चुनावी तंबू को अब प्याज की मालाओं से सजाने की जरूरत है | वैज्ञानिक शामियानों को अब प्याज़ की मालाओं से गहनों की ज़रूरत है

10 मिनट पहलेलेखक: नवनीत गुर्जर, नेशनल भास्कर, दैनिक भास्कर

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चुनाव प्रमुख पर हैं। विशिष्टकर, तीन राज्यों में लड़ाई अहम् खदान पर पहुंच गई है। राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की पार्टी और उनके बेटे इन दिनों एचडीएफसी को झेलने पर मजबूर हैं। छत्तीसगढ़ में राहुल गांधी खेत में उतरकर धान काट रहे हैं और मध्य प्रदेश में मनोहर सुपरमैन बने उड़ रहे हैं।

असल में, असल सुपरमैन प्याज है। वो जो ओएनजीस पहले मैगज़ीन बदल चुका है, अब ऐन इलेक्शन के वक्त फिर से सत्तार- अस्सी रुपये किल तक पहुंच गया है। घर-परिवार, मोहल्लों और समुदायों में भी आबादी, समुदाय से ज्यादा लोगों की चर्चा चल रही है। हालाँकि अब मोरमोन बादल ने भुगतान किया है। विविध से लोगों को अब बहुत अधिक फ़र्क़ नहीं।

प्याज़ की प्लांटियों से राजनीतिक पार्टियाँ डरी हुई नहीं हैं।  वे नौकरियां हैं जो अब बेरोजगारी नहीं रही हैं।

प्याज़ की प्लांटियों से राजनीतिक पार्टियाँ डरी हुई नहीं हैं। वे नौकरियां हैं जो अब बेरोजगारी नहीं रही हैं।

ऑफ़लाइन हो गया और लोग आगे बढ़ गए। आज का भाव कौन पूछता है? किसी को भी पैसे वापस नहीं मिलते, क्योंकि जेब से अकाउंट गिनकर अब कोई नहीं देता। इसी कारण से पैसे का ढांचा नहीं पता चल पाया।

इसलिए प्याज़ की प्लांटियों से लेकर राजनीतिक पार्टियाँ डरी हुई नहीं हैं। वे नौकरियां हैं जो अब बेरोजगारी नहीं रही हैं। कांग्रेस और अन्य छोटे दलों में अब भी बड़ी संख्या में लोग रहते हैं, लेकिन वे खुद भी शामिल हैं कि उनका स्वरूप अब दस-पंद्रह साल पहले जैसा नहीं दिख रहा था।

जहाँ तक राजस्थान में मशख़ली का राज़ की बात सबसे ज़्यादा दिखाई देती है। गाँवों, ढांकियों में अभी भी स्टैच्यू मोनाटर वैसा नहीं दिख रहा था जैसा कि पिछले चुनावों में रहता था। इसका मतलब साफ है कि इस बार कोई तूफानी लहर या आँधी नहीं है। यही कारण है कि मुकाबला काँटे का होने की संभावना सामने आ रही है।

काँटे के मुक़ाबले का अर्थ है सभी प्रमुख पार्टियों में हर तरह के औज़ारों का इस्तेमाल किया जाता है। प्रेक्षक कहते हैं इस बार का चुनाव अब तक का सबसे महंगा और महंगा चुनाव होगा। तल्खी आएगी तो कटुता भी आएगी। जो कि दिखाई भी दे रही है।

भारत नाम से गैर भाजपा विचारधारा ने कुछ समय पहले एक गठबंधन खड़ा किया था।

भारत नाम से गैर भाजपा विचारधारा ने कुछ समय पहले एक गठबंधन खड़ा किया था।

सभी पांच राज्यों की बात करें तो यहां भारत वाले नजर नहीं आ रहे हैं। भारत नाम से गैर भाजपा विचारधारा ने कुछ समय पहले एक गठबंधन खड़ा किया था। इस चुनाव में उनका कोई असर नहीं दिख रहा है.

क्योंकि इस गठबंधन में जो भी राजनीतिक दल शामिल थे, उनके बीच भी कोई सामंजस्य नहीं हो पा रहा है। देखिये यह है कि ‘नोज़मो चुनाव में क्या होता है। राज्यों के चुनाव में पहले से ही पता था कि उनके खिलाफ गठबंधन मुश्किल है क्योंकि गठबंधन में शामिल क्षेत्रीय ताकतें राज्यों में एक-दूसरे के खिलाफ लड़ रही हैं। ऐसे में वे अपना बेस नहीं खोना चाहते हैं।

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