नई दिल्लीकुछ ही क्षण पहले
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नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) ने सलाह दी है कि उन्हें सिनेबोर्ड, पेटेंट कार्ड और अनाउंसमेंट के माध्यम से जनता को गुमराह करने से बचना चाहिए।
कमीशन ने कहा कि साइनबोर्ड और वकीलों के प्रिस्क्रिप्शन पेपर्स पर डॉक्टर का नाम, क्वॉल इंस्टिट्यूट, स्पेशियलिटी और नामांकन संख्या के अलावा कुछ भी नहीं होना चाहिए।
एनएमसी ने यह भी कहा है कि पादरी को केमिस्ट शॉप या ऐसी किसी जगह साइन बोर्ड नहीं ले जाना चाहिए जहां वह न तो रहता है और न ही काम करता है।
ये सभी चीजें कमीशन के एथिक्स एंड मेडिकल रजिस्ट्रेशन बोर्ड (ईएमआरबी) ने अपनी ई-बुक ‘प्रोफेशनल कंडक्ट रिव्यू-लेसंस फ्रॉम केसर आर्काइव्स’ में कहीं भी रखी हैं।
डॉक्टर-पेशेंट के बीच विश्वसनीय जरूरी
इस पुस्तक में यह भी कहा गया है कि डॉक्टर-पेशेंट के मामले में विश्वास नहीं होता है, इसलिए इस कारण से वकील के ऊपर मुकदमा चलाने की संभावना बढ़ जाती है। डॉक्युमेंट्स के खिलाफ सबसे आम कारण है कम्युनिकेशन गैप।
कमीशन ने कहा कि मेडिकल प्रैक्टिशनर्स किसी भी फील्ड से जुड़े अलग-अलग एरिया में कोचिंग और ट्रेनिंग हासिल कर सकते हैं, लेकिन कंसलटेंट या स्पेशलिस्ट की प्रैक्टिस सिर्फ उन विद्वानों को करनी चाहिए जो उस खास फील्ड में क्वॉली ऑफर करते हैं।

केस अध्ययन की सीख के आधार पर लिखित पुस्तक
ई-बुक के एसोसिएट्स और एथिक्स एंड मेडिकल रजिस्ट्रेशन बोर्ड (ईएमआरबी) के सदस्य योग डॉ. आमिर ने कहा कि बोर्ड के खिलाफ पक्षपातपूर्ण मामलों की सुनवाई हो रही है और जजमेंट सुना जा रहा है। इन मामलों से जो सीख है उसे डॉक्टर्स तक शब्दावली की जरूरत शुरू से ही महसूस की गई थी।
उन्होंने कहा कि इस विचार को बोर्ड के साथ साझा किया गया और स्टॉक्स का एक समूह बनाया गया। इन लैब्स ने बहुत मेहनत से काम किया, हर केस के हजारों पेज पढ़े और उन केस का सारा खोए बिना उन्हें सुपरहीरो में लिखा।
केस स्टडी द्वारा लिखी गई इस किताब में बताया गया है कि एक पेशेंट के लिए एथिक्स, कंडक्ट और इंडस्ट्री के बीच काम करना मुश्किल होता है। विश्वासियों का यह भी मानना है कि जब तक कोई ख़तरा नहीं होता, तब तक पेशेंट्स को शिकायत करने का कोई अधिकार नहीं होता।
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