आईपीसी, सीआरपीसी, साक्ष्य अधिनियम; पी.चिदंबरम का संसदीय समिति को पत्र | पिछले ऑटोमोबाइल में कॉम्बैट ने पढ़ने के लिए समय मांगा था

नई दिल्लीएक घंटा पहले

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अमित शाह ने 11 अगस्त को आईपीसी, सीआरपीसी-एविडेंस कानून में बदलाव वाले बिल पेश किए थे।  - दैनिक भास्कर

अमित शाह ने 11 अगस्त को आईपीसी, सीआरपीसी-एविडेंस कानून में बदलाव वाले बिल पेश किए थे।

भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और न्यायिक अधिनियम की जगह लेने वाले तीन दस्तावेजों की जांच कर रही संसदीय समिति की आज की बैठक। 27 अक्टूबर को हुई बैठक में समिति ने ड्राफ्ट रिपोर्ट को स्वीकार नहीं किया। कुछ प्रयोगशालाओं के डीलरों पर ध्यान केंद्रित करते हुए समिति ने एक मसौदा तैयार किया और अध्ययन के लिए समय मांगा।

नेता कांग्रेस पी. नॉर्थवेस्ट सहित कुछ ऑर्केस्ट्रा सदस्यों ने समिति के अध्यक्ष ब्रिजा लाल से डौफ्ट पर निर्णय लेने के लिए दिए गए समय में तीन महीने की वृद्धि का आग्रह किया था। सदस्यों ने कहा कि इन सामुहिक लाभ के लिए इन साखों को उछालना सही नहीं है।

ये वामपंथ 11 अगस्त को संसद में पेश किये गये थे। अगस्त में इससे जुड़ा ड्राफ्ट गृह मामलों की स्थायी समिति को भेजा गया था। समिति को ड्राफ्ट स्वीकृत करने के लिए तीन माह का समय दिया गया है।

अमित शाह ने पेश किये तीन विधानमंडलों में बदलाव के बिल
गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में 163 साल पुराने 3 आवासीय भवनों में बदलाव के बिल को केंद्र में पेश किया। सबसे बड़ा बदलाव राजद्रोह कानून को लेकर आया है, जिसे नए स्वरूप में लाया गया है। ये बिल इंडियन पीनल कोड (आईपीसी), क्रिमिनल प्रोसीजर कोड (सीआरपीसी) और एविडेंस एक्ट हैं।

बात उन 3 मंदिरों की, जिनमें बदलाव किये गये

3 मैक्सिकनों से क्या बदलाव होंगे?

कई धाराएँ और प्रस्ताव अब बदल जायेंगे। आईपीसी में 511 धाराएं हैं, अब 356 धाराएं। 175 धाराएँ स्केलगी। 8 नई जोड़ी रचना, 22 धाराएँ समाप्त हो गईं। इसी तरह सीआरपीसी में 533 धाराएं। 160 धाराएं स्केलंगी, 9 नई जुड़ेंगी, 9 समाप्त हो जाएंगी। पूछताछ से वीडियो कॉन्फ्रेंस तक करने का प्रोविजन होगा, जो पहले नहीं था।

सबसे बड़ा बदलाव ये है कि अब कोर्ट को हर फैसले में ज्यादातर 3 साल की सजा होगी। देश में 5 करोड़ केस पेंडिंग हैं। इनमें से 4.44 करोड़ केस ट्रायल कोर्ट में हैं। इसी प्रकार जिला जजों के 25,042 न्यायालयों में से 5,850 पद रिक्त हैं।

त्रिविध विधेयक जांच के लिए संसदीय समिति के पास भेजे गए हैं। इसके बाद येसोम और सागर में बंद हो जायेंगे।

समझें 3 बड़े बदलाव…

  • राजद्रोह नहीं, अब देशद्रोह: ब्रिटिश काल के शब्द राजद्रोह को मोशन पिक्चर का शब्द कहा जाता है। प्रस्ताव और सुझाव। अब धारा 150 के तहत राष्ट्र के खिलाफ कोई भी कृत्य, कत्था बोला हो या लिखा हो, या हस्ताक्षर या चित्र या इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से किया गया हो तो 7 साल से उम्र कैद तक की सजा संभव होगी। देश की एकता एवं संप्रभुता को अपराध की ओर इशारा किया जाएगा। उग्र शब्द की भी परिभाषा। अभी आईपीसी की धारा 124ए में राजद्रोह में 3 साल की उम्रकैद तक होती है।
  • मॉडल वाक्य: पहली बार छोटे-मोटे अपराध (नशे में तूफान, 5 हजार से कम की चोरी) के लिए 24 घंटे की सजा या एक हजार रु. दंडात्मक या मनोवैज्ञानिक सेवा करने की सज़ा हो सकती है। अभी भी ऐसे अपराधी को जेल भेजा जाता है। अमेरिका-ब्रिटेन में है ऐसा कानून।
  • मॉब लिंचिंग: मृत्यु की सज़ा का प्रावधान। 5 या अधिक लोग जाति, नस्ल या भाषा के आधार पर हत्या करते हैं तो कम से कम 7 साल या फाँसी की सज़ा होगी। अभी स्पष्ट कानून नहीं है। धारा 302, 147-148 में कार्यवाही होती है।

राज्य के लिए नए कानून कैसे बनाएं
सरकारी अनुदान के अनुसार बिल पेश करने से पहले व्यापक रायशुमारी की गई है। संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार कानून-व्यवस्था और पुलिस राज्यों का विषय है। समान नागरिक संहिता पर विधि आयोग के माध्यम से राष्ट्रीय बहस हो रही है, इसलिए आपराधिक दोषियों में बदलाव से पहले राज्यों से परामर्श के साथ देश में सार्थक बहस जरूरी है।

सरकार की तैयारी: 4 साल की चर्चा के बाद हुए ये बदलाव
सरकार की ओर से कहा गया है कि 18 राज्य, 6 केंद्र बौद्ध मठ, सर्वोच्च न्यायालय, 22 उच्च न्यायालय, मंदिर मंदिर, 142 मंदिर और 270 कलाकारों की टुकड़ी ने भी इन सरदारों को सलाह दी है। चार साल की चर्चा और इस दौरान 158 बैठकों के बाद सरकार ने बिल पेश किया है। इन बदलावों के लिए पहली बैठक सितंबर 2019 में पार्लियामेंट लाइब्रेरी के रूम नंबर जी-74 में हुई थी। कोरोना के दौरान एक साल तक इसमें कोई प्रगति नहीं हुई।

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