कृष्ण जन्मभूमि केस अपडेट; राष्ट्रीय परिषद की बैठक | अयोध्या के बाद मथुरा की ओर से बीजेपी: राष्ट्रीय परिषद की बैठक में श्रीकृष्ण जन्मभूमि के प्रस्ताव की तैयारी; दिल्ली में 16-18 फरवरी को मीटिंग

नई दिल्ली15 मिनट पहले

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श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह के बीच 13.37 ओकरा ग्राउंड पर विवाद है।  इसमें से करीब 2.37 ओकलैंड रॉयल ईदगाह के पास है।  - दैनिक भास्कर

श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह के बीच 13.37 ओकरा ग्राउंड पर विवाद है। इसमें से करीब 2.37 ओकलैंड रॉयल ईदगाह के पास है।

बीजेपी के अरोमा में अयोध्या के बाद अब मथुरा टॉप पर बने रहें। पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में श्रीकृष्ण जन्मभूमि का प्रस्ताव लाने की तैयारी है। ठीक वैसे ही जैसे 1989 में श्रीराम जन्मभूमि का प्रस्ताव लाया गया था। दिल्ली के भारत संग्रहालय में 16 से 18 फरवरी के बीच भाजपा की राष्ट्रीय परिषद की बैठक होगी।

इसमें भाजपा राज्यों के मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री, नेता विरोधी, प्रदेश अध्यक्ष समेत राष्ट्रीय परिषद के 8,000 प्रतिनिधि शामिल होंगे। सूत्र बता रहे हैं कि इस बैठक में प्रमुख सचिवालय श्रीकृष्ण जन्मभूमि का प्रस्ताव हो सकता है।

अभी पार्टी के शीर्ष नेताओं में इस को लेकर मन्थ हो रहा है कि यह प्रस्ताव सीधे तौर पर खुद भाजपा पेश करे या फिर किसी अन्य संगठन जैसे विहिप आदि के माध्यम से लाया जाये। ज्यादातर नेताओं का मानना ​​है कि पार्टी इसे खुद पेश करे और अन्य विद्वान-संस्थाओं से समर्थन का आग्रह करे।

हिंदू पक्ष का दावा है कि 10.9 एकड़ जमीन श्रीकृष्ण जन्मभूमि और 2.5 एकड़ जमीन शाही ईदगाह मस्जिद के पास है।  कुल 13.37 ओकरा ग्राउंड 'श्रीकृष्ण' की है।

हिंदू पक्ष का दावा है कि 10.9 एकड़ जमीन श्रीकृष्ण जन्मभूमि और 2.5 एकड़ जमीन शाही ईदगाह मस्जिद के पास है। कुल 13.37 ओकरा ग्राउंड ‘श्रीकृष्ण’ की है।

कोर्ट जाने से पहले मुस्लिम विचारधारा से भी बातचीत बीजेपी
बीजेपी का यह मुद्दा कैसे आगे है? भास्कर के इस सवाल पर पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा- जब-जब हम राम मंदिर का प्रस्ताव लाए, तब-तब हालात अलग थे। हम नामांकन में थे, इसलिए हमें लंबी अदालती कार्यवाही से विजिट किया गया।

अब केंद्र और यूपी दोनों जगह हम सरकार में हैं। हम मुस्लिम दृष्टि से बात करके हल निकालने की कोशिश करेंगे। यूपी सरकार जन्मभूमि को लेकर भी कानून बना सकती है। कोर्ट जाने का विकल्प सबसे आखिरी होगा।

प्रस्ताव कौन चाहता है, इस बात पर भी गहरा मंत
श्रीकृष्ण जन्मभूमि को लेकर कौन प्रस्ताव लेकर आया? इस सवाल पर पार्टी नेताओं का कहना है कि यह एक बड़ा संकल्प है और आने वाले कुछ वर्षों में यह पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के संतुलन का कारक बन सकता है। एक विचार ये है कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की तरफ से प्रस्ताव लाया जाए.

दूसरा विचार यह है कि राज्य इकाई प्रस्ताव पत्र, अपनी मंज़ूरी राष्ट्रीय परिषद करे। तीसरा विचार यह है कि धार्मिक या सांस्कृतिक अनुयायियों के पक्ष में इस बारे में प्रस्ताव रखा गया कि भाजपा से मांग पूरी करने को कहा जाए और फिर उस पर राष्ट्रीय परिषद की मुहर लग जाए।

श्रीकृष्ण जन्मभूमि को लेकर क्या है विवाद?
मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह के बीच 13.37 एकड़ जमीन को लेकर विवाद है। इसमें से करीब 2.37 ओकलैंड रॉयल ईदगाह के पास है। 1965 में प्रकाशित काशी के एक गजट के अनुसार इस मस्जिद का निर्माण एक पुराने मंदिर की जगह पर किया गया था।

इस पर पहले मराठों और बाद में अंग्रेजों का अधिपति था। 1815 में बनारस के राजा पटनी मल ने 13.37 को ओकलैंड की यह भूमि ईस्ट इंडिया कंपनी की एक नीलामी में बताई, जिस पर ईदगाह मस्जिद बनी है और जिसे भगवान कृष्ण का जन्म स्थान माना जाता है।

राजा पटनी मल के वंशजों ने ये जमीन जुगल किशोर बिड़ला को बेच दी थी और ये पंडित मदन मोहन मठ, गोस्वामी गणेश दत्त और भीकेन लालजी आत्रेय के नाम पर रजिस्टर्ड हुई थी। जुगल किशोर ने 1946 में श्रीकृष्ण जन्मभूमि के नाम से एक ट्रस्ट बनाया, जिसने कटरा केशव देव मंदिर का स्वामित्व हासिल कर लिया।

1968 में श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट-मुस्लिम पक्ष में समझौता हुआ
साल 1967 में जुगल टीनएजर की मौत हो गई थी। कोर्ट के रिकॉर्ड के अनुसार, 1968 से पहले का परिसर बहुत विकसित नहीं था। साथ ही 13.37 भूमि पर कई लोग बसे हुए थे। 1968 में ट्रस्ट ने मुस्लिम पक्ष से एक समझौता किया। इसके तहत शाही ईदगाह मस्जिद का पूरा मस्जिदों पर कब्जा कर लिया गया।

1968 में एकांत के बाद परिसर में रह रहे मुसलमानों को खाली करने को कहा गया। साथ ही मस्जिद और मंदिर को एक साथ संचालित करने के लिए बीच में दीवार बनाई गई। दरअसल यह भी तय है कि मस्जिद में मंदिर की ओर कोई खिड़की, दरवाजा या खुली नाली नहीं होगी। यानी यहां पूजा की दो जगह एक दीवार से अलग होती हैं।

हिंदू पक्ष का कहना है कि कमल के आकार पर मस्जिद के खंभे बनाए गए हैं।  इससे पता चलता है कि यह मंदिर कौन सा था।

हिंदू पक्ष का कहना है कि कमल के आकार पर मस्जिद के खंभे बनाए गए हैं। इससे पता चलता है कि यह मंदिर कौन सा था।

अयोध्या मामले में फैसले के बाद मथुरा विवाद में तूल पकड़ लिया गया

  • नवंबर 2019 में सुप्रीम कोर्ट के अयोध्या मामले पर फैसला। इसके 10 महीने बाद ही श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद में तूल पकड़ लिया गया। 25 सितंबर 2020 को पहली बार इस मामले में मथुरा जिला कोर्ट में फाइल का खुलासा हुआ था।
  • 5 दिन बाद ही 30 सितंबर को मस्जिद चर्च के जज शैडो शर्मा ने इस याचिका को खारिज करते हुए कहा था कि भगवान श्रीकृष्ण के पूरी दुनिया में उनके विशाल भक्त और बाकी लोग हैं। यदि हर भक्त की प्रार्थना सभा पर तीर्थयात्रा की घोषणा की जाएगी तो मंदिर एवं सामाजिक व्यवस्था चरमरा जाएगी।
  • साथ ही आमीअम कोर्ट ने कहा था कि न तो पक्षकार हैं और न ही भरोसेमंद इसलिए ये याचिका खारिज की जाती है। बिना देर किए 30 सितंबर को ही इस मामले में रेस्टॉरेंट फाइल्स की खोज की गई थी। दोनों नमूनों को सुनने के बाद अदालत ने याचिका को स्वीकार कर लिया।
  • अभी लोअर कोर्ट में मामले की सुनवाई चल ही रही थी कि 26 मई 2023 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मथुरा विवाद से जुड़े सभी मामलों को अपने पास स्थानांतरित कर लिया। 4 महीने तक अलग-अलग स्टॉक पर हुई सुनवाई के बाद 16 नवंबर को ऑर्डर सुरक्षित रखा गया था।
  • 14 दिसंबर को उच्च न्यायालय ने ईदगाह मस्जिद का सर्वेक्षण किया। अगले ही दिन 15 दिसंबर को मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ जजमेंट के खिलाफ याचिका दायर की। इस याचिका को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने भी सर्वे रद्द कर दिया।

मस्जिद में बने कमल और शेषनाग बने हिंदू पक्ष के दावे का आधार
हिंदू पक्ष ने 15 दिसंबर 2023 को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि मस्जिद की दीवारों पर जो कलश बना है, वो हिंदू शैली का है। मस्जिद के स्तंभ के शीर्ष पर कमल बना है। दीवारों पर शेषनाग बने हुए हैं, भगवान कृष्ण की रक्षा के दौरान उनका जन्म हुआ था। ये सभी साक्ष्य उपलब्ध हैं, लेकिन इनके उदाहरण नहीं बताए जा सकते।

हिंदू पक्ष का तर्क है कि 1968 का समझौता यह धोखाधड़ी था और कानूनी रूप से वैध नहीं है। उन्होंने कहा कि किसी भी मामले में देवता की कृतित्व को समाप्त नहीं किया जा सकता, क्योंकि देवता की कृति का कोई हिस्सा नहीं था।

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मथुरा की ईदगाह मस्जिद का सर्वेक्षण सुप्रीम कोर्ट से भी एतराज नहीं है। 15 दिसंबर को कोर्ट ने सर्वे पर रोक लगाने वाली याचिका खारिज कर दी। यह याचिका अल्लाहाबाद के जजमेंट के खिलाफ की गई थी, जिसमें समसामयिक स्थल के आयुक्त सर्वेक्षण का आदेश दिया गया था। पूरी खबर पढ़ें…

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