आदित्य-एल1 अंतरिक्ष यान शाम 4 बजे लैग्रेंज प्वाइंट पहुंचेगा | आदित्य-एल1 अंतरिक्षयान शाम 4 बजे लैग्रेंज प्वाइंट पर अमेरिका: 125 दिन में 15 लाख किमी का सफर तय, ये सूरज की यात्रा

बैंगलोर25 मिनट पहले

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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान प्रयोगशाला, इसरो का आदित्य-एल1 अंतरिक्ष यान 125 दिनों में 15 लाख किमी की यात्रा तय करने के बाद सन-अर्थ लैग्रेंज पॉइंट 1 (एल1) तक पहुंचेगा। आज शाम लगभग 4 बजे हेलो ऑर्बिट में पहुंचने की उम्मीद है।

अंतरिक्ष यान 440N में अपोलोजी मोटर (LAM) ने मदद के लिए आदित्य-L1 को हेलो ऑर्बिट में डाला है। यह मोटर इसरो के मार्स ऑर्बिटर मिशन (एमओएम) में प्रयुक्त मोटर के समान है। इसके अलावा, आदित्य-एल1 में आठ 22एन थ्रस्टर और चार 10एन थ्रस्टर हैं, जिनका ओरिएंटेशन और ऑर्बिट को नियंत्रित करना जरूरी है।

L1 अंतरिक्ष में एक अद्वितीय स्थान है जहाँ पृथ्वी और सूर्य की गुरुत्वाकर्षण शक्तियाँ मौजूद हैं। हालाँकि, L1 तक परमाणु ऊर्जा संयंत्र को इस ऑर्बिट में बनाए रखना कार्य है। L1 का ऑर्बिट होटल लगभग 177.86 दिन है।

यात्रा में आदित्य-एल1 का 4 आदर्श:
1. अंतरिक्ष यान का प्रक्षेपण

आदित्य एल1 को 2 सितंबर को सुबह 11.50 बजे पीएसएलवी-सी57 के एक्सएल संस्करण रॉकेट के माध्यम से श्रीहरिकोटा के श्रीहरिकोटा के अशांत अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च किया गया था। प्रक्षेपण के 63 मिनट 19 सेकंड बाद अंतरिक्ष यान पृथ्वी पर 235 किलोमीटर x 19500 किलोमीटर की कक्षा में स्थापित किया गया था।

आदित्य एल1 को 2 सितंबर को श्रीहरिकोटा के शारबाह अंतरिक्ष केंद्र की शुरुआत की गई थी।

आदित्य एल1 को 2 सितंबर को श्रीहरिकोटा के शारबाह अंतरिक्ष केंद्र की शुरुआत की गई थी।

2. चार बार ऑर्बिट चांग

  • इसरो की पहली बार 3 सितंबर को आदित्य एल1 की ऑर्बिट बॅाथ थी। उसकी पृथ्वी से सबसे कम दूरी 245 किमी थी, जबकि सबसे अधिक दूरी 22,459 किमी थी।
  • 5 सितंबर को रात 2.45 बजे आदित्य एल1 स्पेसक्रॉफ्ट का ऑर्बिट दूसरी बार लॉन्च किया गया था। उसकी पृथ्वी से सबसे कम दूरी 282 किलोमीटर थी, जबकि सबसे लंबी दूरी 40,225 किलोमीटर थी।
  • इसरो ने 10 सितंबर की रात करीब 2.30 बजे तीसरी बार आदित्य एल1 की ऑर्बिट थी। उसकी पृथ्वी से सबसे कम दूरी 296 किलोमीटर थी, जबकि सबसे लंबी दूरी 71,767 किलोमीटर थी।
  • इसरो ने 15 सितंबर की रात करीब 2:15 बजे चौथी बार आदित्य एल1 की ऑर्बिट थी। उसकी पृथ्वी से सबसे कम दूरी 256 किमी, जबकि सबसे अधिक दूरी 1,21,973 किमी हो गई।

3. ट्रांस-लैग्रेंजियन इंसर्सन
आदित्य एल1 अंतरिक्ष यान को 19 सितंबर को रात करीब 2 बजे ट्रांस-लैग्रेंजियन पॉइंट 1 में सम्मिलित किया गया। इसके लिए यान के थ्रस्टर ने कुछ देर के लिए आग लगा दी थी। ट्रांस-लैग्रेंजियन प्वाइंट 1 इंसर्सन यी यान को पृथ्वी की कक्षा से लैग्रेंजियन प्वाइंट 1 की ओर का झुकाव।

4. एल1 ऑर्बिट इंसर्शन
ट्रांस-लैग्रेंजियन पॉइंट 1 इंसर्सन के बाद एसपीएसए प्लांट को अपने पथ पर बनाए रखने के लिए 6 अक्टूबर, 2023 को ट्रैजेक्टरी करेक्शन मनुवर (टीसीएम) का गठन किया गया था। अब अंतिम रूप से जला दिया जाएगा और अंतरिक्ष यान L1 ऑर्बिट का घूमना शुरू हो जाएगा।

लैगरेंज पॉइंट-1 (L1) क्या है?
लैगरेंज प्वाइंट का नाम इतालवी-फ्रांसीसी गणितज्ञ जोसेफी-लुई लैगरेंज का नाम रखा गया है। इसे बोलचाल में L1 नाम से जाना जाता है। ऐसे पांच बिंदु पृथ्वी और सूर्य के बीच हैं, जहां सूर्य और पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल सम्‍मिलित है और सेंट्रीफ्यूगल बल बन गया है।

ऐसे में इस जगह पर अगर कोई सामान रखा जाता है तो वह आसानी से उस प्वाइंट के चारो तरफ चक्कर लगाने लगता है। पहला लैगरेंज बिंदु पृथ्वी और सूर्य के बीच 15 लाख किलोमीटर की दूरी पर है। इस बिंदु पर ग्रहण का प्रभाव नहीं है।

अंतरिक्ष यान एल1 ऑर्बिट में बड़ी चुनौती बनाए रखा
यह बिंदु पूरी तरह से स्थिर नहीं है, इसलिए आदित्य-एल1 अंतरिक्ष यान को वहां बनाए रखना होगा और वहां मौजूद अन्य अंतरिक्ष यान से सभी राक्षसों से बचने के लिए लगातार निगरानी करनी होगी। समय-समय पर थ्रस्टर्स की मदद से इसे अपने पथ पर रखें।

एटिट्यूड और ऑर्बिट कंट्रोल सिस्टम (एओसीएस) में अंतरिक्ष यात्रियों की दिशा और दिशा को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई गई है। इस प्रणाली में विभिन्न सेंसर, कंट्रोल इलेक्ट्रॉनिक्स और एक्चुएटर जैसे व्हील्स, मैग्नेटिक लेजर और इलेक्ट्रॉनिक्स कंट्रोल थ्रस्टर शामिल हैं। सेंसर सिस्टम में एक स्टार सेंसर, सैन सेंसर, एक मैग्नेटोमीटर और जायरोस्कोप शामिल हैं।

मिशनों के लिए आदित्य-एल1 जैसे एटिट्यूड और ऑर्बिट कंट्रोल में हाई एक्यूरेसी महत्वपूर्ण है। इसके लिए इसरो ने एक सॉफ्टवेयर विकसित किया है। यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) की मदद से इसका परीक्षण किया गया है। वर्तमान में, नासा के विंड, एसीई, और डीएससीओवीआर जैसे स्पेस प्लांट और ईएसए/नासा कोलाबोरेटिव मिशन एसओएचओ भी एल1 के आसपास के संस्थान हैं।

सूर्य की अध्ययन आवश्यक क्यों?
जिस सौर्य प्रणाली में हमारी पृथ्वी है, उसका केंद्र सूर्य ही है। सभी आठ ग्रह सूर्य के ही चक्कर हैं। सूर्य की वजह से ही पृथ्वी पर जीवन है। सूर्य से लगातार ऊर्जा का निर्यात होता है। हम चार्ज्ड पार्टिकल्स कहते हैं। सूर्य का अध्ययन करके यह समझा जा सकता है कि सूर्य में होने वाले परिवर्तनों से अंतरिक्ष और पृथ्वी पर जीवन कितना प्रभावित हो सकता है।

सूर्य दो तरह से ऊर्जावान रिलीज करता है:

  • प्रकाश का सामान्य प्रवाह जो पृथ्वी को रोशन करता है और जीवन को संभव बनाता है।
  • प्रकाश, उपकरण और चुंबकीय क्षेत्र का विस्फोट जिससे इलेक्ट्रॉनिक वस्तुएं खराब हो सकती हैं।

इसे इटॉयर फ्लेवर कहा जाता है। जब ये फ्लेयर पृथ्वी तक प्रकट होता है तो पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र हमें इससे बचाता है। अगर ये ऑर्बिट में मौजूद उपग्रहों से टकराए तो ये खराब हो मंज़िल और पृथ्वी पर कम्युनिकेशन सिस्टम से लेकर अन्य वस्तुएं गैजेट पैड मंज़िल।

सबसे बड़ा सौर फ्लेयर 1859 में पृथ्वी से टकराया था। इसे कैरिंगटन इवेंट कहते हैं। टैब टेलीग्राफ कम्युनिकेशन प्रभावित हुआ था। इसरो सूर्य को रोशनी चाहिए। अगर आटा फ्लेयर की अधिकतर समझ होगी तो इससे पहले के लिए कदम उठाए जा सकते हैं।

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