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एक घंटा पहलेलेखक: नवनीत गुर्जर, नेशनल भास्कर, दैनिक भास्कर
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जातीय आदर्श का प्रभावी अभिनय शुरू हो चुका है। जिस बिहार ने सबसे पहले यह पसंद किया, वहां तो फिलहाल कुछ नहीं हो सका, लेकिन कांग्रेस में शामिल होना पहले जगाया गया। यहां स्थानीय खिलौने नगर निगम, नगर पालिका और क्षेत्र के चुनाव में एबीवीपी को टेंटीस प्रतिशत का प्रस्ताव बढ़ाया गया है।
ऐसा लगता है कि धीरे-धीरे अब वे राज्य को इस तरह का नया रूप देंगे जहां गैर भाजपा सरकारें हैं। बीजेपी इस बारे में क्या रणनीति अपनाएगी, अभी पूरी तरह साफ नहीं हो सकती। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने निश्चित रूप से जातीयता को बढ़ावा देने की रणनीति को खत्म करने और आतंकवाद को सर्वोपरि बताया था, लेकिन ऐसा नहीं लगता है कि जातीयता के पक्ष में निर्णायक रुख अपनाने से भी भाजपा पीछे हट जाएगी!

उपाध्यक्ष सिंह ने मंडल आयोग का भूत इस तरह से निकाला था कि देश की राजनीति आज तक उनके सलाहकार बनी हुई है।
पूर्वोत्तर का यह दरिया देश की राजनीति को किस तरह और किस ओर मोड़ेगा यह देखना अभी बाकी है। एक बार फिर से विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार वाला मोरोना देश में खड़ा होने का दावा करता है जो विश्वसनीय चुनौती हो सकता है।
मंडल- मंडल वालों ने जिन लोगों को देखा, उन्हें पता चला कि उस दौर में युवाओं में किस तरह का आदर्श आया था और उस समय किस तरह की फ़साद हुई थी। हालाँकि वीपी सिंह ने मंडल आयोग का भूत इस तरह से खत्म कर दिया था कि देश की राजनीति आज तक कर्मचारी संघ में है। असली, नवीन किसी भी वर्ग के लिए हो, राजनीतिक दल पीछे नहीं हट सकते। उसे लागू भी कोई भी करे।
क्योंकि पूर्वोत्तर से पीछे न हटना आश्रम की राजनीतिक मजबूरी बनी हुई है। जैसे ही उस दल या सरकार से संबंधित वर्ग को हटा दिया गया या कम कर दिया गया। समाजवादी राजनीति में यह बैर कोई मोल नहीं लेना चाहता।

महाराष्ट्र में रात्रि 12:00 बजे से रात 12 बजे तक रात 12 बजे से रात 12 बजे तक रात 12 बजे से रात 12 बजे तक रात 12 बजे से 12 बजे के बीच महाराष्ट्र में रात 10 बजे के करीब 10 साल की उम्र में 100 लोग मारे गए।
उपाध्यक्ष सिंह के शासनकाल से पहले केवल नामांकित जाति और जनजाति के लिए ही नामांकन का प्रस्ताव था। इसे भी केवल दस साल के लिए लागू किया गया था। इसके पीछे का विधान यह था कि जो वर्ग वर्षों से पिसाता आया है, सहता आया है और बेहद गरीबी में जीवन यापन करता है, उसे ऊपर उठाना जरूरी है।
बाद में सत्य में आई सरकार हर बार इस नैतिकता को दस-दस साल तक बढ़ाती रही और आज स्थिति यह है कि इस सत्ता में आई सरकार को हटाने के बारे में कोई सरकार या कोई राजनीतिक दल भी नहीं सोच सकता। अब अलग से यह जातीय विचारधारा का तूफान आने वाली है। …और लगता है इस तूफ़ान पर कोई भी प्रतिबंध नहीं है।