दिल्ली दंगों का फैसला; पीएम नरेंद्र मोदी सरकार पर जस्टिस एस मुरलीधर | पता नहीं मेरे नामांकन से केंद्र क्यों नाराज हुआ, मैंने वही किया जो सही था

नई दिल्ली6 मिनट पहले

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ओडिशा उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एस एस मुरलीधर ने कहा कि उनके पास जानकारी नहीं है कि 2020 के दिल्ली निवास को लेकर उन्होंने जो आदेश जारी किया था, उससे केंद्र सरकार नाराज क्यों हो गई। असल में, जस्टिस मुरलीधर तब दिल्ली उच्च न्यायालय में न्यायाधीश थे। उन्होंने पुलिस को आदेश दिया था कि दिल्ली में बंद गोदामों में बंद आरोपियों पर भाजपा नेताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाए।

जस्टिस मुरलीधर बोले- जो मैंने किया वही दूसरे जज ने भी किया
बैंगलॅल में आयोजित एक ऑनलाइन न्यूज पोर्टल के कॉन्सेप्ट डिस्कशन में पूछा गया था कि क्या आपके आदेश से आपकी सरकार नाराज है और क्या आपको सुप्रीम कोर्ट के जज बनने का मौका नहीं मिला है?

इसके जवाब में मुरलीधर ने कहा, ‘मुझे नहीं पता कि ऑर्डर में नाराजगी कैसी थी? किसी भी जज ने यही किया. दिल्ली हाईकोर्ट में मेरे किसी भी दोस्त ने मेरी तरह ही रिएक्ट किया। तो अगर सरकार नाराज हुई, तो नाराज होने वाली क्या बात थी, इसे लेकर मैं भी अनादि हूं, धीरे-धीरे आप हैं।’

मेरे पास डाउनलोड करने के लिए और कुछ भी नहीं है। और इससे भी ज्यादा किसी बात से फर्क नहीं पड़ता क्योंकि कई लोगों को लगा था कि मैंने जो सही किया है। बल्कि मुझे बाद में बताया गया कि कोर्ट के पास केस में कई जिंदगियां बचई जा सकीं थीं।

आधी रात घर पर की सुनवाई
26 फरवरी 2020 को जस्टिस मुरलीधर ने अपने घर पर आधी रात को एक सुनवाई की थी, जिसमें उन्होंने दंगा प्रभावित इलाके के एक अस्पताल में भर्ती लोगों को श्रद्धांजलि देने का आदेश दिया था। इस ऑर्डर के बाद उन पेशेंट को बड़े अस्पताल ले जाया जा सका, जिसमें अर्जेंट मेडिकल स्टॉक की जरूरत थी।

दिल्ली पुलिस को मिली शहीद स्मारक की क्लिप
इसी दिन उन्होंने एक और वीडियो में कहा कि दिल्ली पुलिस को कैसे नहीं पता कि बीजेपी नेता बयान दे रहे हैं, जो सोशल मीडिया पर भी वायरल हो रहे हैं। कोर्ट ने उन्हें आदेश दिया कि इन नेताओं पर अगले 24 घंटे में एफआईआर दर्ज कराएं।

उन्होंने अदालत में मौजूद पुलिसवालों को ऐतिहासिक स्मारकों की कुछ क्लिप सुनाने के लिए कहा और दिल्ली पुलिस के विरोध को बरकरार रखते हुए एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया। इसी रात केंद्र सरकार ने उन्हें पंजाब और हरियाणा के उच्च न्यायालयों में स्थानांतरित कर दिया।

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