गोपनीयता के नाम पर महिलाओं के अधिकारों को दबाना आम बात है: सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ | सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा- महिला अधिकारों की रक्षा के लिए होटलों में बदलाव जरूरी

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बैंगलोर34 मिनट पहले

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सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ बेंगलुरु में नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के कार्यक्रम में शामिल हुए थे।  - दैनिक भास्कर

सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ बेंगलुरु में नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के कार्यक्रम में शामिल हुए थे।

भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) दिवाई चंद्रचूड ने घर में महिलाओं के अधिकारों के उल्लंघन को लेकर कानून बनाने की आवश्यकता बताई है। सीजेआई रविवार 17 दिसंबर को नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी बेंगलुरु में एक कार्यक्रम में मौजूद थे।

उन्होंने कहा- निजता की प्रतिष्ठा में घर के अंदर महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन आम बात है। वक्त आ गया है इसे लेकर हवेली में अहम बदलाव।

निजी और सार्वजनिक स्थानों पर शांति भंग करना एक सा कानून लागू हो
चंद्रचूड़ ने कहा- मैंने सार्वजनिक और निजी दोनों जगहों पर लैंगिक भेदभाव देखा है। भारतीय दंड संहिता में प्रावधान है कि जब दो या दो से अधिक मनोवैज्ञानिकों को पढ़ाकर सार्वजनिक शांति भंग की जाती है, तो अपराध माना जाता है। हालाँकि, यह केवल तभी दंडनीय है, जब यह सार्वजनिक स्थान हो।

CJI बोले- लेकिन, अगर निजी स्थान पर ऐसा हो तो इसे अपराध नहीं माना जाता. इस द्वंद्व ने कई प्राचीनतम से हमारे सिद्धांतों की नारीवादी और आर्थिक आलोचना का आधार बनाया है। स्वतंत्रता की वास्तविक अभिव्यक्ति में है। इसलिए दोनों को ही स्थान पर अनुभव होना चाहिए।

घर में महिलाओं के परिश्रम का परिश्रम तक नहीं
चंद्रचूड़ ने कहा- भारतीय गृहस्थी में महिलाएं एक गृहिणी के रूप में स्थिर परिश्रम करती हैं। इसलिए घर ही उसकी आर्थिक गतिविधि का भी स्थान है। लेकिन, इसके लिए उसे आर्थिक मेहनत तक नहीं करनी है। उसे केवल शारीरिक शल्य चिकित्सा तक सीमित रखा जाता है। यह भी एक तरह के अधिकार का उल्लंघन है। इसकी शुरुआत के लिए कानून में कोई भी खामी या स्पष्ट प्रावधान नहीं है।

महिलाओं के लिए पहले भी कई बार चीफ जस्टिस कह चुके हैं सीजेआई

1. अविश्वास में महिलाओं को अधिकारहीन करना चाहिए
अक्टूबर में जयपुर में हाई कोर्ट के प्लेटिनम जुबली समारोह के उद्घाटन अवसर पर सीजेआई ने कहा कि कम्युनिस्ट पार्टी की कम्युनिस्ट पार्टी में महिलाओं को आरक्षण दिया जाना चाहिए। उन्होंने राजस्थान उच्च न्यायालय में वकील कोटे से सिर्फ दो महिला जजों को आश्चर्यचकित कर दिया था। उन्होंने कहा कि देश बहुत तेजी से बदल रहा है, ऐसे में मुजफ्फरपुर को भी वक्त के साथ बदलना चाहिए। हमें नई तकनीक का इस्तेमाल लेकर जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए।

2. अदालतों में प्रोस्टिट्यूट-मिस्ट्रेस जैसे शब्द का प्रयोग नहीं किया जाएगा
सुप्रीम कोर्ट के सोलो और डीलों में अब जेंडर पिच के शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के इस्तेमाल के लिए जेंडर लेक प्लैंक कॉम्बैट हैंडबुक लॉन्च की है। अगस्त 2023 में सीजेआई चंद्रचूड़ ने हैंडबुक जारी करते हुए कहा था कि जजों और वकीलों को ये समझ में आना आसान होगा कि कौन से शब्द रूढ़िवादी हैं और उन्हें कैसे बचाया जा सकता है।

3. सेक्सिस्ट भाषा, भद्दे चुटकुलों के खिलाफ जीरो टॉलरेंस जरूरी मार्च में महिला दिवस पर एक कार्यक्रम में मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने महिलाओं के लिए गलत व्यवहार, सेक्सिस्ट भाषा और भद्दे चुटकुलों के लिए जीरो टॉलरेंस के बारे में पक्की बात कही थी। उन्होंने कहा कि महिलाओं के लिए सेक्सुअल हैरेसमेंट लेकर जीरा टॉलरेंस हो। उनके अध्ययन में भी उनकी भाषा का ग़लत इस्तेमाल किया गया और भद्दे जोक सुनने जैसी चीज़ें भी ख़त्म हो गईं।

4. लीगल प्रोफेशन में महिला-पुरुष अनुपात असंतोषजनक
चंद्रचूड़ ने चेन्नई में एक कार्यक्रम में कहा था कि कोर्ट-कचहरी से जुड़े संबंधों में महिलाओं और पुरुषों का अनुपात अलग-अलग है। उन्होंने कहा कि महिलाओं को पुरुषों के समान ही स्थान दिया जाना चाहिए। युवा और काबिल महिला वकीलों की कोई कमी नहीं है। लेकिन ऐसा माना जाता है कि उनके पारिवारिक जिम्मेदारियां उनके कार्यालय के कार्यों में भूमिका निभाती हैं।

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