बैंगलोर3 मिनट पहले
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भारत का पहला अपोलो मिशन आदित्य एल1 अब अपने अंतिम चरण की ओर बढ़ रहा है। इसरो प्रमुख ने शुक्रवार को यह जानकारी दी कि 7 जनवरी 2024 को एल1 प्वाइंट तक की नियुक्ति की उम्मीद है।
60 साल पूरे होने वाले एक कार्यक्रम के पहले साउंडिंग रॉकेट लॉन्च पर इसरो चीफ ने कहा, ‘आदित्य रास्ते में है। मुझे लगता है कि यह लगभग अपने अंतिम चरण तक पहुंच गया है। यह सफलता के साथ एल1 प्वाइंट पर ट्यूटोरियल की हमारी कोशिशें जारी है।’
2 सितंबर को आदित्य एल1 को लॉन्च किया गया था
आदित्य को 2 सितंबर को सुबह 11.50 बजे पीएसएलवी-सी57 के एक्सएल रॉकेट संस्करण के माध्यम से श्रीहरिकोटा के शॉवर स्पेस सेंटर से लॉन्च किया गया था। प्रक्षेपण के 63 मिनट 19 सेकंड बाद अंतरिक्ष यान पृथ्वी पर 235 किलोमीटर x 19,500 किलोमीटर की कक्षा में स्थापित किया गया था।
लॉन्चिंग के बाद से आदित्य की दो बार ऑर्बिट की पेशकश की गई। इसके लिए थ्रेस्टर फायर किए गए थे। करीब 4 महीने बाद अब यह 15 लाख किलोमीटर दूर लैगरेंज प्वाइंट-1 तक पहुंच की ओर बढ़ रही है। इस बिंदु पर ग्रहण का कोई प्रभाव नहीं है, जिससे यहां से समुद्र तक जाने का पता आसानी से लगाया जा सकता है।
इसरो ने 7 सितंबर 2023 को आदित्य-एल1 पर लगे कैमरे से ली गई सेल्फी के साथ पृथ्वी और चंद्रमा की तस्वीरें शेयर की थीं, जिसमें 4 सितंबर को ली गई थी। सेल्फी में आदित्य पर लगे दो स्टूडियो वेल्क और सूट नजर आ रहे हैं।
![यह तस्वीर आदित्य एल1 ने 4 सितंबर को ली थी जिसमें पृथ्वी और चंद्रमा एक साथ नजर आ रहे हैं। इसरो ने 7 सितंबर को इसे सोशल मीडिया पर शेयर किया था.](https://images.bhaskarassets.com/web2images/521/2023/11/25/news-image-581694147146_1700898604.jpg)
यह तस्वीर आदित्य एल1 ने 4 सितंबर को ली थी जिसमें पृथ्वी और चंद्रमा एक साथ नजर आ रहे हैं। इसरो ने 7 सितंबर को इसे सोशल मीडिया पर शेयर किया था.
5 बिंदुओं में जानिए आदित्य एल1 का सफर
पीएसएलवी रॉकेट ने आदित्य को 235 x 19,500 किमी की पृथ्वी की कक्षा में छोड़ा।
16 दिन तक पृथ्वी की कक्षा में रहेंगे। 5 बार थ्रस्टर फायर कर ऑर्बिट बढ़ाया जाएगा।
फिर से आदित्य के थ्रेस्टर फायर होंगे और ये एल1 प्वाइंट की ओर निकलेंगे।
110 दिन की यात्रा के बाद आदित्य ऑब्जर्वेटरी इस बिंदु के करीब पहुंच जाएगी
थर्स्टर अरेस्ट के अलावा आदित्य को L1 पॉइंट के ऑर्बिट में डाल दिया जाएगा।
लैगरेंज पॉइंट-1 (L1) क्या है?
लैगरेंज प्वाइंट का नाम इतालवी-फ्रांसीसी गणितज्ञ जोसेफी-लुई लैगरेंज का नाम रखा गया है। इसे बोलचाल में L1 नाम से जाना जाता है। ऐसे पांच बिंदु पृथ्वी और सूर्य के बीच हैं, जहां सूर्य और पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल सम्मिलित है और सेंट्रीफ्यूगल बल बन गया है।
ऐसे में इस जगह पर अगर कोई सामान रखा जाए तो वह आसानी से उस बिंदु के चारों ओर चक्कर लगाने लगता है। पहला लैगरेंज बिंदु पृथ्वी और सूर्य के बीच 15 लाख किलोमीटर की दूरी पर है।
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L1 पॉइंट पर लीसेंजर, इसलिए यहां भेजा जा रहा है
इसरो का कहना है कि एल1 पॉइंट के एएस-पास हेलो ऑर्बिट में रखे गए सैटेलाइट सूर्य को बिना किसी ग्रहण के लगातार देखा जा सकता है। इससे संबंधित रियल टाइम साइंटिस्ट एक्टिविटीज और अंतरिक्ष के मौसम पर भी नजर रखी जा सकती है। ये 6 जनवरी 2024 को L1 प्वाइंट तक अमेरिकागा।
सूर्य की पढ़ाई क्यों जरूरी?
जिस सौर्य प्रणाली में हमारी पृथ्वी है, उसका केंद्र सूर्य ही है। सभी आठ ग्रह सूर्य के ही चक्कर हैं। सूर्य की वजह से ही पृथ्वी पर जीवन है। सूर्य से लगातार ऊर्जा का निर्यात होता है। हम चार्ज्ड पार्टिकल्स कहते हैं। सूर्य का अध्ययन करके यह समझा जा सकता है कि सूर्य में होने वाले परिवर्तनों से अंतरिक्ष और पृथ्वी पर जीवन कितना प्रभावित हो सकता है।
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सूर्य दो तरह से ऊर्जावान रिलीज करता है:
- प्रकाश का सामान्य प्रवाह जो पृथ्वी को रोशन करता है और जीवन को संभव बनाता है।
- प्रकाश, उपकरण और चुंबकीय क्षेत्र का विस्फोट जिससे इलेक्ट्रॉनिक वस्तुएं खराब हो सकती हैं।
इसे इटॉयर फ्लेवर कहा जाता है। जब ये फ्लेयर पृथ्वी तक प्रकट होता है तो पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र हमें इससे बचाता है। अगर ये ऑर्बिट में मौजूद उपग्रहों से टकराए तो ये खराब हो मंज़िल और पृथ्वी पर कम्युनिकेशन सिस्टम से लेकर अन्य वस्तुएं गैजेट पैड मंज़िल।
सबसे बड़ा सौर फ्लेयर 1859 में पृथ्वी से टकराया था। इसे कैरिंगटन इवेंट के नाम से जाना जाता है। टैब टेलीग्राफ कम्युनिकेशन प्रभावित हुआ था। इसरो सूर्य को रोशनी चाहिए। अगर फ्लैट फ्लेयर की ज्यादा समझ होगी तो इम्तिहान के लिए कदम उठाए जा सकते हैं।