तेलंगाना एग्जिट पोल | तेलंगाना एग्जिट पोल परिणाम 2023 अपडेट; कांग्रेस बीआरएस बनाम बीजेपी सीटें | बीआरएस 101 से 50 के करीब, भाजपा को बहुमत-से-अधिकांश 10 लक्ष्य

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राज4 मिनट पहले

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तेलंगाना में विधानसभा चुनाव की वोटिंग के बाद एक्जिट पोल अनाउंस शुरू हो गया है। पहले 5 डिजिटल पोल में कांग्रेस को बढ़त दिख रही है। कांग्रेस को बहुमत के लिए जरूरी 60 से ज्यादा बहुमत मिल रही हैं। वहीं स्थाई स्थाई पार्टी भारत राष्ट्र समिति (बीएसआर) 101 से 50 पर सीमेंट दिख रही है। बीजेपी को सबसे ज्यादा 10 श्रद्धालु ही मिल रहे हैं।

2023 विधानसभा चुनाव का जनमत सर्वेक्षण

2018 में तेलंगाना विधानसभा चुनाव में बीजेपी को सिर्फ एक सीट मिली

तेलंगाना में 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी को सिर्फ एक सीट मिली थी। मुख्यमन्त्री मुख्यमंत्री के चन्द्रशेखर राव की पार्टी टीआरएस (2022 को पार्टी का नाम तेलंगाना राष्ट्र समिति से तीर्थ भारत राष्ट्र समिति कर दिया गया) को सबसे ज्यादा 88 सीटें मिलीं। वहीं कांग्रेस के 19 सदस्यों ने प्रवेश किया।

स्थाई स्थिति की बात करें तो स्थाई पार्टी के पास इस वक्त 119 विधानसभा के 101 विधायक हैं। वहीं असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM के पास 7 विधायक हैं, जबकि कांग्रेस के पास पांच, बीजेपी के पास तीन, AIFB के पास एक, एक नामित और एक विधायक है.

तेलंगाना में यह तीसरा विधानसभा चुनाव है
आंध्र प्रदेश से हटकर तेलंगाना जून 2014 में नया राज्य बना था। इसके बाद यहां दो चुनाव हुए, दोनों ही तेलंगाना में अलग-अलग राज्य बनाने के लिए आंदोलन करने वाली पार्टी टीआरएस (तेलंगाना राज्य समिति, जो अब भारत राष्ट्र समिति बीआरएस हो गई है) बहुमत में आ गईं। अभी 119 मंजिल वाली विधानसभा में 101 मंजिल के. चन्द्रशेखर राव के नेतृत्व वाली बीएसआर के पास ही हैं।

केसीआर कैसे बने तेलंगाना की पहली पसंद?
केसीआर तेलंगाना आंदोलन का महत्व और लाभ दोनों ही मिलाप। उनके खिलाफ़ इस आंदोलन के दौरान 9 लैपटॉप दर्ज किए गए। फायदा ये हुआ कि तेलंगाना बनने के बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा फायदा उन्हें ही मिला।

केसीआर राज्य के सबसे अच्छे वक्ता बन गए। शानदार भाषण के माध्यम से उन्होंने जनता के बीच अपनी पकड़ मजबूत की। नया राज्य बनने के बाद उन्होंने पूरे राज्य का दौरा किया, लोगों से मुलाकात की और बेहतर भविष्य का वादा किया।

तेलंगना की मांग यहां की जनता का हितैषी था। राज्य बनने के बाद लोगों को लगा कि यह मांग केसीआर ने ही पूरी की है। इस कारण तेलंगाना आंदोलन के दौरान लोगों ने उन्हें समर्थन दिया। तेलंगाना राज्य बनने के बाद राज्य में टीआरएस की ही सरकार है और राव के ही मुख्यमंत्री हैं। तेलंगाना के लिए अलग राज्य का प्रस्ताव पारित करने वाली कांग्रेस पार्टी तेलंगाना की सत्ता से अभी भी दूर है।

अब जानिए तेलंगाना के पहले आंध्र प्रदेश में शामिल फिर अलग राज्य बनने की कहानी
‘मैंने बर्रे का छत्ता छेड़ दिया है और मुझे लगता है कि जल्द ही हम सब दंश झेलेंगे।’ 1953 में आंध्र प्रदेश में तेलंगाना को भी शामिल किया गया था, जाने के बाद यह बात पंडित नेहरू ने कही थी। ये बात सच साबित हुई जब 1969 में अलग-अलग तेलंगाना आंदोलन में 369 छात्र मारे गए। तेलंगाना के गठन का प्रस्ताव प्रसारित भाषण संसद में चिली स्पार्क चला और तेलंगाना बनाने के बावजूद कांग्रेस यहां कभी सत्ता में नहीं आ सकी।

‘ऑपरेशन पोलो’ के माध्यम से हैदराबाद का भारत में विलय हुआ
जुलाई 1947 में ब्रिटिश हुकूमत ने भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के तहत भारत की आजादी की घोषणा की। उस वक्त भारत की रियासतों के 3 विकल्प दिए गए- भारत में शामिल हो, पाकिस्तान में शामिल हो या स्वतंत्र रहे।

रेजिडेंट के निज़ाम मीर उस्मान अली का अंतरिम रेजिडेंट को आज़ाद रखा गया था। मैं चाहता था कि सिर्फ ब्रिटिश सम्राटों से ही संबंध रहे। उस वक्ता के कहे अनुसार सरदार वल्लभ भाई पटेल ने 13 सितंबर 1948 को भारतीय सेना को सिकंदर पर निशाना साधने का आदेश दे दिया। 3 दिन बाद ही भारतीय सेना ने हैदराबाद पर कब्ज़ा कर लिया।

42 भारतीय सैनिक शहीद हो गए और 2 हजार रजाकार (निजाम की निजी सेना के सैनिक) मारे गए। हालाँकि, अलग-अलग लोग इस आंकड़े को काफी हद तक इंगित करते हैं। 17 सितम्बर 1948 को निज़ाम ने हैदराबाद के भारत में विलय की घोषणा की।

रेजिडेंट के निज़ाम मीर उस्मान अली खान के साथ भारत के उस वक्त के सरदार सरदार वल्लभ भाई पटेल।

रेजिडेंट के निज़ाम मीर उस्मान अली खान के साथ भारत के उस वक्त के सरदार सरदार वल्लभ भाई पटेल।

रेजिडेंसी को मद्रास प्रेसिडेंसी में शामिल किया गया। तेलंगाना इस समय हैदराबाद का ही हिस्सा था। उसी वक्त मद्रास में पौराणिक भाषा के लोगों ने प्लॉस्टेस्ट करना शुरू कर दिया। इन लोगों की मांग थी कि प्राचीन भाषा के आधार पर एक नया राज्य स्थापित किया जाए, जो मद्रास राज्य से अलग हो। भारत के बड़े नेताओं को भाषा के आधार पर राज्य की रोशनी की मांग रास नहीं आई।

इस दौरान पुरातत्व में भाषा के आधार पर अलग राज्य की मांग, दक्षिणी भारत के कई राज्यों में उठ रही थी। इस मसले को दस्तावेज के लिए दिसंबर 1948 में एक समिति बनायी गयी। इस समिति में अलोकतांत्रिक प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, सम्राट सरदार वल्लभभाई पटेल और राष्ट्रपति कांग्रेस अध्यक्ष लीपाभी सीतारमैय्या थे।

इन तीनों के नाम के प्रारंभिक पत्र को समिति का नाम जेवीपी (जेवीपी) रखा गया। इस समिति ने अप्रैल 1949 में पेश की और ये शोक की रिपोर्ट दी- राज्य का पुनर्निर्माण, भाषा के आधार पर, आर्थिक विकास, राष्ट्रीय एकता और सुरक्षा का आधार बनाया जाए।

आंध्र प्रदेश बना टैब, तेलंगाना, भाग नहीं था
अक्टूबर 1952 में पोट्टी श्रीरामुलु आंध्र प्रदेश की मांग को लेकर भूख हड़ताल शुरू हुई। 57 दिन बाद उनकी मृत्यु हो गयी। इस कारण पूरे मद्रास में समुद्र तट मचता है। लोगों को एतिहासिक बनाने के लिए सरकारी पुलिस का सहारा लेना पड़ता है। पुलिसिया कार्रवाई में कई लोगों की जान चली गई है। वैचारिक कांग्रेस नेताओं ने अपनी मांग को स्वीकार किया है।

16 मार्च 1901 को सऊदी पोट्टी श्रीरामुलु के बारे में गांधीजी ने एक बार कहा था कि अगर मेरे पास श्रीरामुलु जैसे 11 और शिष्य हों तो मैं भारत को एक साल में आज़ाद करा लूँगा।

16 मार्च 1901 को सऊदी पोट्टी श्रीरामुलु के बारे में गांधीजी ने एक बार कहा था कि अगर मेरे पास श्रीरामुलु जैसे 11 और शिष्य हों तो मैं भारत को एक साल में आज़ाद करा लूँगा।

1 अक्टूबर 1953 को मद्रास से अलग एक नया राज्य आंध्र प्रदेश बना। इसकी राजधानी कर्नुल बनी है। तेलंगाना अभी भी आंध्र का हिस्सा नहीं था और हैदराबाद का हिस्सा था।

जेंटलमेन एग्रीमेंट के माध्यम से आंध्र प्रदेश में तेलंगाना का विलय हुआ
आंध्र प्रदेश को मिलाने के मुद्दे पर दिसंबर 1955 में त्रिपुरा भाषी क्षेत्र का एक प्रस्ताव पेश हुआ। सदन के 174 में से 103 विधायक इस प्रस्ताव का समर्थन करते हैं। इस वक़्त तेलंगाना क्षेत्र में 94 विपक्षी दल शामिल थे, जिनमें से 59 ने इस प्रस्ताव के पक्ष में सहमति जताई। हालाँकि, तेलंगाना के कुछ नेता इसके ख़िलाफ़ थे।

इसके बाद विलय के लिए तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के बीच एक समझौता हो गया। इस एक्टैक्ट को ‘जेंटलमेन एग्रीमेंट’ नाम दिया गया। इसके माध्यम से आंध्र प्रदेश में विलय के बाद तेलंगाना के हितों और अधिकारों की रक्षा की जाएगी। उसके साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा। तेलंगाना के रेवेन्यू और आय का उपयोग तेलंगाना के ही विकास में खर्च किया जाएगा। 1 नवंबर 1956 को संयुक्त आंध्र प्रदेश का गठन हुआ।

आंध्र प्रदेश में तेलंगाना के विलय के बाद पीएम नेहरू ने कहा था- ‘एक मासूम लड़की की शादी एक नटखट लड़के से हो रही है। ‘वो प्रशिक्षण तो साथ रह सकते हैं या अलग भी हो सकते हैं।’

वो जेंटलमेन एग्रीमेंट से नाराज़ थे। इसी वजह से उन्होंने इस एग्रीमेंट की तुलना शादी से करते हुए कहा था कि किस तरह की शादी के बाद तलाक होता है। व्लादिका ही कंडीशन इस अनुबंध के साथ भी है।

54 साल पहले तेलंगाना आंदोलन में 369 बच्चों की हत्या कर दी गई थी
हैदराबाद शहर के बीचों-बीच लाल बहादुर स्टेडियम के पास एक प्रसिद्ध पार्क है- गन पार्क। इस पार्क में एक यादगार बनी है, जिसके पीछे की कहानी है तेलंगाना आंदोलन से जुड़ी हुई।

तेलंगाना आंदोलन के दौरान पुलिस की ओर से गन पार्क में मारे गए 369 मृतकों की याद में स्मारक बनाया गया।

तेलंगाना आंदोलन के दौरान पुलिस की ओर से गन पार्क में मारे गए 369 मृतकों की याद में स्मारक बनाया गया।

1969 की बात है. अचानक से तेलंगाना आंदोलन फिर से जोर पकड़ लेता है। तेलंगाना राज्य की मांग को लेकर एक उत्पाद प्रस्ताव शुरू हुआ है। इस आंदोलन का नाम है- जयतेलंगाना। आंदोलन कर रहे लोगों का कहना था कि राज्य में जेंटलमेन एग्रीमेंट का पालन नहीं हो रहा है।

इस आंदोलन में शामिल थे इसी पार्क में प्रदर्शन कर रहे थे। यह प्लास्टोस्टेस्ट के दौरान पुलिस द्वारा किया जाता है। इस हथियार में 369 मृतकों की मौत हो गई है। इन निवेशकों के बाद भी तेलंगाना राज्य की मांग पूरी नहीं होती।

1973 इंदिरा गांधी ने तेलंगाना आंदोलन के लिए सितंबर में संविधान में संशोधन किया।  इसके अलावा आंध्र प्रदेश को 6 जोन में बांटकर हर जोन के लिए नीतीश का कार्यक्रम आयोजित किया गया।

1973 इंदिरा गांधी ने तेलंगाना आंदोलन के लिए सितंबर में संविधान में संशोधन किया। इसके अलावा आंध्र प्रदेश को 6 जोन में बांटकर हर जोन के लिए नीतीश का कार्यक्रम आयोजित किया गया।

2001 में फिर से शुरू हुआ तेलंगाना आंदोलन

  • 2001 में फिर से तेलंगाना बनाने की मांग शुरू हुई। तीन नए राज्य छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और झारखंड के बनने की वजह से होता है ऐसा। अब तेलंगाना की मांग को लेकर तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के नाम से नई पार्टी बनी है।
  • कांग्रेस और टीडीपी की राजनीति में तीरंदाज के चन्द्रशेखर राव (केसीआर) इस पार्टी के मुखिया थे। राव ने नारा दिया कि- ‘तेलंगाना वाले जागो और आंध्र वाले भागो।’
  • 2004 में टीआरएस और कांग्रेस ने गठबंधन कर चुनाव लड़ा। केसीआर की पार्टी ने 4 मंजिल और 26 विधानसभा मंदिर बनाए। 2009 में हबनगर लोकसभा सीट से केसीआर चुनाव जीते। उन्होंने तेलंगाना राज्य में संसद की मांग उठाई।
  • 2009 में करीमनगर में राव न्यू स्टेट के लिए आंदोलन किया। पोस्ट टाइम पुलिस उन्हें गिरफ़्तार कर लेती है। राव के समर्थक सड़कों पर उतरते हैं।
  • आख़िर में केंद्र सरकार 11 दिन से उपवास कर रही है राव के आगे झुक गई है। 9 दिसंबर 2009 को केंद्र सरकार ने घोषणा की कि जल्द ही तेलंगाना राज्य को संसद में विधेयक पेश किया जाएगा।
नवंबर 2009 में तेलंगाना राज्य की मांग के लिए केसीआर ने अमरण पोस्ट किया।  तेलंगाना राज्य की परिणामी सरकार की घोषणा की गई।

नवंबर 2009 में तेलंगाना राज्य की मांग के लिए केसीआर ने अमरण पोस्ट किया। तेलंगाना राज्य की परिणामी सरकार की घोषणा की गई।

तेलंगाना का विरोध कर रहे न्यूनतम ने संसद में चिली स्पिकरा स्प्रे किया

  • संसद में 13 फरवरी 2014 को आंध्र प्रदेश री-ऑर्गनाइज्ड बिल के आधार पर श्रीकृष्णा समिति की रिपोर्ट पेश की गई। इसी बिल के तहत तेलंगाना राज्य बनने वाला था।
  • बहस के दौरान बिल के विरोध में विजय वामपंथी से कांग्रेस सांसद एल राजगोपाल ने मुक्का हंगामा के पास रख बॉक्स को तोड़ दिया। इसके बाद उन्होंने अपनी जेब से चिली स्प्रेडर को अपने चारों ओर छिड़क दिया। इसके बाद मैसाचुसेट्स को अस्पताल ले जाया गया।
  • भारतीय संसद के इतिहास में ऐसी घटना पहली बार हुई थी। इस घटना में 18 कंकालों को नष्ट किया गया था।

आख़िरकार नया राज्य तेलंगाना बन गया
आंध्र प्रदेश रीऑर्गनिज्म बिलवोम और सागर के पास हो सकता है। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के बिल पर 2 जून 2014 को ही हस्ताक्षर किए गए थे। लगभग 70 साल बाद आंदोलन कर रहे लोगों की मांग पूरी होती है।

आंध्र प्रदेश के रेगिस्तान के बाद तेलंगाना राज्य में 10 सजावटी को शामिल किया गया है। साथ ही दोनों राज्यों के बीच की समानता यह है कि अगले 10 पूर्वी राज्यों तक की राजधानी सिकंदराबाद बनी रहेगी। इसकी सीमा 2024 तक है, लेकिन आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के बीच को लेकर अलग राजधानी अब भी विवाद जारी है।

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