उत्तराखंड यूसीसी बिल अपडेट; पुष्कर सिंह धामी | समान नागरिक संहिता विधेयक | उत्तराखंड यूसीसी बिल पास करने वाला पहला राज्य: सीएम धामी बोले- पीएम मोदी का एक भारत-श्रेष्ठ भारत का विजन पूरा होगा

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उत्तराखंड4 मिनट पहलेलेखक: पंकज राणा

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यूसीसी बिल पास के बाद विधानसभा क्षेत्र में सीएम पुखर सिंह धामी को मिठाई खिलाई।  - दैनिक भास्कर

यूसीसी बिल पास के बाद विधानसभा क्षेत्र में सीएम पुखर सिंह धामी को मिठाई खिलाई।

उत्तराखंड विधानसभा में रविवार को यूनीफॉर्म सिविल कोड यानी यूसीसी बिल ध्वनि मत से पास हो गया। इसी के साथ यूसीसी बिल पास करने वाला उत्तराखंड आजाद भारत का पहला राज्य बन गया है। सीएम पीटर धामी ने 6 फरवरी को विधानसभा में यह बिल पेश किया था।

बिल पास होने के बाद अब इसे राज्यपाल के पास भेजा जाएगा। गवर्नर का शपथ ग्रहण ही यह विधेयक कानून बनेगा और सभी को समान अधिकार मिलेगा। भाजपा ने 2022 के विधानसभा चुनाव में यूसीसी का वादा किया था।

इस बिल के कानून में शामिल है उत्तराखंड में लिव इन रिलेशन में रह रहे लोगों के लिए नामांकन जरूरी होगा। ऐसा नहीं करने पर 6 महीने तक की सजा हो सकती है। इसके अलावा पति या पत्नी के जीवित रहने पर दूसरी शादी भी गैर-कानूनी तरीके से की जाएगी।

बिल पास होने के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा- आज का ये दिन उत्तराखंड के लिए बहुत खास दिन है। मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी धन्यवाद करना चाहता हूं कि उनकी प्रेरणा से और उनके मार्गदर्शन में हमें ये राक्षस उत्तराखंड की विधानसभा में प्रवेश का अवसर मिले।

यूनीफॉर्म सिविल कोड लॉ के बारे में अलग-अलग लोग अलग-अलग बातें कर रहे थे लेकिन विधानसभा में हुई सभी बातें चर्चा में स्पष्ट हो गई हैं। ये कानून हमें किसी के खिलाफ नहीं लगता। ये कानून के बच्चे और मातृशक्ति के भी हिट हैं।

बिल की पूरी कॉपी पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें…

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  1. समान संपत्ति अधिकार : बेटे और बेटी दोनों को संपत्ति में समान अधिकार मिलेगा। इससे फर्क नहीं पड़ता कि वह किस वर्ग के हैं।
  2. मृत्यु के बाद संपत्ति: यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो यूनीफॉर्म सिविल कोड उस व्यक्ति की संपत्ति को पति/पत्नी और बच्चों में समान रूप से वितरण का अधिकार देता है। इसके अलावा उस व्यक्ति के माता-पिता को भी संपत्ति में समान अधिकार मिलेगा। पिछले कानून में यह अधिकार केवल मृतक की मां का दर्शन था।
  3. समान कारण पर ही वैध तलाक: पति-पत्नी का तलाक एक समान होगा, जब दोनों का आधार और कारण एक जैसा होगा। केवल एक पक्ष के कारण तलाक नहीं मिल सकता।
  4. लिव इन का रजिट जरूरी जरूरी: उत्तराखंड में रहने वाले कपल अगर लिव इन में रह रहे हैं तो उन्हें नामांकन करना होगा। हालाँकि ये सेल्फ़ डिक्लिन वैसा ही होगा, लेकिन इस नियम से आदिवासी जनजाति के लोगों को छूट मिलेगी।
  5. संतान की जिम्मेदारी : अगर लिव इन एलिवेटर से कोई बच्चा पैदा नहीं होता है तो उसकी जिम्मेदारी लिव इन में रहने वाले कपल की होगी। दोनों को उस बच्चे का अपना नाम भी देना होगा। इस राज्य में हर बच्चे को पहचानना होगा।

800 डेमोक्रेट के ड्राफ्ट में 400 खंड, सशक्त लाख सुझाव मिले
उत्तराखंड में यूसीसी की कमेटी कमेटी ने जो रिपोर्ट तैयार की है, उसमें करीब 400 सेक्शन शामिल हैं। और इस ड्राफ्ट रिपोर्ट में लगभग 800 डेमोक्रेट्स की इस रिपोर्ट में प्रदेशभर से ऑफ़लाइन और 2.31 लाख सुझावों को शामिल किया गया है। 20 हजार लोगों की समिति ने सीधे संपर्क किया। इस दौरान सभी धर्म गुरुओं, आध्यात्म, राजनीतिक शास्त्र, कानूनी अनुयायियों से बातचीत की गई है। अन्य सुझावों को समिति ने ड्राफ्ट में शामिल किया।

प्रदेश की राजधानी लखनऊ में कानून की व्यवस्था की गई है
उत्तराखंड के तीर्थस्थल पर यह कानून लागू नहीं होगा। राज्य में पाँच प्रकार की जनजातियाँ हैं जिनमें थारू, बॉक्सा, कैनेडी, भोटिया और जौनसारी समुदाय शामिल हैं। चीन के साथ 1962 की लड़ाई के बाद 1967 में मुग़ल संविधान के अंतर्गत 342 जनजाति समुदाय को शामिल किया गया। पिछले दिनों असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा ने भी कहा था कि वो भी अपने प्रदेश में जनजाति और समानता को इस कानून से मुक्त करें।

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आमतौर पर किसी भी देश में दो तरह के कानून होते हैं। क्रिमिनल लॉ और सिविल लॉ। क्रिमिनल लॉ में चोरी, लूट, मार-पीट, हत्या जैसे आपराधिक मामलों की सुनवाई होती है। इसमें सभी धर्मों या संप्रदायों के लिए एक ही तरह का न्यायालय, संप्रदाय और दंड का प्रावधान है। पढ़ें पूरी खबर…

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