तलाकशुदा मुस्लिम महिला पुनर्विवाह के बावजूद भरण-पोषण की हकदार | तलाकशुदा मुस्लिम महिला की शादी के बावजूद भरण-पोषण की शिकायत: बॉम्बे एचसी बोला- मुस्लिम पति को पूरी जिंदगी तलाकशुदा पत्नी की जिम्मेदारी उठानी होगी

मुंबई2 मिनट पहले

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बॉम्बे हाईकोर्ट में जस्टिस राजेश पाटिल की सिंगल बेंच तलाक के मामले में गुजराता हाईकोर्ट में जाने का निर्णय अंतिम है।  - दैनिक भास्कर

बॉम्बे हाईकोर्ट में जस्टिस राजेश पाटिल की सिंगल बेंच तलाक के मामले में गुजराता हाईकोर्ट में जाने का निर्णय अंतिम है।

बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा- तलाकशुदा मुस्लिम महिला की शादी कर दी गई है, तब भी वह अपने पूर्व पति से तलाकशुदा महिला अधिकार सुरक्षा कानून (मुस्लिम महिला तलाक अधिकार संरक्षण अधिनियम 1986, एमडब्ल्यूपीए) के तहत गुजराता बोचा के अधीन है। प्राप्त की अंकित है.

टीओआई के मुताबिक, जस्टिस राजेश पटेल की सिंगल बेंच ने कहा- तलाक की हकीकत आपकी पत्नी के लिए धारा 3(1)(ए) के तहत भरण-पोषण का दावा करने के लिए उपयुक्त है। इसके साथ ही कोर्ट ने पूर्व पत्नी एकमुश्त गुजराता बोचा के दो दावों पर पति की अपील को खारिज कर दिया। कोर्ट ने पति को उनकी पूर्व पत्नी को 9 लाख रुपये का गुजरात बिजनेस ऑफर देने का आदेश दिया है।

कोर्ट ने कहा- भले ही तलाकशुदा महिला की शादी कर ले, गुजरात सरकार को दोषी ठहराया जाए

जस्टिस याचिकाकर्ता ने 2 जनवरी को जजमेंट में कहा- एक्ट की धारा 3(1)(ए) के खिलाफ किसी शर्त के बिना शादी का प्रस्ताव है। यह (धारा) गरीबी पर रोक और तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं के अधिकार की सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य पर प्रकाश डालती है, भले ही महिला ने विवाह ही क्यों ना कर ली हो।

‘मुस्लिम पुरुष तलाक के बाद भी जीवनभर पूर्व पत्नी की जिम्मेदारी’
जस्टिस पाटिल ने वर्ष 2001 में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का ज़िक्र किया। उन्होंने कहा कि तलाकशुदा पत्नी की पूरी जिंदगी के लिए तलाकशुदा पत्नी का तलाक केवल तय समय सीमा के लिए नहीं है। कोर्ट ने साफाटूर पर कहा कि पति को तय समय सीमा के अंदर गुजरात बंद करना होगा।

न्यायाधीश याचिकाकर्ता ने कहा कि MWPA में एक बार दी गई भरण-पोषण राशि को बढ़ाने के लिए पोषण की कमी है। गुजरात-भत्ता की राशि पहले ही तय कर दी गई है। अब पत्नी अच्छी है और भविष्य में फिल्मी शादी कर रही है, लेकिन कोर्ट ने एकमुश्त रशीद को कोई असर नहीं करने का आदेश दिया।

ये है मामला

कपल की शादी 9 फरवरी 2005 को हुई थी। 1 दिसंबर 2005 को उनके घर बेटी का जन्म हुआ। पति की नौकरी के लिए सऊदी अरब चला गया। जून 2007 में बेटी को लेकर रत्नागिरी के चिपलुन में अपने माता-पिता के घर रहने लगी।

महिला ने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण का आवेदन तैयार किया, इस पर पति ने अप्रैल 2008 में रजिस्टर्ड मेल से उसे तलाक दे दिया। चिपलुन के प्रथम श्रेणी न्यायालय ने महिला का भरण-पोषण आवेदन खारिज कर दिया। इसके बाद महिला ने MWPA के तहत नया आवेदन स्थापित किया।

इस पर कोर्ट ने पति को बेटी के लिए गुजराता बच्चन और पत्नी को एकमुश्त राशि देने का ऑर्डर दिया। पति ने चैलेंज को चुनौती दी और पत्नी ने भी बड़ी बड़ी राशि की मांग करते हुए आवेदन पत्र तैयार किया। सेशन कोर्ट ने पत्नी का आवेदन आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए एकमुश्त भरण-पोषण राशि उधार 9 लाख रुपये कर दी। इस पर पति ने एटर्नियल आवेदन की नियुक्ति की।

इस दौरान पता चला कि पत्नी ने अप्रैल 2018 में दूसरी शादी की थी, लेकिन अक्टूबर 2018 में फिर से तलाक हो गया। पति की तरफ से तर्क दिया गया कि दूसरी शादी करने के बाद महिला को अपने पहले पूर्व पति से भरण-पोषण की अनुमति नहीं है। महिला केवल अपने दूसरे पूर्व पति से ही गुजराता भत्ता मांग सकती है।
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बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक जजमेंट में कहा कि मुस्लिम महिला तलाक के बाद भी घरेलू हिंसा कानून के तहत गुजराता भत्ता की मांग कर सकती है। केस बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच में था। न्यायमूर्ति जी सनप ने महिला पति की समीक्षा याचिका को खारिज कर दिया। पूरी खबर पढ़ें…

मुस्लिम महिलाओं के लिए तलाक के तहत तलाक की अर्जी नहीं दी जा सकती

मद्रास उच्च न्यायालय ने मुस्लिम महिलाओं के तलाक को एक बड़ा फैसला बताया है। कोर्ट ने कहा कि शरीयत काउंसिल न तो कोर्ट है और न ही मध्यस्थ, इसलिए वे खुले के तहत तलाक को प्रमाणित नहीं कर सकते हैं। पूरी खबर पढ़ें…

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