताव था, जहां किसानों और उद्यमियों को मंडी से बाहर कर दिया गया। कानून में राज्य के अंदर और दो राज्यों के बीच व्यापार को बढ़ावा देने की बात कही गई थी। साथ ही मार्केटिंग और बिजनेस का खर्च कम करने की बात भी इस कानून में थी।

2. कृषक (साशक्तिकरण-संरक्षण) मूल्य निर्भरता और कृषि सेवा पर होल्डिंग सेमिनार 2020
इस कानून में कृषि नियमों (एग्रीकल्चर एग्रीमेंट) पर नेशनल फ्रेमवर्क का प्रस्ताव रखा गया था। ये कृषि उद्यमियों की बिक्री, फार्म सेवाएँ, कृषि व्यवसाय फर्म, प्रोसेज़र्स, थोक और व्यापारी और उत्पाद विक्रेताओं के साथ जुड़े हुए थे। इसके साथ किसानों को गुणवत्तापूर्ण बीज की आपूर्ति, फसल स्वास्थ्य की निगरानी, ​​ऋण की सुविधा और फसल बीमा की सुविधा देने की बात इस कानून में थी।

3. आवश्यक वस्तु (संशोधन) 2020
इस कानून में अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेल प्याज, और आलू को आवश्यक वस्तुओं की सूची से निकालने का प्रस्ताव था। सरकार के अनुसार, इससे किसानों को उनकी फसल की सही कीमत मिलने का दावा किया गया था, क्योंकि इससे बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ने की उम्मीद थी।

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