एक राष्ट्र एक चुनाव समिति की बैठक अपडेट; राम नाथ कोविन्द | पीएम मोदी | पॉलिटिकल ऑफिशियल के सुझावों पर चर्चा हो सकती है

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नई दिल्लीएक मिनट पहले

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तस्वीर 23 सितंबर की है, जब दिल्ली के जोधपुर के कर्मचारियों के वन नेशन-वन में चुनाव के लिए गठित समिति की बैठक हुई थी।  - दैनिक भास्कर

तस्वीर 23 सितंबर की है, जब दिल्ली के जोधपुर के कर्मचारियों के वन नेशन-वन में चुनाव के लिए गठित समिति की बैठक हुई थी।

केंद्र सरकार की ओर से हाई लेवल कमेटी का गठन आज वन नेशन-वन इलेक्शन को लेकर बैठक आयोजित की गई। पूर्व राष्ट्रपति अमारात इस समिति के अध्यक्ष पद पर आसीन हैं। बैठक में कमेटी बनने से अब तक वन नेशन-वन इलेक्शन को लागू करने की दिशा में दिए गए प्रयास पर चर्चा होगी।

मीडिया अर्थशास्त्री के अनुसार, इस अनौपचारिक बैठक का कोई लिखित पद सामने नहीं रखा गया है। ऐसा माना जा रहा है कि बैठक में वन नेशन-वन इलेक्शन को लेकर राजनीतिक विचारधारा वाले लोगों की ओर से दिए गए सुझावों पर भी विचार किया जा सकता है।

असल में, समिति ने अपनी पहली बैठक में इस मुद्दे पर देश की राजनीतिक विचारधारा की जांच का निर्णय लिया था। इसके लिए समिति ने देश के 46 पॉलिटिकल एग्रीगेटर्स को पत्र लिखकर अपने विचार मंत्र दिए थे। इसमें 6 राष्ट्रीय स्तर के वाहन, 33 राज्य स्तर के वाहन और 7 गैर-सरकारी दल दल शामिल हैं।

समिति ने वन नेशन-वन इलेक्शन पर यूनिवर्सल की ओर से सुझाव पर बातचीत के लिए एक दिन भी तय किया था। कुछ राइटर्स की ओर से जवाब न मिलने पर कमेटी ने उन्हें रिमाइंडर भी भेजा था। समिति ने एक साथ चुनाव के मुद्दे पर लॉ कमीशन के विचार सुने, इस मुद्दे पर लॉ कमीशन के पैनल को बुलाया जा सकता है।

वन नेशन वन इलेक्शन क्या है
भारत में आंध्र प्रदेश के राज्यों और देशों के आम चुनावों का अलग-अलग समय होता है। वन नेशन वन इलेक्शन का मतलब यह है कि पूरे देश में एक साथ ही वोट और विधानसभाओं के चुनाव हों। यानि कि डेमोक्रेट और राज्य के विधानसभाओं के दलों के लिए एक ही दिन, एक ही समय पर या चरणबद्ध तरीके से अपना वोट डालेंगे।

आज़ादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ ही हुए, लेकिन 1968 और 1969 में कई विधानसभाएँ समय से पहले ही भंग कर दी गईं। इसके बाद 1970 में जॉन ने भी भंग कर दिया। इस कारण से एक देश-एक चुनाव की परंपरा टूट गई।

26 अक्टूबर को न्यूज एजेंसी पीटीआई ने वोटों और विधानसभा चुनावों के लिए गोदामों से खबर दी थी कि चुनाव आयोग को 30 लाख इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) की जरूरत होगी।

इसके अलावा 43 लाख बैलेट यूनिट और करीब 32 लाख वीवीपैट की जरूरत होगी। इसमें उन आश्रमों को रिज़र्व में रखना भी शामिल है, जिनमें उद्यम आने पर इकाई को बदला जा सकता है। चुनाव आयोग को इसकी तैयारी के लिए साल का समय निर्धारित करना होगा।

एक ईवीएम में एक कंट्रोल यूनिट, कम से कम एक बैलेट यूनिट और एक पोर्टेबल पोर्टेबल कैप्सूल पैकेजिंग ट्रेल (वीवीपीएटी) यूनिट शामिल है। एक मौसाकी की लाइफ 15 साल की है।

अभी 35 लाख वोटिंग इकाइयों की कमी
सॉफ्टवेयर एजेंसी से न्यूज एजेंसी ने यह भी बताया कि अभी भी 35 लाख यूनिट की कमी है, जिसमें कंट्रोल, बैलेट और वीवीपैट यूनिट शामिल हैं। लोकसभा और चुनाव में एक साथ होने वाला खर्च कितना होगा, नामांकन लेकर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है।

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