कावेरी जल विवाद; तमिलनाडु जल आपूर्ति आदेश पर डीके शिवकुमार | 1 नवंबर से प्रतिदिन 2600 क्यूसेक कावेरी वॉटर की आपूर्ति की गई; वजह बताई गई- घाटियों में पानी नहीं

बैंगलोर2 मिनट पहले

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कावेरी विवाद के दौरान पिछले महीने कर्नाटक बंद के दौरान सीएम सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार ने एक साथ एक बैठक की थी।  - दैनिक भास्कर

कावेरी विवाद के दौरान पिछले महीने कर्नाटक बंद के दौरान सीएम सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार ने एक साथ एक बैठक की थी।

कर्नाटक के डिप्टी सीएम डेके शिवकुमार ने कहा कि वे तमिलनाडु को पानी नहीं देंगे। डेके ने बताया कि कृष्णराज सागर बांध में और कावेरी वैली में पानी नहीं है, इसलिए वे कावेरी वॉटर मोटर कंपनी के ऑर्डर का पालन नहीं कर सकते।

कावेरी वॉटर एसोसिएट्स ने सोमवार को कर्नाटक सरकार से 1 नवंबर से 15 दिन तक प्रतिदिन 2600 क्यूसेक (क्यूबिक फुट प्रति ओबामा) पानी देने की मांग की है। इसके पहले सीडब्ल्यूआरसी ने 13 सितंबर को 5 हजार क्यूसेक पानी देने का निर्देश दिया था।

सीडब्ल्यूआरसी के इस फैसले के खिलाफ सितंबर में हिंसक हमला भी हुआ था। हालांकि तमिल ने हर रोज 13,000 क्यूसेक कावेरी का पानी मांगा था।

ये तस्वीरें 29 सितंबर को कर्नाटक बंद की हैं।  इस दौरान राज्य में कई जगहों पर हिंसक घटनाएं भी हुईं।  जिसमें 700 लोगों को पद सौंपा गया था।

ये तस्वीरें 29 सितंबर को कर्नाटक बंद की हैं। इस दौरान राज्य में कई जगहों पर हिंसक घटनाएं भी हुईं। जिसमें 700 लोगों को पद सौंपा गया था।

कावेरी घाटी में केवल 51 टीएमसी पानी
डीके कर्नाटक सरकार में जल संसाधन विभाग समर्थित हैं। उन्होंने मीडिया से कहा कि वॉटर फ़्लो ज़ीरो में वॉटर फ़्लो ज़ीरो है। इसलिए हमारे पास पानी खोलने की ताकत नहीं है। के रिज और केबिनी बांधों से 815 क्यूसेक पानी प्राकृतिक रूप से तमिल की ओर बहता है।

डीके ने बताया- कावेरी घाटी में केवल 51 टीएमसी (थाउजेंड मिलियन क्यूबिक फीट) पानी बचा है। अस्थायितस्थ आवासों में अंकित के लिए ही पीने के पानी की जरूरत है।

कावेरी नदी के जल रेगिस्तान का विवाद 142 साल पुराना है…

  • 1881 में मैसूर (अब कर्नाटक) ने कावेरी नदी पर बाँध बनाने का निर्णय लिया। इस फैसले का मद्रास प्रेसिडेंसी (अब तमिल) ने विरोध किया।
  • इसके बाद कावेरी जल संबंध को लेकर दोनों के बीच 1892 में एक समझौता हुआ। एकोजिट के तहत कर्नाटक को 177 हजार मिलियन क्यूबिक फीट पानी की प्राप्ति हुई थी। केरल को 5 हजार मिलियन क्यूबिक फीट के साथ ही तमिल और पुडुचेरी को 556 हजार मिलियन क्यूबिक फीट पानी की प्राप्ति हुई थी।
  • 1881 में रियासतों और मद्रास प्रेसीडेंसी ने कावेरी जल संकट को लेकर एक सूची पर हस्ताक्षर किये। 1924 में दोनों के बीच 50 पूर्वजों के लिए निश्चित मात्रा में कावेरी का पानी साझा करने का समझौता हुआ।
  • 1956 में तीन नए राज्य आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और केरल का गठन हुआ। इसका कारण एक बार फिर से कावेरी जल चयन में संशोधन जरूरी हो गया।
  • 60 के दशक में कर्नाटक ने नई पत्रिका बनाने का प्रस्ताव रखा। केंद्र ने इस योजना को खारिज कर दिया। इसके बाद फिर भी कर्नाटक ने चार किले बनाए। 1924 का समझौता 1974 में ख़त्म हो गया।
  • इसके बाद कावेरी फैक्ट रिसर्चिंग कमेटी बनाई गई। इसकी अंतिम रिपोर्ट 1976 में आईस सभी राज्यों ने स्वीकार कर ली। हालाँकि जब कॉर्नर ने हरंगी बाँध का निर्माण शुरू किया, तो टेम्प्लेट ने सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया।
  • दोनों राज्य एक-दूसरे को कम पानी देना चाहते थे। कर्नाटक का कहना है कि वह नदी के बहाव क्षेत्र में सबसे पहले है, इसलिए पानी पर उसका पहला हक है। ऐसे में पुराने पुराने नए राज्यों के बीच लागू नहीं किया जा सकता।
  • तमिल का कहना था कि अंग्रेज़ों के दौर में एकाग्रचित्त का नामांकन करना चाहिए। उसे पहले पानी दिखता है, मिलना चाहिए। तमिल को कावेरी के पानी की सबसे ज्यादा जरूरत है। इस बीच यह विवाद चल रहा है।

तमिलनाडु को पानी क्यों नहीं दे रहा कर्नाटक, पढ़ें पूरी कहानी

पूर्व एचडी फोटोग्राफर देवेगौड़ा ने 25 सितंबर को पीएम नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर कहा था कि प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप के बिना इस विवाद का समाधान नहीं हो सकता। केंद्र को सुप्रीम कोर्ट में एक 5 वर्चस के नमूने बनाने की मांग करनी चाहिए। ताकि ये शामिल कावेरी नदी के पानी का बंटवारा करने को लेकर सुझाव दे।

उन्होंने कहा कि इस पैनल में सभी लोगों का स्वतंत्र होना जरूरी है। कावेरी नदी में पिछले 100 सागरों में अभी भी सबसे कम पानी है। ऐसे में अभी के खाते से ही पानी का बंटवारा होना चाहिए। पढ़ें पूरी खबर…

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